सृजन- अंतिम खेप- सतीश चन्द्र झा

पैध होइते शिशु केना ओ
किछु बनै छै दुष्ट दानव।
अंध मोनक वासना में
होइत अछि पथ भ्रष्ट मानव।

बुझि सकल नहि गर्भ मे ओ
भावना नारी हृदय केँ।
बनि असुर निज आचरण सँ 
क’ देलक लज्जित समय कँे ।

होइत अछि नारी ‘बलत्कृत’
अछि पुरूष ओ के जगत कँे ?
गर्भ नारी सँ धरा में 
जन्म नहि लेलक कहू के ?

छी! घृणित कामी, कुकर्मी
छै पुरूष पाथर केहन ओ।
यंत्राणा दै छै केना क’ 
आइ ककरो देह कँे ओ।

भरि जेतै ओ घाव कहियो
देह नोचल , चेन्ह चोटक।
जन्म भरि बिसरत केनाक’, 
ओ मुदा किछु दंश मोनक।

मोन नहि भोगल बिसरतै, 
ज्वार पीड़ा के उमड़तै ।
लाल टुह टुह घाव बनिक 
जन्म भरि नहि आब भरतै।

पढ़ि लितय जौं भाग्य ममता
अछि अधर्मी ई जगत के।
नहि करत ओ प्राण रक्षा
पेट मे बैसल मनुख के ।

जन्म द’ क’ ओहि पुरुष के
अछि कहू के भेल दोषी ?
देव दोषी ? काल दोषी ?
गर्भ अथवा बीज दोषी ?

छै नियति नारी के एखनहुँ
हाथ बान्हल, ठोर साटल।
के देतै सम्मान ओकरा
छै कहाँ भव धर्म बाँचल।

ग्रन्थ के उपदेश ज्ञान क
अछि जतेक लीखल विगत मे।
भेल अछि निर्माण सभटा
मात्रा नारी लय जगत मे।

क’ सकत अवहेलना नहि
दृष्टि छै सदिखन समाजक।
नहि केलक विद्रोह कहियो
धर्म छै बंधन विवाहक।

जन्म सँ छै ज्ञान भेटल
धर्म पत्नी के निभायब।
स्वर्ग अछि पति के चरण मे
कष्ट जे भेटय उठायब।

ध्यान, तप, सेवा, समर्पण
जन्म भरि नहि बात बिसरब।
प्राण नहि निकलय जखन धरि
द्वारि के नहि नांघि उतरब।


नहि हेतै किछु आब कनने,
शक्ति चाही खूब जोड़क।
नोर मे सामथ्र्य रहितै...
नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।

छीन क’ ओ ल’ सकत जँ
किछु अपन सम्मान कहियो।
चुप रहत भेटतै केना क’
दान मेे अधिकार कहियो ।

23 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. बुझि सकल नहि गर्भ मे ओ
    भावना नारी हृदय केँ।
    बनि असुर निज आचरण सँ
    क’ देलक लज्जित समय कँे ।

    हृदयस्पर्शी आ भावनात्मक रचना I एतेक सुंदर रचना के लेल अपनें धन्यवाद के पात्र थिकहूँ I

    मनीष झा "बौआभाई"
    http://jhamanish4u.blogspot.com/

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  2. झुमा देलहुँ सतीशजी, तीनू खेप फेरसँ पढ़लहुँ। नव अर्थ ज्ञात भेल।

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  3. satish chandra jha
    apnek maithli kabita bahut... bahut nik lagal.

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  4. पैध होइते शिशु केना ओकिछु बनै छै दुष्ट दानव।अंध मोनक वासना मेंहोइत अछि पथ भ्रष्ट मानव।
    बुझि सकल नहि गर्भ मे ओभावना नारी हृदय केँ।बनि असुर निज आचरण सँ क’ देलक लज्जित समय कँे ।

    ......
    ......
    नहि हेतै किछु आब कनने,शक्ति चाही खूब जोड़क।नोर मे सामथ्र्य रहितै...नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
    छीन क’ ओ ल’ सकत जँकिछु अपन सम्मान कहियो।चुप रहत भेटतै केना क’दान मेे अधिकार कहियो ।

    dhanyavad satish ji etek nik rachna lel

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  5. नहि हेतै किछु आब कनने,शक्ति चाही खूब जोड़क।नोर मे सामथ्र्य रहितै...नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
    छीन क’ ओ ल’ सकत जँकिछु अपन सम्मान कहियो।चुप रहत भेटतै केना क’दान मेे अधिकार कहियो ।

    nik

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  6. पैध होइते शिशु केना ओकिछु बनै छै दुष्ट दानव।अंध मोनक वासना मेंहोइत अछि पथ भ्रष्ट मानव।
    बुझि सकल नहि गर्भ मे ओभावना नारी हृदय केँ।बनि असुर निज आचरण सँ क’ देलक लज्जित समय कँे ।
    होइत अछि नारी ‘बलत्कृत’अछि पुरूष ओ के जगत कँे ?गर्भ नारी सँ धरा में जन्म नहि लेलक कहू के ?
    छी! घृणित कामी, कुकर्मीछै पुरूष पाथर केहन ओ।यंत्राणा दै छै केना क’ आइ ककरो देह कँे ओ।
    भरि जेतै ओ घाव कहियोदेह नोचल , चेन्ह चोटक।जन्म भरि बिसरत केनाक’, ओ मुदा किछु दंश मोनक।
    मोन नहि भोगल बिसरतै, ज्वार पीड़ा के उमड़तै ।लाल टुह टुह घाव बनिक जन्म भरि नहि आब भरतै।
    पढ़ि लितय जौं भाग्य ममताअछि अधर्मी ई जगत के।नहि करत ओ प्राण रक्षापेट मे बैसल मनुख के ।
    जन्म द’ क’ ओहि पुरुष केअछि कहू के भेल दोषी ?देव दोषी ? काल दोषी ?गर्भ अथवा बीज दोषी ?
    छै नियति नारी के एखनहुँहाथ बान्हल, ठोर साटल।के देतै सम्मान ओकराछै कहाँ भव धर्म बाँचल।
    ग्रन्थ के उपदेश ज्ञान कअछि जतेक लीखल विगत मे।भेल अछि निर्माण सभटामात्रा नारी लय जगत मे।
    क’ सकत अवहेलना नहिदृष्टि छै सदिखन समाजक।नहि केलक विद्रोह कहियोधर्म छै बंधन विवाहक।
    जन्म सँ छै ज्ञान भेटलधर्म पत्नी के निभायब।स्वर्ग अछि पति के चरण मेकष्ट जे भेटय उठायब।
    ध्यान, तप, सेवा, समर्पणजन्म भरि नहि बात बिसरब।प्राण नहि निकलय जखन धरिद्वारि के नहि नांघि उतरब।

    नहि हेतै किछु आब कनने,शक्ति चाही खूब जोड़क।नोर मे सामथ्र्य रहितै...नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
    छीन क’ ओ ल’ सकत जँकिछु अपन सम्मान कहियो।चुप रहत भेटतै केना क’दान मेे अधिकार कहियो ।

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  7. ehi blog par jahiya abait chhi nav racha bhetite ta achhi, ehina satish ji aa aan sabh gotek yogdan sarahniya

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  8. मोन नहि भोगल बिसरतै, ज्वार पीड़ा के उमड़तै ।लाल टुह टुह घाव बनिक जन्म भरि नहि आब भरतै।
    पढ़ि लितय जौं भाग्य ममताअछि अधर्मी ई जगत के।नहि करत ओ प्राण रक्षापेट मे बैसल मनुख के ।
    जन्म द’ क’ ओहि पुरुष केअछि कहू के भेल दोषी ?देव दोषी ? काल दोषी ?गर्भ अथवा बीज दोषी ?

    nik bhai bad nik

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  9. अहाँक नारीक प्रति समर्पित ई सृंखला बहुत रास नव बाट खोलत,संयोगसँ घर-बाहरक नव अंक सेहो काल्हिये भेटल जतए अहाँक पतखरनी कविता पढ़लहुँ। अहाँक सोच एकटा दिशा लेने अछि से स्तुत्य।

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