संघ लोक सेवा आयोग-मैथिली-३


उपसर्ग: लौकिक संस्कृतमे उपसर्ग क्रियासँ पहिने अबैत अछि मुदा वैदिक संस्कृतमे पहिने, बादमे, अलगसँ आ कतहु अन्तरालक बाद सेहो अबैत अछि। संगहि वैदिक संस्कृतमे जे एक बेर उपसर्ग क्रियाक संग आबि गेल तँ तकरा बाद ओहि मंत्रमे मात्र उपसर्गक प्रयोग होएत आ वैह उपसर्गयुक्त क्रियाक द्योतक होएत।
समास: वैदिक संस्कृतमे समासमे सेहो कखनो काल भिन्नता छै, जेना अष्टक बाद कोनो शब्द होइ तँ ओ अष्टा भऽ जाइ छै- अष्टापदी। पितृ आ मातृक द्वन्द्व समास भेलापर दुनूमे आ लगै छै आ गुण होइ छै- पितरामातरा।
लेट लकार: लौकिक संस्कृतमे लेट लकारक प्रयोग नहि होइत अछि मुदा वैदिक संस्कृतमे होइत अछि जेना भवाति, पताति लौकिकमे मात्र भवति, पततिसँ निदृष्ट होइत अछि।
वैदिक आ लौकिक संस्कृत कोनो दू भाषा नहि अछि वरन् लौकिक संस्कृत, वैदिक संस्कृतिक सरल रूप अछि। वैदिक संस्कृतमे लौकिक संस्कृतसँ सभ किछु बेशी अछि (अपवाद- लुट् आ लृट् लकारक वैदिक संस्कृतमे कम उपयोग।)
संहिता, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक आ उपनिषदक भाषा वैदिक संस्कृत कहल जाइत अछि आ तकर बादक संस्कृत लौकिक संस्कृत कहल जाइत अछि।
दुनू संस्कृतमे धातु, शब्द आ अर्थ प्रायः एक्के अछि।
दुनूमे तीन लिंग, तीन वचन आ तीन पुरुष होइत अछि।
दुनूमे सभ शब्द प्रायः धातु अछि; रूढ़ शब्द बड्ड कम अछि।
समास दुनूमे अछि, हँ लौकिक संस्कृतमे एकर बेशी प्रयोग देखबामे अबैत अछि।
छन्द सेहो दुनूमे मोटा-मोटी एक्के रङक भेटत।
धातुक गण मध्य विभाजन सेहो दुनूमे एक्के रङ भेटत।
णिच्, सन् प्रत्यय दुनूमे एक्के रङ भेटत।
पदक निर्माण दुनूमे एक्के तरीकासँ होइत अछि।
सुप्-तिङ-कृत्-तद्धित दुनूमे एक्के रङ भेटत।
दुनूमे शब्दक क्रम आगाँ पाछाँ भेने अर्थक परिवर्तन नहि होइत अछि। दुनूमे सन्धि, कारक आ विभक्ति होइत अछि।
मुदा:-
लौकिक संस्कृतमे उपध्मानीय आ जिह्वामूलीय ध्वनिक प्रयोग नहि होइत अछि आ तकर स्थानमे विसर्गसँ काज चलैत अछि।
वैदिक संस्कृतमे ळ, ळह होइत अछि मुदा लौकिक संस्कृतमे नहि होइत अछि।
वैदिक संस्कृतमे दू स्वर मध्य “ड” ळ भऽ जाइत अछि आ “ढ” ळह भऽ जाइत अछि। लौकिक संस्कृतमे से नहि अछि।
ग्वाङ (ह्रस्व आ दीर्घ) लौकिक संस्कृतमे नहि अछि। यजुर्वेदमे ह, श, ष, स, र एहि सभसँ पूर्व अनुस्वार ग्वाङ भऽ जाइत अछि।
उदात्त, अनुदात्त आ स्वरितक उच्चारण लौकिक संस्कृतमे स्पष्ट रूपसँ नहि होइत अछि।
वैदिक संस्कृतमे लेट् लकारक प्रयोग होइत अछि, लौकिक संस्कृतमे नहि।
वैदिक संस्कृतमे उपसर्ग धातुसँ पृथक् मुदा लौकिक संस्कृतमे संगमे प्रयोग होइत अछि।
वैदिक संस्कृतमे कृत् प्रत्ययक तुमुन् से, सेन्, असे, अध्यै इत्यादि १५ टा प्रत्ययक प्रयोग होइत अछि मुदा लौकिक संस्कृतमे खाली “तुम्” प्रत्ययक प्रयोग होइत अछि।
वैदिक संस्कृतक सन्धि निअम शिथिल होइत अछि मुदा लौकिक संस्कृतक दृढ़ होइत अछि।
वैदिक कतेको शब्दक अर्थ लौकिक संस्कृतमे बदलि गेल अछि। जेना असुर वैदिक संस्कृतमे शक्तिवानकेँ कहल जाइत छल मुदा लौकिक संस्कृतमे राक्षसकेँ कहल जाइत अछि।
धातुरूप सेहो वैदिक संस्कृतमे भिन्न अछि, अन्तिम स्वर दीर्घ सेहो होइत अछि। जेना चक्र- चक्रा: द्वित्वक अभाव होइत अछि जेना “ददाति”क स्थानमे “दाति”; कखनो काल परस्मैपदिक स्थानमे आत्म्नेपद आ आत्मनेपदिक स्थानमे परस्मैपद धातुक प्रयोग होइत अछि; शप् स्थानपर कखनो काल दोसर गणक विकरणक प्रयोग होइत अछि।
वैदिक संस्कृतमे शब्द रूप, धातु रूप, प्रत्ययक विविधता बेशी अछि।
वैदिक संस्कृतक काल-पुरुष-वचन-लिंगक ऐच्छिक परिवर्तन लौकिक संस्कृतमे मोटामोटी खतम भऽ गेल अछि।
वैदिक संस्कृतक अच्, अम्, जिन्व्, पिन्व् आदि धातु लौकिक संस्कृतमेप्रयोग नहि होइत अछि।
वैदिक संस्कृतमे तर-तम प्रत्यय संज्ञा शब्द सन आ लौकिक संस्कृतमे विशेषण सन प्रयुक्त होइत अछि।
छन्दक हिसाबसँ वैदिक संस्कृतमे स्वर्-सुवर् आ दर्शत, दरशत लिखि लेल जाइत अछि। मुदा लौकिक संस्कृतमे से नहि होइत अछि।
वैदिक संस्कृतमे “आन्” पदक अन्तमे रहलापर आ तकर बाद अ, इ, उ स्वर अएलापर न् लुप्त भऽ जाइत अछि आ आकारक बाद अनुस्वार भऽ जाइत अछि। जेना महान् इन्द्रः= महा इन्द्रः। लौकिक संस्कृतमे से नहि होइत अछि।

वैदिक संस्कृत:-धातुरूप:-
लट् लकार मध्यमपुरुष बहुवचन परस्मैपदि धातु थ, त, थन, तन ई चारू प्रत्यय लगैत अछि। जेना वद्- वदथ, वदथन, वदत, वदतन।
लट् लकार उत्तमपुरुष-बहुवचन परस्मैपदि धातु मस् (मः), मसि ई दूटा प्रत्यय प्रयोग होइत अछि। जेना नाशयामः- नाशयामसि। इमः –इमसि। स्मः- स्मसि।
लोट् लकारक मध्यमपुरुष एकवचन परस्मैपदि धातुमे हि, धि ई दूटा प्रत्यय होइत अछि। जेना श्रुणुहि, श्रुणुधि।
लोट् लकार मध्यमपुरुष बहुवचन आत्मनेपद धातुमे ध्वम् आ ध्वात् ई दूटा प्रत्यय होइत अछि। जेना वारयध्वम्, वारयध्वात्।
(छन्दसि लुङ् लङ् लिटः):- वैदिक संस्कृतमे लुङ्, लङ् आ लिट् लकारक प्रयोग लोट्, लट् लकारक अर्थमे प्रयोग होइत अछि। जेना आगमत् (वैदिक लुङ्)= आगच्छतु (लोट)। अवृणीत (वैदिक लङ्)= वृणीते (लट्)। ममार (वैदिक लिट्)= म्रियते (लट्)।
वैदिक संस्कृत:-शब्दरूप:-
[संस्कृत (सं= स्+म- ई ठीक अछि; एकर उच्चारण सं= स्+न गलत अछि।)]
वैदिक संस्कृतमे शब्दरूपक भिन्नता लौकिकसँ बेशी होइत अछि। जेना अकारान्त पुल्लिंग देवः प्रथमा-स्वितीया-सम्बोधन-द्विवचन वैदिकमे देवा, देवौ दुनू होइत अछि मुदा लौकिकमे मात्र देवौ होइत अछि। प्रथमा-सम्बोधन-बहुवचन वैदिकमे देवासः, देवाः मुदा लौकिकमे मात्र देवाः होइत अछि। तृतीया-एकवचन वैदिकमे देवा, देवेन दुनू होइत अछि मुदा लौकिकमे मात्र देवेन होइत अछि। तृतीया-बहुवचन वैदिकमे देवेभिः, देवैः मुदा लौकिकमे देवैः होइत अछि।
तहिना वैदिक संस्कृतमे ऋकारान्त शब्दक रूप पुल्लिंग-स्त्रीलिंगमे लौकिक संस्कृत जेकाँ होइत अछि, खाली प्रथमा-द्वितीया-सम्बोधन-द्विवचनमे दू रूप होइत अछि। जेना दातृ- दातारा, दातारौ। पितृ- पितरा, पितरौ। मातृ- मातरा, मातरौ।
अस्मद्:- प्रथमा-द्विवचन वैदिक- वाम्, आवम्; लौकिक आवाम्। चतुर्थी-एकवच वैदिक- मह्य, मह्यम्; लौकिक- मह्यम्। पञ्चमी-द्विवचन वैदिक आवत्, आवाभ्याम्; लौकिक- आवाभ्याम्। सप्तमी-बहुवचन वैदिक-अस्मे, अस्मासु; लौकिक- अस्मासु।
छन्द:-
पिङ्गल मुनिक छन्द शास्त्रक आठमे सँ पहिल चारिम अध्यायक सातम सूत्र धरि वैदिक छन्दक आ तकरा बाद लौकिक छन्दक वर्णन अछि।
वैदिक छन्दमे अक्षरक गणना होइत अछि। ओतए लघु आ गुरुक विचार नहि होइत अछि। ऋगवेदमे सभसँ बेशी त्रिष्टुप्, फेर गायत्री आ तखन जगती छन्दक प्रयोग भेल अछि।
त्रिष्टुप्- ४४ अक्षर- ११ अक्षरक ४ पाद;
गायत्री- २४ अक्षरक (ई २,३,४,५ पदक होइत अछि), सभसँ बेशी लोकप्रिय ८ अक्षरक तीन पादक गायत्री जाहिमे दोसर पादक बाद विराम होइत अछि। २३ अक्षरक गायत्री निचृद् गायत्री, २२ अक्षरक गायत्री विराड् गायत्री, २५ अक्षरक गायत्री भुरिग् गायत्री, २६ अक्षरक गायत्री स्वराड् गायत्री कहल जाइत अछि। सभ पादमे एक अक्षर कम भेलासँ “पादनिचृद् गायत्री” कहल जाइत अछि।
जगती- ४८ अक्षर- १२ अक्षरक चारि पाद।
पाठ:-
वैदिक संस्कृतकेँ स्मरण रखबाक कएकटा विधि अछि।
संहिता पाठ- मूलमंत्र सन्धि सहित सस्वर पढ़ल जाइत अछि।
पदपाठ- मन्त्रक पदक पृथक पाठ होइत अछि।
क्रमपाठ- क्रमसँ दू पदक पाठ होइत अछि।
जटापाठ- अनुलोम १-२, विलोम २-१, अनुलोम १-२
शिखापाठ- जटापाठमे परिवर्तित उत्तरपदक योगसँ शिखापाठ होइत अछि।
घनपाठ- शिखामुक्त विपर्यक पदक पुनः पाठ होइत अछि।

वैदिक संस्कृतमे यज्ञ आ अध्यात्मिक विषयक चर्च होइत अछि। लौकिक संस्कृतमे इहलौकिक विषयवस्तु सेहो अबैत अछि।

२.प्राकृत
संस्कृतसँ पहिने प्राकृत रहए वा बादमे ई विवादक विषय भऽ सकैत अछि कारण ऋगवेदक शिथिर, दूलभ, इन्दर आदि शब्द जनभाषाक साहित्यीकरणक प्रमाण अछि। ओना एकर प्रारम्भिक प्रयोग अशोकक अभिलेखसँ तेरहम शताब्दी ई. धरि भेटि जाएत मुदा पारिभाषिक रूपमे जाहि प्राकृतक एतए चर्चा भऽ रहल अछि ओ पहिल ई.सँ छठम ई. धरि साहित्यक भाषा दू अर्थे रहल। पहिल संस्कृत साहित्यक नाटकमे जन सामान्य आ स्त्री पात्र लेल शौरसेनी, महाराष्ट्री आ मागधीक (वररुचि चारिम प्राकृतमे पैशाचीक नाम जोड़ै छथि) प्रयोग सेहो भेल (कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्रम्, शूद्रकक मृच्छकटिकम्, श्रीहर्षक रत्नावली, भवभूतिक उत्तररामचरित, विशाखादत्तक मुद्राराक्षस) आ दोसर जे फेर एहि प्राकृत सभमे साहित्यक निर्माण स्वतंत्र रूपेँ होमए लागल। फेर एहि प्राकृत भाषाकेँ सेहो व्याकरणमे बान्हल गेल आ तखन ई भाषा अलंकृत होमए लागल आ अपभ्रंश आ अवहट्ठक प्रयोग लोक करए लगलाह, ओना अपभ्रंश प्राकृतक संग प्रयोग होइत रहए तकर प्रमाण सेहो उपलब्ध अछि।
अशोकक अभिलेखमे शाहबाजगढ़ी आ मानसेराक अभिलेख उत्तर-पच्छिम, कलसी, मध्य, धौली, जौगड़ पूर्व आ गिरनार दक्षिण पच्छिमक जनभाषाक क्षेत्रीय प्रकारक दर्शन करबैत अछि। राजशेखर प्राकृतकेँ मिट्ठ आ संस्कृतकेँ कठोर कहै छथि (विद्यापति पछाति कहै छथि देसिल बयना सभ जन मिट्ठा)।
प्राचीन प्राकृत पालीकेँ कहल जाइत अछि जाहिमे अशोकक अभिलेख, महवंश आ जातक लिखल गेल। मध्य प्राकृतमे साहित्यिक प्राकृत अबैत अछि। बादक प्राकृतमे अपभ्रंश आ अवहट्ठ अबैत अछि।
मोटा-मोटी गद्य लेल शौरसेनी, पद्य लेल महाराष्ट्री आ धार्मिक साहित्य लेल मागधी-अर्धमागधीक प्रयोग भेल। नाटकमे स्त्री-विदूषक बजैत रहथि शौरसेनीमे मुदा पद्य कहथि महाराष्ट्रीमे, नाटकक तथाकथित निम्न श्रेणीक लोक मागधी बजैत छलाह।
प्राकृतमे सुप् तिङ् धातुक संग मिज्झर भऽ जाइत अछि।
प्राकृतमे धातुरूप १-२ प्रकारक (भ्वादिगण जेकाँ) आ शब्दरूप ३-४ (अकारान्त जेकाँ) प्रकारक रहि गेल, माने दुनू रूप कम भऽ गेल। मुदा एहिसँ अर्थमे अस्पष्टता आएल जकर निवारण कारकक चेन्ह कएलक।
चतुर्थी, द्विवचन, लङ् लिट् लुङ् आत्म्नेपद आदिक अभाव भऽ गेल प्रथमा आ द्वितीयाक बहुवचन एक भऽ गेल। ध्वनि परिवर्तन भेल। ऋ, ऐ, औ, य, श, ष आ विसर्गक अभाव भेल (अपवाद मागधीमे य आ श अछि मुदा स नहि)।
अन्तमे आएल व्यंजन लुप्त भेल (ह्रस्व स्वरक बाद दू आ दीर्घ स्वरक बाद एकसँ बेशी व्यंजन नहि रहि सकैत अछि।)

(क्रमशः)

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