"श्राद्ध आवश्यक वा नहि.?
उपरोक्त शीर्षक एखनुका समयमे एकटा एहन प्रसंग बनि गेल अछि जाहिपर समय-समय पर अनेकानेक विद्वान लोकनिक विचार पढ़बाक लेल भेटैत रहैत अछि, तहिना पुनः बाबा बैद्यनाथ जीक सेहो आलेख द्वारा हुनक विचार आयल अछि जेकरा 'मिथिला दैनिक' जसकेर तस आजुक अंकमे अहाँ सबकेर सोझा परोसि रहल अछि।
तखन आउ आ पढ़ि जे "श्राद्धकर्म' आवश्यक कियैक छैक.?
एखन एहि विषयमे बरोबरि सुन'मे अबैत अछि जे जीवित मातापिताकेँ जे संतान कष्ठ दैत छनि आ मरलाक बाद धूमधामसँ श्राद्ध करब की उचित?किछु लोक तँ श्राद्धेकेँ फिजुलखर्ची कहि विरोध करैत रहैछ:ताहिलेल हमरो किछु लिख' पड़ल।
वैदिक सनातन धर्मानुसार देहक अंत होइछ आत्माक किन्नहुँ नहि, ताहिलेल मृत्युक बाद जँ वंशज विधिवत् श्राद्ध नहि करैत अछि तखन हुनक आत्मा अपान वायुमे भटकैत रहैत छन्हि आ पूर्वजक आत्मा भूखल-पियासल कनैत-कलपैत श्राप दैत रहैत छन्हि, यावत् हुनक विधिवत् श्राद्ध नहि हो ताधरि आत्मा तृप्त नहि होइछ, विधिवत् श्राद्धसँ आत्मा तृप्त भ' अपन कर्मानुसार गतिकेँ प्राप्ति करैछ।
निष्कर्षतः विधिवत् श्राद्ध अवस्स होयबाक चाही खाहे तकरालेल पैंच-उधार, कर्ज एत'धरि जे कटोरी ल'क' भीखधरि मांग' पड़य तँ ओहिमे लाज नहि करबाक चाही, श्राद्ध, बेटीक बिबाह, उपनयन संस्कारमे कखनहुँ कोताही नहि करबाक चाही, नहितँ जिनगीभरि वंशज त्राहि-त्राहि करैत रहैत छै आ अतृप्ते रहि जायत छै, भगवान राम आ सीता मैयाकेँ अपन अतृप्त दशरथक आत्मालेल "गया श्राद्ध" कर' पड़ल छलन्हि।
हँ, वृहद भोज आ आडंबरक हमहुँ घोर विरोधी छी, मुदा वैदिक विधिविधानसँ श्राद्ध जे नहि करैछ ओ पातकी होइछ आ ओकरा नरकोमे दुर्गति भोग' पड़ैछ।
अस्तु, विधिवत् श्राद्ध अपेक्षित अछि बेसी भोजभात आ आडंबर नहि, शास्त्रमे मात्र एगारह टा ब्राह्मण भोजनक मान्यता अछि शेष शक्ति अनुसारेँ। हम अपन पूर्वजक श्राद्ध नहि करबनि तँ की हमर पड़ोसी वा आन लोक करत यौ? देवी-देवताक पूजा हम नहि करबनि तँ ओ अतृप्त नहि हेताह; कियैकि करोड़ों लोक हुनका पूजैत छनि; मुदा अपन पूर्वज जिनका पितर सेहो कहैत छियन्हि हुनक विधिवत् श्राद्ध आ समयानुसार तर्पण अवश्यमेव करबाक चाही, अन्यथा अक्षम्य पापक भागी बन' पड़ैछ।
शास्त्रक उक्ति :
कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति ll
आयुः पुत्रान् यशःस्वर्गं कीर्तिं पुष्टिंबलं श्रियम् l
पशून् सौख्यं धनंधान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते ll
देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम् ll
भावार्थ--- समयानुसार श्राद्ध कयलासँ कुलमे कियो दुःखी नहि रहत। पितरक पूजा क' मनुक्ख आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख आ धन-धान्य प्राप्त करैछ। देवकार्यसँ पैघ पितृकार्यक विशेष महत्त्व अछि। देवी-देवतासँ बेसी पितरकेँ प्रसन्न केनाइ बेसी कल्याणकारी होइछ।
इति शुभम्!