पूजाक महत्व : _मधुश्रावणी पूजन अहिबाती स्त्रीगणकलेल बड़ महत्वपूर्ण होइछ। ई विशिष्ट पाबनि पतिक दीर्घायु आ सुख - समृद्धिलेल होइत अछि। पूजन क्रममे मैना - पंचमी, मंगला - गौरी, पृथ्वी - जन्म, पतिव्रता - कथा, महादेवक कथा, गौरी - तपस्या, शिवबिबाह, गंगा - कथा, सती बिहुला -कथा, शीत - बसन्तक कथादि सहित 14 खंडमे 'कथा - श्रवण' होइत अछि। गाम - समाजक वृद्धा वा जानऽबाली महिला कथा - वाचिका केर द्वारा नवविवाहिता केँ कथा सुनबैत छथिन। पूजनक सातम्, आठम् आ नवम् दिन घोरजर, खीर, गुलगुलाक भोग लगैत अछि। सबदिन साँझमे स्त्रीगण सोहागक गीत, कोबर गीत, आरती सभ गाइबि महादेवकेँ मनयबाक, प्रसन्न करबाक प्रयत्न करैत रहैत छथि।
एहि पाबनिमे नइहर आ सासुर दूनूक सहयोग अपेक्षिते टा नहि अनिवार्य होइत अछि। नवविवाहिता सासुर सँ आयल नव वस्त्रा धारण करैत छथि। पूजाक समापन पर यत्र - तत्र भायक द्वारा हाथ पकड़ि पूजनहारिकेँ उठयबाक प्रथा सेहो अछि; मुदा सभठाम नहि।
टेमी दागबाक परम्परा : पूजाक अन्तिम दिन पूजनहारिकेँ कठिन' अग्निपरीक्षा' देमऽ पड़ैत छनि जे आन संस्कृतिमे दुर्लभ अछि। टेमी दागऽ केर परम्परामे नवविवाहिताकेँ हाथ - पयर आ ठेहुनपर आरतक पात आ पान राखि जरैत टेमी (बाती) सँ दागल जाइत छनि आ 'इस्स ......' नहि बजबाक छनि, एहिसँ हुनक सहनशक्ति आ सतीत्वक परीक्षण होइत अछि।
पूजा केर अन्तिम दिन (टेमीदिन) 14 टा पनपथिया आ एकटा बासक डालामे अंकुरी, फल-मधुर, दही आदि सँ सजा 14 टा अहिबाती स्त्रीगण केँ बाँटल जाइत छनि
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