
गत्तर–गत्तर जाढ़ दागे की कहु भाइ यौ
राति काटब कोना ओढ़ीकऽ चटाइ यौ
दुःखक पथार आव पसरल एकचारी
थर–थर कापै बैसल बुधनी बेचारी.....
हाथ–हाथ नहि सुझे लागलछै बड़ धूनी
लाही लत्तिपर बरसै परै जेना फूँहीँ
सुनि नहि पराती शब्दै नहि चिड़ीया
कोक्रीया गेलै आइ की दादी बुढ़ीया
गत्तर–गत्तर जाढ़ दागे की कहु भाइ यौ
राति काटब कोना ओढ़ीकऽ चटाइ यौ.....
घूर की फूकब भटे नहि निङ्हाँस–पोरा
करेजामें साटगे बुधनी नेनाके लऽ कोरा
कोपित भऽ धर्ती–जलवायु उगलै छै जहर
ताँय नागिन फूफकार छोरै शितलहर
गत्तर–गत्तर जाढ़ दागे की कहु भाइ यौ
राति काटब कोना ओढ़ीकऽ चटाइ यौ...
~: विनीत ठाकुर :~
माता: शान्ति देवी, पिता: ब्रह्मदेव ठाकुर, जन्म तिथि: ०१.०३.१९७६, शिक्षा: बी.एड, सेवा: शिक्षक, स्थायी पता: मिथिलेश्वर मौवाही - ६, धनुषा, नेपाल.. इ-मेल: binitthakur@yahoo.co.in
bad nik vinit ji
जवाब देंहटाएंvinit ji
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna ki apne
badhai
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