चंचल मन छी समेट के रखने
तैं बुझा रहल छी अति गंभीर
मुँह अछैते बौक बनल छी
बिनु गुज्जी के कान बहीर
ब्रह्मा चूक जरुर केने छथि
एहि सृष्टिक निर्माण में
हमर कार्य स्थिर कए देलन्हि
भूत भविष्य वर्तमान में
सुनि रहल छी आलोचना आ
निष्कलंको रहैत कलंकित छी
घर-घर क्रंदन घर-घर रोदन
शापक भय स' आतंकित छी
कियो कहैइयै समय डकूबा
हत्यारा कहि झारय रोष
कियो कहय दिन हमरो घुमतै
मुदा एखन अछि समयक दोष
स्वार्थक आगू आन्हर मानव
क' लैइयै हमरहु स' छल
मोनक मनोरथ पूर भेला पर
बाजय पौलहुं अप्पन कर्मक फल
सदिखन हमरे दोष नै दिय'
निर्दयी कहि जुनि करू अधीर
उलहन सुनि-सुनि कान पाकि गेल
बनि गेल छी आब मूक-बधिर
मुदा हमर के बुझत भावना
जे हम कियै स्तब्ध छी
हमर व्यथा के आबि के पूछत
जे हम कियै निःशब्द छी
दुखी जीवन आ जन कष्ट देखि-देखि
होइयै हमरो हृदयाघात
कियैकि हम छी समय आ
एहि तरहें होइयै हमरा अश्रुपात
मनीष झा "बौआभाई"
ग्रा.+पो.- बड़हारा
भाया-अंधरा ठाढ़ी
जिला-मधुबनी (मिथिला)
Blog: http://www.manishjha1.blogspot.com
बहुत निक प्रस्तुति बौआ भैया अहिना धराधर लिखैत रहू..
जवाब देंहटाएंsamayak ashrupat kavita neek lagal
जवाब देंहटाएंkhoob neek
जवाब देंहटाएंati sundar
जवाब देंहटाएंbah, bad neek
जवाब देंहटाएंसुनि रहल छी आलोचना आ
निष्कलंको रहैत कलंकित छी
घर-घर क्रंदन घर-घर रोदन
शापक भय स' आतंकित छी
दुखी जीवन आ जन कष्ट देखि-देखि
जवाब देंहटाएंहोइयै हमरो हृदयाघात
कियैकि हम छी समय आ
एहि तरहें होइयै हमरा अश्रुपात
neek
Bauwabhai, ehina likhait rahoo
जवाब देंहटाएंविलक्षण
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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