एक दू दिस कें कहय,
चारू दिस अन्हार अछि ।
मूर्ख अछि गद्दी पर बैसल ,
पढ़ल-लिखल बेकार अछि ।
जतय देखू मारि - फसाद ,
होइत लूट - पाटक काज अछि ।
विकास त' सपनेहुँ नहि देखू ,
शैतानक भेल राज अछि ।
हिंसा आ बेईमानी केर ,
भेल सउँसे आधिपत्य अछि ।
आजुक गाँधी-नेहरू सभ,
बजैत खाली असत्य अछि ।
एम्हर, ओम्हर, जेम्हर देखू ,
दानव करैत किलोल अछि।
उजरा खादी कुरता पाछा,
दबल बहुत रस पोल अछि ।
बन्न पडल अछि बुद्धिक ताला,
मूर्खक शासन ई लोकतंत्र अछि।
फुइस फसाद अछि फुला रहल ,
ई लोकतंत्रक मूल मंत्र अछि ।
नवक्रान्तिक छथि मांग करैत भू ,
सबहक मति आइ मारल अछि ।
सत्य अहिंसा आइ काल्हि,
एहि समाज सं बारल अछि ।
चारू दिस अन्हार अछि ।
मूर्ख अछि गद्दी पर बैसल ,
पढ़ल-लिखल बेकार अछि ।
जतय देखू मारि - फसाद ,
होइत लूट - पाटक काज अछि ।
विकास त' सपनेहुँ नहि देखू ,
शैतानक भेल राज अछि ।
हिंसा आ बेईमानी केर ,
भेल सउँसे आधिपत्य अछि ।
आजुक गाँधी-नेहरू सभ,
बजैत खाली असत्य अछि ।
एम्हर, ओम्हर, जेम्हर देखू ,
दानव करैत किलोल अछि।
उजरा खादी कुरता पाछा,
दबल बहुत रस पोल अछि ।
बन्न पडल अछि बुद्धिक ताला,
मूर्खक शासन ई लोकतंत्र अछि।
फुइस फसाद अछि फुला रहल ,
ई लोकतंत्रक मूल मंत्र अछि ।
नवक्रान्तिक छथि मांग करैत भू ,
सबहक मति आइ मारल अछि ।
सत्य अहिंसा आइ काल्हि,
एहि समाज सं बारल अछि ।
ठीक लिखालो रूपेश झा जी -
जवाब देंहटाएंउजरा खादी कुरता पाछा
दबल बहुत रस पोल अछि ।
बन्न पडल अछि बुद्धिक ताला,
मूर्खक शासन ई लोकतंत्र अछि।
बहुत बहुत धन्यवाद ,
रूपेश जी
सत्य अहिंसा आइ काल्हि,
जवाब देंहटाएंएहि समाज सं बारल अछि ।
theeke
रुपेश, लोकत्रंत मे केखनो नवक्रांति संभव नहि। हँ क्रांति जरुर भए सकैत छैक। मुदा करत के।कहिओ दुर्गा चरण मित्र सट्रीटक हाल लिखह। भाया कंपनी बगान , हरिसन रोड।
जवाब देंहटाएंnik lagal ee kavitaa
जवाब देंहटाएंबहुत नीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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