संघ लोक सेवा आयोग-मैथिली-४


२.प्राकृत
संस्कृतसँ पहिने प्राकृत रहए वा बादमे ई विवादक विषय भऽ सकैत अछि कारण ऋगवेदक शिथिर, दूलभ, इन्दर आदि शब्द जनभाषाक साहित्यीकरणक प्रमाण अछि। ओना एकर प्रारम्भिक प्रयोग अशोकक अभिलेखसँ तेरहम शताब्दी ई. धरि भेटि जाएत मुदा पारिभाषिक रूपमे जाहि प्राकृतक एतए चर्चा भऽ रहल अछि ओ पहिल ई.सँ छठम ई. धरि साहित्यक भाषा दू अर्थे रहल। पहिल संस्कृत साहित्यक नाटकमे जन सामान्य आ स्त्री पात्र लेल शौरसेनी, महाराष्ट्री आ मागधीक (वररुचि चारिम प्राकृतमे पैशाचीक नाम जोड़ै छथि) प्रयोग सेहो भेल (कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्रम्, शूद्रकक मृच्छकटिकम्, श्रीहर्षक रत्नावली, भवभूतिक उत्तररामचरित, विशाखादत्तक मुद्राराक्षस) आ दोसर जे फेर एहि प्राकृत सभमे साहित्यक निर्माण स्वतंत्र रूपेँ होमए लागल। फेर एहि प्राकृत भाषाकेँ सेहो व्याकरणमे बान्हल गेल आ तखन ई भाषा अलंकृत होमए लागल आ अपभ्रंश आ अवहट्ठक प्रयोग लोक करए लगलाह, ओना अपभ्रंश प्राकृतक संग प्रयोग होइत रहए तकर प्रमाण सेहो उपलब्ध अछि।
अशोकक अभिलेखमे शाहबाजगढ़ी आ मानसेराक अभिलेख उत्तर-पच्छिम, कलसी, मध्य, धौली, जौगड़ पूर्व आ गिरनार दक्षिण पच्छिमक जनभाषाक क्षेत्रीय प्रकारक दर्शन करबैत अछि। राजशेखर प्राकृतकेँ मिट्ठ आ संस्कृतकेँ कठोर कहै छथि (विद्यापति पछाति कहै छथि देसिल बयना सभ जन मिट्ठा)।
प्राचीन प्राकृत पालीकेँ कहल जाइत अछि जाहिमे अशोकक अभिलेख, महवंश आ जातक लिखल गेल। मध्य प्राकृतमे साहित्यिक प्राकृत अबैत अछि। बादक प्राकृतमे अपभ्रंश आ अवहट्ठ अबैत अछि।
मोटा-मोटी गद्य लेल शौरसेनी, पद्य लेल महाराष्ट्री आ धार्मिक साहित्य लेल मागधी-अर्धमागधीक प्रयोग भेल। नाटकमे स्त्री-विदूषक बजैत रहथि शौरसेनीमे मुदा पद्य कहथि महाराष्ट्रीमे, नाटकक तथाकथित निम्न श्रेणीक लोक मागधी बजैत छलाह।
प्राकृतमे सुप् तिङ् धातुक संग मिज्झर भऽ जाइत अछि।
प्राकृतमे धातुरूप १-२ प्रकारक (भ्वादिगण जेकाँ) आ शब्दरूप ३-४ (अकारान्त जेकाँ) प्रकारक रहि गेल, माने दुनू रूप कम भऽ गेल। मुदा एहिसँ अर्थमे अस्पष्टता आएल जकर निवारण कारकक चेन्ह कएलक।
चतुर्थी, द्विवचन, लङ् लिट् लुङ् आत्म्नेपद आदिक अभाव भऽ गेल प्रथमा आ द्वितीयाक बहुवचन एक भऽ गेल। ध्वनि परिवर्तन भेल। ऋ, ऐ, औ, य, श, ष आ विसर्गक अभाव भेल (अपवाद मागधीमे य आ श अछि मुदा स नहि)।
अन्तमे आएल व्यंजन लुप्त भेल (ह्रस्व स्वरक बाद दू आ दीर्घ स्वरक बाद एकसँ बेशी व्यंजन नहि रहि सकैत अछि।)

न ण मे, य ज मे आ श, ष स मे परिवर्तित भऽ जाइत अछि।
पदमे उत्तरपदक पहिल अक्षरक लोप भऽ जाइत अछि, मुदा से धातुरूप अछि तखन लोप नहि होइत अछि।  जेना आर्यपुत्र= अज्जउत्त मुदा आगतम्= आगदं
अनुदात्त अव्ययक पहिल अक्षरक लोप होइत अछि। जेना च= अ
भू धातुक भ परिवर्तित भऽ ह भऽ जाइत अछि। जेना भवति= होइ
क ख मे आ प फ मे बदलि जाइत अछि। पनस= फणस, क्रीड्= केल
उच्चारण स्थानक परिवर्तनक क्रममे दन्त्य उच्चारण स्थान तालव्यमे बदलि जाइत अछि। जेना त् = च्
मध्यक य लोपित भऽ जाइत अछि। क, ग, च, ज, त, द क सेहो किछु अपवादकेँ छोड़ि लोप होइत अछि। प, ब, व क लोप सेहो कखनो आल होइत अछि। जेना- प्रिय= पिअ, लोक= लोअ, अनुराग= अणुराअ, प्रचुर= पउर, भोजन= भोअण, रसातल= रसाअल, हृदय= हिअअ, रूप= रूअ, विबुध= विउह, वियोग= विओअ
मध्यक क, त, प क्रमसँ ग, द, ब भऽ जाइत अछि। ख, घ, थ, घ, फ, भ ई सभ ह भऽ जाइत अछि। जेना नायकः= णाअगु, आगतः= आगदो, दीप=दीब=दीव। मुख= मुह, सखी= सही, मेघ= मेह, लघुक= लहुअ, यूथ= जूह, रुधिर= रुहिर, वधू= वहू, शाफर= साहर, अभिनव= अहिणव।
कखनो काल मध्यक व्यंजन दोबर भऽ जाइत अछि। जेना एक= एक्क
मध्यक ट, ठ क्रमसँ ड, ढ भऽ जाइत अछि। जेना कुटुम्ब= कुडुम्ब, पठन= पढण
मध्यक प, ब परिवर्तित भऽ व बनि जाइत अछि। जेना दीप= दीव। शबर= सवर।
ड, त, द परिवर्तित भऽ ल बनि जाइत अछि। जेना क्रीडा= कीला, सातवाहन= सालवाहण, दोहद= दोहल।
म परिवर्तित भऽ व बनि जाइत अछि। जेना ग्राम= गाँव।
अन्तिम स्प्रश वर्णक लोप होइत अछि, अन्तिम अनुनासिकमे अनुस्वार नहि होइत अछि, अः बदलि कऽ ओ भऽ जाइत अछि वा ओकर लोप भऽ जाइत अछि।
मोटा-मोटी शब्दक प्रारम्भमे एकेटा व्यंजन आ मध्यमे बेशीसँ बेशी दूटा व्यंजन सेहो द्वित्वमे जेना क्क वा क्ख रूपमे रहैत अछि।
व्यंजनक बलक अनुरूपेँ निम्न प्रकारक क्रम होइत अछि।(अ) कवर्ग, चवर्ग,, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग मे क (सभसँ बेशी बलगर) सँ भ (क्रमसँ कम बलगर) धरि,  सभ वर्गक पाँचम वर्ण छोड़ि कऽ। जेना कवर्गक ङ, चवर्गक ञ, टवर्गक ण, तवर्गक न आ पवर्गक म छोड़ि कऽ। फेर (आ) कचटतप वर्गक पाँचम वर्ण। फेर (इ) ल, स, व, य, र। एहिमे समानबलक वर्णमे बादबला वर्ण प्रबल होइत अछि, अन्यथा अधिक बलबला बेशी बलगर होइत आछि। जेना- उत्पल= उप्पल, खड्ग= खग्ग, अग्नि= अग्गि। फेर जे कचटतप वर्गक पाँचम वर्णक ओही वर्गक कोनो दोसर वर्ण होएत तँ पाँचम वर्ण ओहिना रहत, नहि तँ ओकर परिवर्तन अनुस्वारमे भऽ जाएत। जेना क्रौञ्च= कोञ्च, दिङ्मुख= दिंमुह।
दोसर पदक प्रारम्भमे ज्ञ रहलासँ ओ ज्ज बनि जाइत अछि। मनोज्ञ= मणोज्ज।
कचटतप वर्गक बाद श, ष, स रहलासँ च्छ होइत अछि। जेना अप्सरा= अच्छरा, मत्सर= मच्छर।
क्ष बदलि कऽ क्ख भऽ जाइत अछि।जेना दक्षिण= दक्खिण।
शौरसेनीमे क्ष बदलि कऽ क्ख आ मागधीमे च्छ भऽ जाइत अछि। जेना कुक्षि= कुक्खि (शौरसेनी), कुच्छि (मागधी)।
प्राकृतमे ऋ आ लृ स्वर नहि होइत अछि। ऋ बदलि कऽ (अ) रि भऽ जाइत अछि। जेना ऋषि= रिषि, (आ) अ भऽ जाइत अछि। जेना कृत= कद। (इ) इ भऽ जाइत अछि। जेना दृष्टि= दिट्ठि। (ई) उ भऽ जाइत अछि। जेना पृच्छति= पुच्छदि।
ऐ, औ बदलि कऽ ए भऽ जाइत अछि। जेना कौमुदी= कोमुदी।
संयुक्ताक्षरसँ पूर्व ह्रस्व स्वर रहैत अछि।
उ बदलि कऽ अ वा ओ भऽ जाइत अछि। जेना मुकुल= मउल। पुस्तक= पोत्थअ।
ऊ बदलि कऽ ओ भऽ जाइत अछि। जेना मूल्य= मोल्ल।
ए बदलि कऽ इ भऽ जाइत अछि। जेना एतेन= एदिणा।
ओ बदलि कऽ उ भऽ जाइत अछि। जेना अन्योन्य= अण्णुण्ण।
अनुस्वार+ अपि= पि आ अनुस्वार+इति= ति भऽ जाइत अछि। खलु= ख भऽ जाइत अछि।
य् बदलि कऽ इ भऽ जाइत अछि। जेना कथयतु= कधेतु।
प्राकृतमे अन्तिम व्यंजनक लोप भऽ जाइत अछि। व्यंजन सन्धिक मोटा-मोटी अभाव रहैत अछि।
स्वर सन्धिमे सेहो मध्य वर्णक लोप भेलोपर सन्धि नहि होइत अछि।
शब्दरूपमे द्विवचन खतम भऽ गेल। चतुर्थीक रूप षष्ठीमे मिलि गेल। व्यंजन अन्तबला शब्द खतम भऽ गेल।
धातुरूपमे शब्दरूपसँ बेशी अन्तर आएल। व्यंजन अन्तबला धातु खतम भऽ गेल। धातुरूप एक्के रीतिसँ चलए लागल, द्विवचन खतम भऽ गेल, रूपक भिन्नता कम भऽ गेल। आत्मनेपद रूप मोटा-मोटी खतम भऽ गेल। लिट्, लिङ्, लुङ् रूप सेहो मोटा-मोटी खतम भऽ गेल। भूतकाल लेल कृदन्त प्रत्ययक प्रयोग होमए लागल। भ्वादिगण आ चुरादिगणक अलाबे सभ गण खतम भऽ गेल।




शौरसेनीमे द्य, र्ज्, र्य् बदलि कऽ ज्ज् भऽ जाइत अछि।
शौरसेनी आ माहाराष्ट्री- संस्कृतक मध्यक त शौरसेनीमे द भऽ जाइत अछि मुदा माहाराष्ट्रीमे ओ लोपित भऽ जाइत अछि। जेना- संस्कृत- जानाति= शौरसेनी जाणादि= माहाराष्ट्री जाणाइ
संस्कृतक मध्यक थ शौरसेनीमे घ मुदा माहाराष्ट्रीमे ह भऽ जाइत अछि। जेना संस्कृत अथ= शौरसेनी अघ= माहाराष्ट्री अह।
दोसर पदक प्रारम्भमे ज्ञ रहलासँ मागधीमे ञ्ञ बनि जाइत अछि।
मागधीमे श, ष, स ई तीनू परिवर्तित भऽ श; र परिवर्तित भऽ ल; ज परिवर्तित भऽ य बनि जाइत अछि। अकारान्त प्रथमा एकवचनमे ए लगैत अछि। जेना दरिद्र= दलिद्द।
मागधीमे ज बदलि कऽ य भऽ जाइत अछि।
मागधीमे द्य, र्ज्, र्य् बदलि कऽ य्य भऽ जाइत अछि।
मागधीमे ण्य, न्य,ज्ञ,ञ्ज बदलि कऽ ञ्ञ भऽ जाइत अछि।
मागधीमे मध्यक च्छ बदलि कऽ श्च भऽ जाइत अछि।
मागधीमे ष्क= स्क वा श्क, ष्ट= स्ट वा श्ट, ष्प= स्प, ष्फ= स्फ भऽ जाइत अछि।
मागधीमे र्थ बदलि कऽ स्त भऽ जाइत अछि।
विधिलिङ् क प्रयोग जैन प्राकृत- अर्धमागधी आ जैन महाराष्ट्रीमे प्रचलित रहल, आन प्राकृतमे ई मोटा-मोटी खतम भऽ गेल।
संस्कृतक तुम् शौरसेनीमे दुं, मागधीमे सेहो दुं रहैत अछि मुदा महाराष्ट्रीमे उं भऽ जाइत अछि।

प्राकृतक शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्रीक अतिरिक्त पैशाची प्राकृतक सेहो उल्लेख भेटैत अछि। गुणाढ्यक वृहत्कथा एहि प्राकृतमे लिखल गेल जे आब स्वतंत्र रूपसँ उपलब्ध नहि अछि। एकर उल्लेख उद्धरण रूपमे कखनो काल भेटैत अछि। ई पश्चिमोत्तर भारतक प्राकृत छल, उद्धरण रूपमे उपलब्ध साहित्यक अनुसार एहिमे निम्न विशेषता छल। ण बदलि कऽ न भऽ गेल। र बदलि कऽ ल भऽ गेल। ल बदलि कऽ र भऽ गेल। सघोष अघोष बनि गेल। दू स्वरक बीचक ल बदलि कऽ ळ भऽ गेल। स्वरक बीचमे ष बदलि कऽ श वा स, ज्ञ बदलि कऽ न्य आ ण्य बदलि कऽ ञ्ञ भऽ गेल। एहिमे आत्मनेपद आ परस्मैपद दुनू अछि।
पश्चिमोत्तरक खोतानसँ प्राकृत धम्मपद खरोष्ठी लिपिमे दहिनसँ वाम लिखल लेख प्राप्त होइत अछि जाहिमे श, ष, स तीनूक प्रयोग अछि।
मोटा-मोटी प्राकृतमे शब्द-धातुरूपक सरलीकरणक प्रक्रिया दृष्टिगोचर होइत अछि, द्वित्व, मूर्धन्यीकरण, अघोषीकरण आ सघोषीकरण, लकारक बदला कृदन्तक प्रयोग सेहो बढ़ि गेल।


३. अवहट्ट

(क्रमशः)

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