दहेज मुक्ति के लेल मिथिलांचल स शुरू भेल नव् प्रयास


 दहेज मुक्ति के लेल मिथिलांचल स शुरू भेल नव् प्रयास
     पवन झा”अग्निवाण”
भारतीय संस्कृति के प्राचीन जनपद में स एक राजा जनक के नगरी मिथिलाक अतीत जतेक स्वर्णिम छल वर्तमान उतवे विवर्ण आइछ। देवभाषा संस्कृत के पीठस्थली मिथिलांचल में एक स बढ़ी क एक संस्कृत के विद्वान भेला जिनकर विद्वता भारतीय इतिहास के धरोहर आइछ। उपनिषद के रचयिता मुनि याज्ञवल्क्य, गौतम, कनाद, कपिल, कौशिक, वाचस्पति, महामह गोकुल वाचस्पति, विद्यापति, मंडन मिश्र, अयाची मिश्र, सन नाम इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में रवि के प्रखर तेज के समान आलोकित आइछ। चंद्रा झा मैथिली में रामायण के रचना केलि। हिन्दू संस्कृति के संस्थापक आदिगुरु शंकराचार्य के सेहो मिथिला में मंडन मिश्र के विद्वान पत्नी भारती स पराजित होव परलैन। कहल जाइत आइछ ओई समय मिथिला में पनिहारिन सब स संस्कृत में वार्तालाप सुनी शंकराचार्य आश्चर्यचकित भेला।
कालांतर में हिन्दी व्याकरण के रचयिता पाणिनी , जयमंत मिश्र, महामहोपाध्याय मुकुन्द झा “ बक्शी” मदन मोहन उपाध्याय, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर”, बैद्यनाथ मिश्र “यात्री” अर्थात नागार्जुन, हरिमोहन झा, काशीकान्त मधुप, कालीकांत झा, फणीश्वर नाथ रेणु, बाबू गंगानाथ झा, डॉक्टर अमरनाथ झा, बुद्धिधारी सिंह दिनकर, पंडित जयकान्त झा, डॉक्टर सुभद्र झा, सन उच्च कोटि के विद्वान और साहित्यिक व्यक्तित्वों के चलते मिथिलांचलक ख्याति रहे। अइयो राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त कतिपय लेखक, पत्रकार, कवि मिथिलांचल स संबन्धित छैथ। मशहूर नवगीतकार डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्रा, कवयित्री अनामिका सहित समाचार चैनल तथा अखबार में चर्चित पत्रकारक बड़ाका समूह ई क्षेत्र स संबंधित छैथ। मगर एकर फायदा ई क्षेत्र के नहीं भेट पावी रहल आइछ। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अनवरत उपेक्षा और स्थानीय लोकक विकाशविमुख मानसिकता के चलते कहियो देश का गौरव रहल इ क्षेत्र आई सहायता के भीख पर आश्रित आइछ। बढ़ीग्रस्त क्षेत्र होव के कारण प्रतिवर्ष इ क्षेत्र कोशी, गंडक, गंगा आदि नदि के प्रकोप झेलैत आइछ। ऊपर स कर्मकांड के बोझ स दबल इ क्षेत्र चहियो क भी विकास के नव अवधारणा के अपनेवा में सफल नै भ पवी रहल आइछ। जे लोक शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक रूप स सक्षम छैथ सब आत्मकेंद्रित अधिक छैथ, तै हेतु हुनकर योगदान ई क्षेत्र के विकास में नगण्य छैन। मिथिलांचल स जे कोनो प्रबुद्धजन बाहर गेला ओ कहियो घुमियो क ई क्षेत्र के विकास के तरफ ध्यान नहीं देलखिन। पूरा देश और विश्व में मैथिल मिल जेता मगर अपन मातृभूमि के विकासक हुनका कनिको चिंता नई छैन।
एहन में सामाजिक आंदोलन के जरूरत के देखैत स्थानीय और प्रवासी शिक्षित एवं आधुनिक विचार के एक युवा समूह नव तरीका स मिथिलाञ्चल में अपन उपस्थिती दर्ज़ करेला। दहेज मुक्त मिथला के बैनर के निचा संगठित भ इ युवक सब अपन इ मुहिम का नाम देलखिन “ दहेज मुक्त मिथिला”।
... “दहेज मुक्त मिथिला” जेना कि नाम स स्पष्ट आइछ कि इ एकटा एहन आंदोलन छाई जेकर बुनियाद दहेज स मुक्ति के लेल रखल गेल आइछ। बिहार के महत्वपूर्ण क्षेत्र मिथिलांचल स जुरल और देश-विदेश में पसरल शिक्षित और प्रगतिशील युवकक एक समूह मैथिल समाज स दहेज के खत्म करवाक संकल्प के संग अई आंदोलन के शुरुआत केला। सामंती सोच के मैथिल समाज में ऐना त इ आंदोलन के आगू बहुत रास मुश्किलों के सामना कर परतइ मगर शुरुआती तौर पर एकरा भेट रहल सफलता स ऐना लागी रहल आइछ, कि मिथिलांचल के आम आदमी में दहेज के प्रति वितृष्णा के भाव घर कई लेने छैन और ऊ सब अई स निजात पेवाक एक्छुक छैथ।
दहेज मुक्त मिथिला के अध्यक्ष प्रवीण नारायण चौधरी कहैत छथिन जे कि “मिथिलांचल में अतीत मे स्वयंवर की प्रथा छल जाकर प्रमाण मिथिला नरेश राजा जनक के कन्या सीताक स्वयंवर थिक। समय के साथ मिथिलांचल में सेहो विवाहक रूप में विकृति आयल और नारीप्रधान इ समाज पुरुषक धनलिपसाक शिकार होइत गेल। कहियो अई समाज में शादी में दहेज के नाम पर झूटका(ईंटक टुकड़ा) गिन क देल जाइत छल, वेह आइ दहेजक रकम लाखों में पहुँच गेल। दहेज के साथ बाराती के आवाभगत में जे रुपैया खर्च होइत आइछ ओकर आंकलन स देह सिहर लागैत आइछ। जेना-जेना समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार बढल दहेज के रकम सेहो बढ़ी रहल आइछ।“ श्री चौधरी आगू कहैत छैथ कि बड़का बिडम्बना छई कि लोक लड़की के शिक्षा पर भेल खर्च के स्वीकार करब बिसईर जाइत छैथ।
संस्थाक उपाध्यक्षा श्रीमती करुणा झा कहैत छैथ जे “मिथिलांचलक बिडम्बना इ रहल कि अत नारी के शक्ति के प्रतीक माइन सामाजिक तौर पर त खूब मर्यादित कैल गेल मुदा परिवार में ओकरा अधिकारहीन राखल गेल। ओकर जीवन परिवार के पुरुषक मर्ज़ी पर निर्भरशील रही गेल। शादी के बात त दूर संपत्ति में भी ओकर मर्ज़ी नहीं चलल। अई लेल दहेज का दानव अत बढैत चल गेल। लड़कि पिता के पसंद के लड़के स व्याहल जेवक अभिशप्त रहली। एकर असर यह भेल कि बेमेल ब्याह होव लागल और समाज में लड़कि सब घुंटी-घुंटी क जीवन जीवक बिवश भा गेली।“
अई मुहिम के मिथिलांचल के गाँव-गाँव में प्रचारित-प्रसारित करवाक हेतु आधुनिक संचार माध्यम के संग-संग पारंपरिक उपाय के सेहो सहारा लेल जा रहल आइछ। सम्पूर्ण देश में पसरल सदस्य अपन-अपन तरीका स अई मुहिम के प्रचारित कय रहल छैथ।
एक समय मिथिलांचल में सौराठ सभा काफी लोकप्रिय छल जहां विवाह योग्य युवक अपन परिवार के साथ उपस्थित होइत छाला और कन्या पक्ष ओता जाक अपन कन्या के लेल योग्य वर के चुनाव करैत छला। इ प्रथा दरभंगा महाराज द्वारा शुरू करावल गेल छल। शुरुआती दिन में संस्कृत के विद्वान के मंडली शाश्त्रार्थ के लेल अत जाइत छला। राजाक उपस्थिति में शाश्त्रार्थ में हार-जीतक निर्णय होइत छल। यदि कोनो युवा अपना से अधिक उम्र के विद्वान के पराजित करैत छला त ओई युवक के साथ पराजित विद्वान अपन पुत्री की विवाह करवा देत छलखिन। बाद में इ सभा बिना शाश्त्रार्थ के ही योग्य वर ढूँढवाक् एक टा जरिया बनल। आधुनिक काल के लोक इ सभा के नकाइर क मिथिलांचलक अभिनव प्रथा के समाप्त करवाक काज केला।
संस्था के सलाहकार वरिष्ठ आयकर अधिकारी ओमप्रकाश झा कहैत छैथ जे “मिथिलांचल के अपन पुरान प्रथा के जरिये ही सुधार के रास्ता पर आबक चाही। प्रतिवर्ष सौराठ सभाक आयोजन हो और लोग योग्य वर ढूंढ़वाक् लेल ओत आबैथ जेकर पहिल शर्त हो की दहेजक कोनो बात अत नई होयत तखन दहेज पर लगाम लगाव संभव होयात। पहले सेहो सौराठ में दहेज प्रतिबंधित छल। विवाह में बाराती के संख्या पर सेहो अंकुश लगनाई जरूरत आईछ। संप्रति देखल जाइत आइछ जे कि मिथिललांचल में विवाह में बाराति के संख्या और हुनक खान-पान के फेहरिस्त बढ़ैत जा रहल आइछ। गरीब त दहेज स अधिक बाराति के संख्या स डेराईत छैथ।”
बात सिर्फ आर्थिक लेन-देन तक सीमित होई त भी कोनो बात। अब त कन्या के साथ साज-ओ-सामान के जे फेहरिस्त प्रस्तुत कायल जाइत आइछ ओ बड़का-बड़का के होश उड़ा देत छैन। अई पर त आलम इ कि अधिकतर लड़कि विवाह के बाद दुखमय जीवन बितेबाक लेल मजबूर छैथ, किया की स्थानीय स्तर पर कोनो उद्योग नहीं आइछ और परदेश में खर्च के जे आलम छई ओ किनको स छुपल नई छैन।
“दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार के एकटा नव धारा चलेवा में जुटल लोक के सामने सबस बड़ा चुनौती मैथिल समाज के ओई लोक स आयत जे महानगर में रहनिहार नीक नौकरी या व्यवसाय के जरिये आर्थिक रूप से समृद्ध भा चुकल छैथ और दहेज के अपन सामाजिक हैसियत का पैमाना मानैत छैथ। एहन लोक निश्चित रूप स विकल्प के तलाश में अई आंदोलन के कुंद करवाक प्रयास करता जेकरा सामूहिक सामाजिक प्रतिरोध के जरिये ही रोकल और बाया जा सकैत आइछ। किछु राजनेता जे अपना आप के मैथिल समाज के मसीहा मानैत छैथ हुनको लेल सेहो अहन आंदोलन रुचिकर नहीं छैन। पर वक़्त के जरूरत छई कि इ क्षेत्र एहन आंदोलन के जरिये अपना में सुधार लाबैथ।
 
 
जय मैथिल , जय मिथिला समाज

1 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

एक टिप्पणी भेजें

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

और नया पुराने