गजल-१
आशवर शीघ्र श्रावण मे औता पिया,
प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
देखि हुनका सुखक मारि सहि ने सकब,खसि पड़ब द्वारि पर ठाढ़ रहि ने सकब,
पाशतर थीर छाती लगौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
भऽ उमंगित बहत आड़नक बात ई,उल्लसित भऽ रहत चाननक गात ई,
पाततर पिक बनल स्वर सुनौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
मन उमड़ि गेल बनि गेल यमुना नदी,तन सिहरि गेल जहिना कदंबक कली,
श्वास पर धीर बंसुरी बजौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
गजल-२
स्वप्न सुन्दरि अहाॅ जीवनक सहचरी ।
निन्न मे आउ अहिना घड़ी दू घड़ी ।।
भोग भोगल जते जे बनल कल्पना,आब भऽ गेल अछि अन्तरक अनमना,
हऽम मानव अहाॅ देव लोकक परी ।
मात्र उत्तापदायी बसंती छटा,आब संतापदायी अषाढ़ी घटा,
काॅट लागनि सुखायल गुलाबी छड़ी ।
रूप अमरित पिया कऽ अमर जे केलहुॅ,विक्ख विरहक खोआ फेर की कऽ देलहुॅ ?
घऽर मे जिन्दगी गऽर मरनक कड़ी ।
वेर वेरूक अहॅक फेर अभयागतम्,अछि सदा सर्वदा हार्दिक स्वागतम्,
कप्प चाहक दुहू नैन मन तस्तरी ।
गजल-३
श्याम होइछ परक प्रेम अधलाह हे,
तेॅ बिसरि जाह हमरा बिसरि जाह हे ।
दीप बुझि रूप केॅ जुनि हृदय मे धरह,मोहवाती जरा तेल नेहक भरह ।
कऽ देतऽ जिन्दगी केॅ ई सुड्डाह हे,तेॅ बिसरि जाह हमरा विसरि जाह हे ।
हऽम मधुबन मे साॅझक पहिल तारिका,तोॅ फराके बनावह अपन द्वारिका ।
उठि रहल अछि अनेरेक अफवाह हे,
हम विमल राश केर खास संयोजिका,छी प्रवल गोप केर प्रेयसी गोपिका,
घाट सॅ खुलि चुकल अछि हमर नाह हे,
मोन मे उत्तरी सागरक जल भरह,लाख चुचुकारी बर्फक महल मे धरह,
हम तहू ठाम बरबानलक धाह हे,
आशवर शीघ्र श्रावण मे औता पिया,
प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
देखि हुनका सुखक मारि सहि ने सकब,खसि पड़ब द्वारि पर ठाढ़ रहि ने सकब,
पाशतर थीर छाती लगौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
भऽ उमंगित बहत आड़नक बात ई,उल्लसित भऽ रहत चाननक गात ई,
पाततर पिक बनल स्वर सुनौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
मन उमड़ि गेल बनि गेल यमुना नदी,तन सिहरि गेल जहिना कदंबक कली,
श्वास पर धीर बंसुरी बजौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
गजल-२
स्वप्न सुन्दरि अहाॅ जीवनक सहचरी ।
निन्न मे आउ अहिना घड़ी दू घड़ी ।।
भोग भोगल जते जे बनल कल्पना,आब भऽ गेल अछि अन्तरक अनमना,
हऽम मानव अहाॅ देव लोकक परी ।
मात्र उत्तापदायी बसंती छटा,आब संतापदायी अषाढ़ी घटा,
काॅट लागनि सुखायल गुलाबी छड़ी ।
रूप अमरित पिया कऽ अमर जे केलहुॅ,विक्ख विरहक खोआ फेर की कऽ देलहुॅ ?
घऽर मे जिन्दगी गऽर मरनक कड़ी ।
वेर वेरूक अहॅक फेर अभयागतम्,अछि सदा सर्वदा हार्दिक स्वागतम्,
कप्प चाहक दुहू नैन मन तस्तरी ।
गजल-३
श्याम होइछ परक प्रेम अधलाह हे,
तेॅ बिसरि जाह हमरा बिसरि जाह हे ।
दीप बुझि रूप केॅ जुनि हृदय मे धरह,मोहवाती जरा तेल नेहक भरह ।
कऽ देतऽ जिन्दगी केॅ ई सुड्डाह हे,तेॅ बिसरि जाह हमरा विसरि जाह हे ।
हऽम मधुबन मे साॅझक पहिल तारिका,तोॅ फराके बनावह अपन द्वारिका ।
उठि रहल अछि अनेरेक अफवाह हे,
हम विमल राश केर खास संयोजिका,छी प्रवल गोप केर प्रेयसी गोपिका,
घाट सॅ खुलि चुकल अछि हमर नाह हे,
मोन मे उत्तरी सागरक जल भरह,लाख चुचुकारी बर्फक महल मे धरह,
हम तहू ठाम बरबानलक धाह हे,
ehi neenoo amoolya gazalak prastuti lel dhanyavad
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