गजल




की कहबै, कोना कहबै, जे बुझतै ओ लुझतै
आँखिक नोर खसतै,    खन रूसतै-बिहुसतै

दाबी देखेतै आ हम देखबै नुका कऽ अँचरासँ
बहरा जाइ छी घबरा कऽ, नै ताकै ओ ने बाजै ओ

देखितिऐ अँचरासँ, आ बहरा जैतौं दुअरासँ
मोनसँ बेसी उड़ै चिड़ै, चिड़ैक मोन बनतै

बनि माँछ अकुलाइ छी बाझब जालमे कक्ख
जँ फँसि त्राण पाएब आँखि बओने से देखतै

चम्मन फूल भमरा, गुम्म, जब्बर, छै सोझाँ ठाढ़
जलबाह सोझाँ  माँछ, ऐरावत बनल, देखै ओ

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