गामसँ पत्र-विद्यानन्द झा





माँ हमरा लिखै छथि पत्रा
टेढ़-मेढ़ आखरें
एकटा कार्ड आ कि अन्तरदेसी
छोट भाइ वा पितियौत
(वत्र्तमानसँ खौंझाएल
तैयो भविष्यक प्रति आशावान)
खसबै छथि ओकरा
बेचन ककाक दलान पर टाँगल
लाल डाकबला बक्सामे
जे कैक सालसँ
धान आ कि गहूमक बोझक बीच ठाढ़ रहला उत्तरो
बिसरल नहि अछि अपन साहेबी
आ दैत रहैत अछि हरदम
एकटा नागरीय मुस्की

शिबू भाइ लगबै छथि
मोहर ओहि पत्रा पर
(सियाही कने सुखाएल जकाँ छै तैयो)
चिन्तनमे लीन
ख’ढ़क जोगारमे
अबैत बरखा कोना काटब राति
बिचारैत शिबू भााइ
लगबै छथि मोहर हल्लुकेसँ
जानकी एक्सप्रेस आ कि पैसंेजरमे चढ़ि
प्रारम्भ करैत अछि
एकटा सुदीर्घ यात्रा
पत्रा
कैक टा नव-पुरान पोस्टमैन
कैक टा चिन्ता आ आशाक वाहक
आ भण्डार पोस्टमैनक हाथें
कैक टा नगर-गाम
बाध-बोन
धार आ पहाड़ टपैत
पहुँचैत अछि हमरा लग अंततः
ई पत्रा
आ हमरा शंका होब’ लगैछ जे
माँ पठौलनि अछि
पत्रा नहि
कोनो पार्सल।

किऐ गमकैछ
नव धान जकाँ
ई पत्र?


3 टिप्पणियाँ

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  1. vidyanand jha jik kavita bad nik lagal

    माँ हमरा लिखै छथि पत्रा
    टेढ़-मेढ़ आखरें
    एकटा कार्ड आ कि अन्तरदेसी
    छोट भाइ वा पितियौत
    (वत्र्तमानसँ खौंझाएल
    तैयो भविष्यक प्रति आशावान)
    खसबै छथि ओकरा
    बेचन ककाक दलान पर टाँगल
    लाल डाकबला बक्सामे
    जे कैक सालसँ
    धान आ कि गहूमक बोझक बीच ठाढ़ रहला उत्तरो
    बिसरल नहि अछि अपन साहेबी
    आ दैत रहैत अछि हरदम
    एकटा नागरीय मुस्की

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  2. किऐ गमकैछ
    नव धान जकाँ
    ई पत्र?
    ati sundar

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