गन्ध- हंसराज

गन्ध, गन्ध, गन्ध
ने पुरबा-पछबाक गन्ध
ने कोनो फूल-पातक गन्ध
खाली घामक गन्ध
मनुक्खक चामक गन्ध
सुखा गेल अछि फूल-पात
ठाढ़ अछि बसात
हमहूँ जेना भ’ गेलहुँ अछि बूढ़ आन्हर
झलफलमे सभटा रंग लगैत अछि पीयर।

तैयो सभ नव फूल-पात
नबका बसात अनबामे सक्रिय अछि अपस्याँत
नव लोक, नब आलोक पएबा लेल
एहि, घाम-गन्धक कोठा पर भेटत नव लोक,
नव आलोक
फुलाएत फूल
नाचक पात, बहत शीतल बसात!
सुखाएल फूल-पात नहि
थाकल बसात नहि
हमरा आँखिमे अछि एकटा आभास
एकटा नव आकाश
अथच हमरा नीक लगैत अछि गन्ध
मनुक्खक चामक, घामक ई गन्ध।

4 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

एक टिप्पणी भेजें

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

और नया पुराने