मैथिल
एहि देश प्रांत मे कोना हैत
सम्मान मैथिली भाषा के ।
दोषी छी हमहूँ सब अपने
छी दर्शक बनल तमाशा के।
किछु कतौ बरख दिन पर कहियो
विद्यापति पर्व मना रहलौं।
हम पाग माथ पर राखि कतौ
किछु कथा पिहानी बाँचि एलौं।
की हैत करै छी झूठ- मुठ
चढ़ि कतौ मंच सँ व्यथा पाठ।
दू चारि लोक के छोड़ि दिअ बाँकी
सभटा छी बनल काठ।
सभ मुँह नुकौने जड़ बैसल छी
कतय अपन भाषा भाषी।
पथ उतरि करत के शंखनाद
हम छी विद्रोहक अभिलाशी।
अछि अपन पत्रिका गिनल- चुनल
निष्प्राण भेल पाठक विहीन।
के कीनत सोचि रहल अछि ओ
टीशन पर टाँगल दीन हीन।
हम कोना बचायब एकर प्राण
ल’ जायब एकरा गाम- गाम।
देखत बच्चा उपहास करत
अंग्रेजी बाजब बढ़त नाम।
चुट्टी पिपरी सभ जीव जन्तु
अपना सँ राखत कतेक स्नेह।
छथि मुदा केहन मैथिल समाज
सभ समाघिस्थ, निश्चल, विदेह।
माइक कोरा मे पहिल बेर
जहि भाषा के छल भेल ज्ञान।
ओ पहिल चेतना भाव बोध छल
जीवन के आधार प्राण।
सभ बिसरि गेल छी तैं देखू !
अछि सुखा रहल गंगाक धार।
कहिया धरि रहब उपेक्षित
हम सभ करू फेर सँ किछु बिचार।
संकल्प लिअ उठि चलू आइ
आँजुर मे गंगा जल राखू।
दिनकर के साक्षी राखि फेर
नहि आइ कियो पाछाँ ताकू।
हरिमोहन झा जयकांत मिश्र
सभकंे साहित्यिक मान लेल।
छी कतय नीन्न मे एखनो धरि
जागू मैथिल सम्मान लेल।
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हरिमोहन झा जयकांत मिश्र
जवाब देंहटाएंसभकंे साहित्यिक मान लेल।
छी कतय नीन्न मे एखनो धरि
जागू मैथिल सम्मान लेल।
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sawal jha
satte likhlahun satish jee...
जवाब देंहटाएंसभ मुँह नुकौने जड़ बैसल छी
कतय अपन भाषा भाषी।
पथ उतरि करत के शंखनाद
हम छी विद्रोहक अभिलाषी।
bahut shundar satish ji , jay maithil , jay mithila ke ahina nara debai ta ek din jarur mithila mahan banat ,
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