सृजन- दोसर खेप- सतीश चन्द्र झा

सृजन- दोसर खेप............


मोन मे उतरल कहाँ अछि
किछु अभिप्सा काम बोधक।
अछि हृदय मे आइ हमरो
कामना मातृत्व बोधक।

बुन्द जे ठहरल उतरि क’
जीव मे जौं होइत परिणत।
अपन देहक रक्त, मज्जा
दैत रहितहुँ दान मे नित।

स्नेह सँ गर्भस्थ शिशु कँे
धर्म मानवता सिखबितहुँ।
स्त्राी जातिक एहि जगत मे
मान राखब , नित पढ़बितहुँ। 

अछि जगत मे पूज्य नारी
 देवता के बाद दोसर। 
कष्ट सँ जीवन बुनै अछि 
गर्भ मे निज राखि भीतर।

किछु सजावट लय बनल
अछि वस्तु नारी नहि जगत मे। 
नहि करब अपमान कहियो 
बनि पुरुष दंभी अहं मे।

अंक मे नवजात शिशु कँे 
दूध स्तन सँ पिया क’। 
पूर्ण मानव हम बनबितहुँ
झाँपि आँचर मे जिया क’।

होइत तखने जन्म हमरो
किछु सफल परिपूर्ण जीवन।
जौं सृजन नहि भेल तन सँ
व्यर्थ अछि अभिशप्त जीवन।

छै केहन मोनक अभिप्सा
लालसा जग मे सृजन कँे।
दैत छै के धैर्य एकरा
नहि बुझै छै कष्ट तन केँ।

छथि अचंभित देवतो गण
देखि नारी के समर्पण ।
जी रहल जीवन बिसरि क’
गर्भ के रक्षा मे सदिखन।

गर्भ मे नौ मास रखने
अडिग बैसल असह् दुख मे।
द’ रहल छथि अन्न भोजन
देह सँ निज मातृ सुख मे।

हर्ष मे अछि मग्न ममता ।
छै तपस्या पुत्रा स्नेहक।
साधना मे लीन अछि ओ । 
छै केहन हठयोग देहक।

अंत क्षण साक्षी विधाता !
मोन मुर्छित, दर्द तन मे।
वेदना सँ प्राण व्याकुल
अछि केहन पीड़ा सृजन मे।

सुनि अपन नवजात शिशु के
ओ पहिल अनमोल क्रंदन।
धन्य ममता ! दुख बिसरि क’
हँसि उठै छै फेर तन मन।

अंकुरित ओ बीज कहियो
भ’ उठै छै गाछ भारी।
छाँह ममता के बनै छै,
प्राण के आधाार नारी।

अंतिम भाग पुनः दोसर बेर.........

16 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. अहाँक सृजन कविताक ई दोसर भाग पढि एकर तेसर भागक लेल लालसा बढि गेल।


    जाहि तरहेँ अहाँ अपन भावनाक जटिल रूपकेँ सरलतासँ प्रकट कएने छी, से प्रसंसात्मक अछि।

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  2. narik prati samarpit srijnak dosar bhag bad nik lagal

    छथि अचंभित देवतो गणदेखि नारी के समर्पण ।जी रहल जीवन बिसरि क’गर्भ के रक्षा मे सदिखन।

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  3. मोन मुर्छित, दर्द तन मे।वेदना सँ प्राण व्याकुलअछि केहन पीड़ा सृजन मे।

    ahank srijanak tathya bad nik, okar vistar seho nik ja rahal achhi,

    tesar bhagak intazar rahat.

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  4. pahil bhag se dosar bhag bhinn,

    aa te tesar bhagak lel utsukta badhi gel achhi

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  5. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आप को मेरी शायरी पसंद आई !
    आपने बहुत ही शानदार लिखा है ! ऐसे ही लिखते रहिये !

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  6. दुख बिसरि क’हँसि उठै छै फेर तन मन।
    अंकुरित ओ बीज कहियोभ’ उठै छै गाछ भारी

    छाँह ममता के बनै छै,प्राण के आधाार नारी।

    bhai ki nukene chhi mon me, jatek padhait chhi ahan ke rahasya gaharait jai ye

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  7. एक बेर फेर बहुत नीक प्रस्तुति,

    छन्दोबद्ध तं नहि अछि मुदा तुकान्त सेहो आइ काल्हि कहां जल्दी कवितामे देखैत छी।

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  8. छै केहन हठयोग देहक।
    मोन मुर्छित, दर्द तन मे।वेदना सँ प्राण व्याकुलअछि केहन पीड़ा सृजन मे।

    bahu sundar abhvyakti srijnak

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  9. मोन मे उतरल कहाँ अछिकिछु अभिप्सा काम बोधक।

    अछि हृदय मे आइ हमरोकामना मातृत्व बोधक।

    SATISH JI, AHANK KAVITA SARALTA SE JATEK GAHIR DHARI JAIT ACHHI SE ADBHUT HOIT ACHHI< BLOGAK PATHAKAK BADHBAK KARAN AHAN SAN SAN LEKHAKAK EHI BLOG SE JURAB ACHHI

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  10. bahut nik, parhi kay mon prasann bhay gel.
    tesar bhagak besabri se intzar rahat.

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  11. Ee kavita padai k teen ta aapan baat par garv bhel.Pahil nari k roop mein jeevan je bhetal achi,dosar matritava par aur tesar maithil hoa pe.Keep it up.All the best.

    जवाब देंहटाएं
  12. छन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल-एहन रचना जे आनन्द प्रदान करए । मुदा एहिसँ ई नहीं बौझबाक चाही जे आजुक नव कविता गद्य कोटिक अछि कारण वेदक सावित्री-गायत्री मंत्र सेहो शिथिल/ उदार नियमक कारण सावित्री मंत्र गायत्री छंदमे परिगणित होइत अछि यदि अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादकेँ बढ़ा लेल जाइत अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कए अलग कएल जाइत अछि। जेना- वरेण्यम्=वरेणियम्
    स्वः= सुवः
    । आजुक नव कविताक संग हाइकू/ क्षणिका/ हैकूक लेल मैथिली भाषा आ भारतीय संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आ समस्त उत्तर-पश्चिमी आपूर्वी भारतीय लिपि आ देवनागरी लिपि मे वैह स्वर आ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि जाहिमे जे लिखल जाइत अछि सैह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व 'इ' एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने, मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नहि अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ ह्र्स्व 'इ' छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल जे हैकूक लेल मैथिली सर्वोत्तम भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि? मुदा की इंग्लिशमे संधि नहि अछि? तँ ई की अछि- आइम गोइङ टूवार्ड्सदएन्ड। एकरा लिखल जाइत अछि- आइ एम गोइङ टूवार्ड्स द एन्ड। मुदा पाणिनि ध्वनि विज्ञानक आधार पर संधिक निअम बनओलन्हि, मुदा इंग्लिशमे लिखबा कालमे तँ संधिक पालन नहि होइत छैक , आइ एम केँ ओना आइम फोनेटिकली लिखल जाइत अछि, मुदा बजबा काल एकर प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे सेहो यथासंभव विभक्त्ति शब्दसँ सटा कए लिखल आ बाजल जाइत अछि।वेदमे वर्णवृत्तक प्रयोग अछि मात्रिक छन्दक नहि आ ताहूमे छन्दकेँ अक्षरसँ चिन्हल जाइत अछि। यदि अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादकेँ बढ़ा लेल जाइत अछि।गणना पाद वा चरणक अनुसार होइत रहए।एहू प्रकारेँ नहि पुरलापर अन्य विराडादि नामसँ एकर नामकरण होइत अछि।
    यथा- गायत्री(24)- विराट् (22), निचृत्(23), शुद्धा(24), भुरिक् (25), स्वराट्(26)

    2. सतीशजी तेसर भागक बाद विस्तृत रूपेँ लिखब।

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  13. kavita padhi k mon prashnna bha gel. srijan ke tesar bhagak pratichha achhi.
    **** neha ***
    madhubani

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