शिव कुमार झा - गजल

आव विसरव कोना सुनू जननी अहॉ, कतेक निर्मल सेहंतित अहॅक ऑचर।
हिय सिहकै जखन वहै लोचन तखन नोर पोछलहुॅ लपेटि हम अहॅक ऑचर।।


कोना अयलहुॅ खलक ? मोन नहि अछि कथा, पवित्र पट सॅ सटल देह भागल व्यथा।
सिनेह निश्छल अनमोल प्रथम सुनलहुॅ मातृबोल, मोह ममताक आन के‘ करत परतर?


दंत दुग्धक उगल, नीर पेट सॅ वहल, देह लुत्ती भरल कंठ सरिता सुखल।
जी करै छल विसविस तालु अतुल टिसटिस, मुॅह मे लऽ चिवयलहुॅ अहॅक ऑचर।



नेना वयसक अवसान ताक‘ चललहुॅ हम ज्ञान, कएलहुॅ गणना अशुद्ध गुरू फोड़ि देलनि कान।
सिलेट वाट पर पटकि मॉक कोर मे सटकि, तीतल कमलाक धार सॅ अहॅक ऑचर।


देखि पॉचमक फल मातृदीक्षा सफल, भाल तिरपित मुदा ! उर तृष्णा भरल।
गेलहुॅ कत‘ हे अम्बे कत‘ गेल ऑचर, ताकि रहलहुॅ हम ऑगन सॅ पिपरक तर।

3 टिप्पणियाँ

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