संपादकीय : आय मिथिला समेत समूचा देशमे भाई-बहिनक असीम स्नेहक प्रतीक राखी अर्थात रक्षाबंधन पावैन हर्षक संग मनाओल जा रहल अछि। मिथिला दैनिक समस्त भाई-बहिनकेँ राखी पावैनक अशेष बधाई संग मंगलकामना प्रेषित करैत अछि, संगहि अहि पावैन सँ जुड़ल कथा जे प्रचलित अछि ओकरा संपादकीय में एहिठाम जानकारी वास्ते राखि रहल अछि।
राखी पावैन सँ जुड़ल पहिल कथा :
आदिकालमे बड्ड प्रतापी आओर महादानी असुर सभ भेल छलाह। राजा बलि समूचा संसार केँ अपना अधीन करैक वास्ते बहुतो युद्ध करैत, पराजित करैत तीनू लोक पर अपन आधिपत्य जमा लेने छलाह। एहिसँ चिंतित भए समस्त देवतागण भगवान विष्णु समक्ष राजा बलि सँ रक्षाक हेतु याचना केलनि। भगवान विष्णु ब्राम्हण बनि दंड-कमंडल लय बामनक रूप धारण कय राजा बलिक दरबारमे दानक याचना हेतु पहुँचलाह।
जनतब हो जे राजा बलि सँ जे कियो किछु याचना करैथ ओ खाली हाथ नहि घुरथि, ताहि कारण सँ ओ अतेक पराक्रमी आओर बलशाली छलाह। राजा बलि ब्राह्मणक बच्चाकेँ याचक रूपमे देखि द्रवित भए गेलाह आओर ओ भगवान बामन केँ माँग रखबाक आग्रह केलनि। तदोपरांत भगवान बामन तीन डेग भूमिक याचना करैत अपन माँग राजा बलिक समक्ष राखलखिन। असुर गुरु शुक्राचार्य केँ कउनो अनहोनीक शंका केर आभास भेलनि आ ओ राजा बलि केँ रोकबाक प्रयाश केलखिन। मुदा राजा बलि अपन दानवीरी कर्तव्यक पालन करैत गुरु शुक्राचार्य केँ बात नहि मानलखिन आओर ओ ई सोचि तैयार भए गेलैथ जे ई छोट बच्चा तीन डेगमे कतेक भूमि नापि सकत। भगवान मंत्र पढ़बाक हेतु जल लेबय लगलाह तs कमंडलक टोटिमे दैत्य गुरु शुक्राचार्य पैसि गेलखिन जाहिकारण सँ जल बाहर नहि आबि पाबै आ बामन मंत्र पढ़बामे असमर्थ भए गेलाह। मुदा त्रिकालदर्शी भगवान शुक्रचार्यक सभ कृत्य बुझि गेलाह। भगवान भूमि सँ तिनका तोरि कमंडलक टोटिके खोंचारलखिन तs दैत्य गुरुकेँ एकटा आँखि फुटि गेलनि आओर ओ जमीन पर धम्म सँ खसि पड़लाह, तदोपरांत भगवान द्वारा जल सँ शिक्त कयलाक बाद विशाल भए गेलाह। पुनः याचक बामन तीन डेग भूमि केर दानक माँग स्वरूप पहिल डेगमे समूचा पृथ्वी आ दोसर डेगमे तीनू लोक नापि लेलाह तs ब्रम्हलोकमे भगवान विष्णु केर पैर देखि ब्रह्मा कमंडलमे जल लय हुनक पैर प्रक्षालन कयलाह, वैह जल गंगा भेलखिन।
तेसर डेगमे राजा बलि केँ नापि हुनका बंधन सँ बान्हिकय पाताल लोक पठा देलखिन, किन्तु राजा बलि इन्द्रदेवक वज्र सँ खतरा बुझि भगवान बामन सँ रक्षाक याचना केलखिन, भगवान बामन रक्षासूत लय राजा बलिक हाथमे निम्न मंत्र पढ़ैत बान्हलखिन।
''येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबला:
तेनत्वाम् प्रतिबधनाम् रक्षेमाचल माचल"
उपरोक्त दोहा केर अर्थ : हे राजा बलि अहाँ एहन दानी केँ जौं इंद्र वध करताह तs हम हुनक वध करब। हम अहाँकेर रक्षा करबाक वचन दैत छी।
एखनहु भगवान विष्णु राजा बलिक दरबान बनि हुनक रक्षा कय रहल छथि। वर्षाकालमे हमरा लोकनि मेघक जे गर्जना सुनैत छी ओ इंद्रदेव द्वारा राजा बलिकेँ मारबाक हेतु कयल वज्रपात छी।
आजुके मुहूर्तमे भगवान बामन राजा बलिकेँ रक्षासूत बान्हने छलाह। तैं हमरा लोकनि बरिखमे एकबेर आजुके मुहूर्त दिन गोसाउनि केर राखी चढ़बैत छियैन्ह। जे कउनो उपयोगिताक वस्तु रहैत अछि ओहिपर राखी चढ़बैत छी। विद्वतजन, ज्ञानी पंडित, पुरोहित एवं बुजुर्ग लोकनि सँ रक्षासूत बान्हबाकय आशीर्वाद लैत छी। कतेकठाम तs पुरोहित स्वयं अपन यजमान ओहिठाम पहुँचि हुनका समस्त परिवार केँ राखी बान्हि आशीर्वाद प्रदान कय, दान व उपहार लय घुरैत छथि।
अहिमादे एकटा आरओ कथा प्रचलित अछि :
कृष्णावतारमे जखन श्रीकृष्ण शिशुपाल केँ मारैक हेतु सुदर्शन चक्र चलेलाह तs हुनक आँगुर कटि शोणित बहय लागल छलनि, पतिव्रता नारी द्रुपद पुत्री द्रौपदी अपन आँचर फाड़ि बहैत शोणित केँ रोकबाक हेतु बान्हलनि। भगवान श्रीकृष्ण अहिक वास्ते द्रौपदीक ऋणी भए गेलाह, द्रौपदी केँ श्रीकृष्ण अपन बहिन मानैत छलाह, ताहिमादे ओ वचनबद्ध भेलाह जे कउनो दुर्गम समय एलाहपर हम अहाँक रक्षा करब आ ओहि ऋणमादे जखन दुस्सासन द्रौपदीक चीरहरण करै लागल छल तखन श्रीकृष्ण हुनक बान्हल ओहि छोट सन आँचरक बदला साड़ीक अम्बार लगा देलनि आ दुस्सासन थाकिकय बेहोश भए गेल मुदा द्रौपदीक चीरहरण नहि कय सकल।
ओहिदिन सँ सभ सहोदर आ मुँहबोली बहिन अहि आशय सँ अपन भाई केँ राखी बान्हय लगलीह जे कउनो विकट परिस्थितिमे भाई हमर रक्षा करताह। अहितरहें बड्ड पवित्र बंधन छी रक्षाबंधन। भाई बहिनक पवित्र रिश्ताक समक्ष स्त्री-पुरुषक दोसर कउनो रिश्ता नहि छैक तैं अहि पर्वकेँ अपन मिथिलामे बड्ड श्रद्धा सँ मनाओल जाएत अछि। समूचा मिथिलामे राखी दिन दूरस्थ गामसँ भाई सभ अपन-अपन बहिन ओतहि उपहार आदि लय राखी बान्हबाबैक वास्ते पहुँचैत छथि।