पैध होइते शिशु केना ओ
किछु बनै छै दुष्ट दानव।
अंध मोनक वासना में
होइत अछि पथ भ्रष्ट मानव।
बुझि सकल नहि गर्भ मे ओ
भावना नारी हृदय केँ।
बनि असुर निज आचरण सँ
क’ देलक लज्जित समय कँे ।
होइत अछि नारी ‘बलत्कृत’
अछि पुरूष ओ के जगत कँे ?
गर्भ नारी सँ धरा में
जन्म नहि लेलक कहू के ?
छी! घृणित कामी, कुकर्मी
छै पुरूष पाथर केहन ओ।
यंत्राणा दै छै केना क’
आइ ककरो देह कँे ओ।
भरि जेतै ओ घाव कहियो
देह नोचल , चेन्ह चोटक।
जन्म भरि बिसरत केनाक’,
ओ मुदा किछु दंश मोनक।
मोन नहि भोगल बिसरतै,
ज्वार पीड़ा के उमड़तै ।
लाल टुह टुह घाव बनिक
जन्म भरि नहि आब भरतै।
पढ़ि लितय जौं भाग्य ममता
अछि अधर्मी ई जगत के।
नहि करत ओ प्राण रक्षा
पेट मे बैसल मनुख के ।
जन्म द’ क’ ओहि पुरुष के
अछि कहू के भेल दोषी ?
देव दोषी ? काल दोषी ?
गर्भ अथवा बीज दोषी ?
छै नियति नारी के एखनहुँ
हाथ बान्हल, ठोर साटल।
के देतै सम्मान ओकरा
छै कहाँ भव धर्म बाँचल।
ग्रन्थ के उपदेश ज्ञान क
अछि जतेक लीखल विगत मे।
भेल अछि निर्माण सभटा
मात्रा नारी लय जगत मे।
क’ सकत अवहेलना नहि
दृष्टि छै सदिखन समाजक।
नहि केलक विद्रोह कहियो
धर्म छै बंधन विवाहक।
जन्म सँ छै ज्ञान भेटल
धर्म पत्नी के निभायब।
स्वर्ग अछि पति के चरण मे
कष्ट जे भेटय उठायब।
ध्यान, तप, सेवा, समर्पण
जन्म भरि नहि बात बिसरब।
प्राण नहि निकलय जखन धरि
द्वारि के नहि नांघि उतरब।
नहि हेतै किछु आब कनने,
शक्ति चाही खूब जोड़क।
नोर मे सामथ्र्य रहितै...
नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
छीन क’ ओ ल’ सकत जँ
किछु अपन सम्मान कहियो।
चुप रहत भेटतै केना क’
दान मेे अधिकार कहियो ।
bahut nik laagal.
जवाब देंहटाएंबुझि सकल नहि गर्भ मे ओ
जवाब देंहटाएंभावना नारी हृदय केँ।
बनि असुर निज आचरण सँ
क’ देलक लज्जित समय कँे ।
हृदयस्पर्शी आ भावनात्मक रचना I एतेक सुंदर रचना के लेल अपनें धन्यवाद के पात्र थिकहूँ I
मनीष झा "बौआभाई"
http://jhamanish4u.blogspot.com/
झुमा देलहुँ सतीशजी, तीनू खेप फेरसँ पढ़लहुँ। नव अर्थ ज्ञात भेल।
जवाब देंहटाएंbad ni lagal bhai ji
जवाब देंहटाएंbahu nik ee tesar bhag seho, nichor bhetal
जवाब देंहटाएंsatish chandra jha
जवाब देंहटाएंapnek maithli kabita bahut... bahut nik lagal.
tesar bhag seho bad nik
जवाब देंहटाएंपैध होइते शिशु केना ओकिछु बनै छै दुष्ट दानव।अंध मोनक वासना मेंहोइत अछि पथ भ्रष्ट मानव।
जवाब देंहटाएंबुझि सकल नहि गर्भ मे ओभावना नारी हृदय केँ।बनि असुर निज आचरण सँ क’ देलक लज्जित समय कँे ।
......
......
नहि हेतै किछु आब कनने,शक्ति चाही खूब जोड़क।नोर मे सामथ्र्य रहितै...नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
छीन क’ ओ ल’ सकत जँकिछु अपन सम्मान कहियो।चुप रहत भेटतै केना क’दान मेे अधिकार कहियो ।
dhanyavad satish ji etek nik rachna lel
nikgar kavita
जवाब देंहटाएंflow rahay kavita me eke nisas me padhi gelahu
जवाब देंहटाएंsrijan srinkhla ker sabh kavita nik lagal, teenoo bhag
जवाब देंहटाएंmongar kavita
जवाब देंहटाएंbah bhai mon par raj karai chhi ahan
जवाब देंहटाएंmanohari
जवाब देंहटाएंनहि हेतै किछु आब कनने,शक्ति चाही खूब जोड़क।नोर मे सामथ्र्य रहितै...नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
जवाब देंहटाएंछीन क’ ओ ल’ सकत जँकिछु अपन सम्मान कहियो।चुप रहत भेटतै केना क’दान मेे अधिकार कहियो ।
nik
srijanak srijanta mohi lelak
जवाब देंहटाएंपैध होइते शिशु केना ओकिछु बनै छै दुष्ट दानव।अंध मोनक वासना मेंहोइत अछि पथ भ्रष्ट मानव।
जवाब देंहटाएंबुझि सकल नहि गर्भ मे ओभावना नारी हृदय केँ।बनि असुर निज आचरण सँ क’ देलक लज्जित समय कँे ।
होइत अछि नारी ‘बलत्कृत’अछि पुरूष ओ के जगत कँे ?गर्भ नारी सँ धरा में जन्म नहि लेलक कहू के ?
छी! घृणित कामी, कुकर्मीछै पुरूष पाथर केहन ओ।यंत्राणा दै छै केना क’ आइ ककरो देह कँे ओ।
भरि जेतै ओ घाव कहियोदेह नोचल , चेन्ह चोटक।जन्म भरि बिसरत केनाक’, ओ मुदा किछु दंश मोनक।
मोन नहि भोगल बिसरतै, ज्वार पीड़ा के उमड़तै ।लाल टुह टुह घाव बनिक जन्म भरि नहि आब भरतै।
पढ़ि लितय जौं भाग्य ममताअछि अधर्मी ई जगत के।नहि करत ओ प्राण रक्षापेट मे बैसल मनुख के ।
जन्म द’ क’ ओहि पुरुष केअछि कहू के भेल दोषी ?देव दोषी ? काल दोषी ?गर्भ अथवा बीज दोषी ?
छै नियति नारी के एखनहुँहाथ बान्हल, ठोर साटल।के देतै सम्मान ओकराछै कहाँ भव धर्म बाँचल।
ग्रन्थ के उपदेश ज्ञान कअछि जतेक लीखल विगत मे।भेल अछि निर्माण सभटामात्रा नारी लय जगत मे।
क’ सकत अवहेलना नहिदृष्टि छै सदिखन समाजक।नहि केलक विद्रोह कहियोधर्म छै बंधन विवाहक।
जन्म सँ छै ज्ञान भेटलधर्म पत्नी के निभायब।स्वर्ग अछि पति के चरण मेकष्ट जे भेटय उठायब।
ध्यान, तप, सेवा, समर्पणजन्म भरि नहि बात बिसरब।प्राण नहि निकलय जखन धरिद्वारि के नहि नांघि उतरब।
नहि हेतै किछु आब कनने,शक्ति चाही खूब जोड़क।नोर मे सामथ्र्य रहितै...नहि रहैत ओ ‘वस्तु भोगक’।
छीन क’ ओ ल’ सकत जँकिछु अपन सम्मान कहियो।चुप रहत भेटतै केना क’दान मेे अधिकार कहियो ।
ehi blog par jahiya abait chhi nav racha bhetite ta achhi, ehina satish ji aa aan sabh gotek yogdan sarahniya
जवाब देंहटाएंमोन नहि भोगल बिसरतै, ज्वार पीड़ा के उमड़तै ।लाल टुह टुह घाव बनिक जन्म भरि नहि आब भरतै।
जवाब देंहटाएंपढ़ि लितय जौं भाग्य ममताअछि अधर्मी ई जगत के।नहि करत ओ प्राण रक्षापेट मे बैसल मनुख के ।
जन्म द’ क’ ओहि पुरुष केअछि कहू के भेल दोषी ?देव दोषी ? काल दोषी ?गर्भ अथवा बीज दोषी ?
nik bhai bad nik
bhai ji, ehina likhait rahoo badhait rahoo
जवाब देंहटाएंee srinkhlak sukhad samapti par dhanyavad,
जवाब देंहटाएंnik prastuti rahal
nootan kavitak sheeghra prastutik aasha achhi ahan se.
जवाब देंहटाएंअहाँक नारीक प्रति समर्पित ई सृंखला बहुत रास नव बाट खोलत,संयोगसँ घर-बाहरक नव अंक सेहो काल्हिये भेटल जतए अहाँक पतखरनी कविता पढ़लहुँ। अहाँक सोच एकटा दिशा लेने अछि से स्तुत्य।
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