मैथिली


हम रहू बैसल कखन धरि
सुन्न अहिना कात लागल।
हम बजै छी मैथिली तैं
बुझि रहल अछि लोक पागल।

बाट नहि छोड़त, अकड़ि क’
ठाढ़ अछि सब आन भाषी।
जानि नहि आयत कखन धरि
चान केर ओ पूर्णमासी।
दोष अछि हमरो,अहूँ के
तैं रहल मिथिला उपेक्षित।
नहि भेलहुँ हम संगठित
तैं हैत की परिणाम इच्छित।
घर मे दुबकल अपन
हम ठाढ़ खिड़की मे तकै छी।
कंठ अछि अवरुद्ध,कहुना
मैथिली जय हो! गबै छी।
छै विवशता की,कहत के
अछि कतौ नहि लोक जागल।
पश्चिमी देशक तिमिर मे
जा रहल अछि लोक भागल।
आऊ सुनियौ सभ केहन अछि
ई हमर भाषा मधुरगर ।
स्वच्छ, निर्मल वर्ण जहिना
गाम के अछि माटि मिठगर।
मैथिली के शब्द मे छै
भोर कें आभा समेटल।
पढ़ि लिय इतिहास ,भेटत
ज्ञान के चिर सत्य फेंटल।
अछि हमर उन्नत धरोहर
सभ्यता आ संस्कारक।
दैत छी सम्मान सबकें
छी धनी एखनहुँ बिचारक।
मातृभाषा मैथिली कें
हम कोना बैसू बिसरि क’।
अछि हमर ई प्राण जा धरि
हम रहब ता ठाढ़ अड़ि क’।
जोर सँ चिकरब मुदा नहि
मुँह झँपने आइ भागब।
आधुनिकता के इजोतक
आइ हम परिधान त्यागब।

झूठ के साटल मुखौटा
फेक सबके आइ कहब ै
मैथिली भाषा हमर अछि
जाति अछि मैथिल चिकड़बै।






1 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. मैथिली के शब्द मे छै
    भोर कें आभा समेटल।
    पढ़ि लिय इतिहास ,भेटत
    ज्ञान के चिर सत्य फेंटल।

    bad nik tartamyayukta gap kahaliyai atish ji

    जवाब देंहटाएं

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