मुम्बई। 02 मार्च। की छलौं, की भs गेलौं आ की हयब, चिंतनक एहि त्रिधाराक गहराईमे डुबकी लगेलाक उपरांत मोन पड़ैत अछि हमर ओ बचपन जकर स्मृति मात्रसँ रोम-रोम रामांचित भs उठैत अछि आ एक अदृश्य अलौकिक आनंदक स्वप्नलोकमे विचरण करय लगैत छी।
जीवक गति, प्रकृतिक प्रत्येक दृष्टिगत् पदार्थ क्षण-प्रतिक्षण निर्धारित समयकें परिधिमे चलायमान अछि। जन्मक उपरांत पालन-पोषण होइत क्रमशः जीव जीवन यात्रा रूपी पथ पर पथिक बनि निरंतर आगू बढ़ैत पुनः मृत्युके प्राप्त करैत अछि। एहिलौकिक यात्राकें समापनसँ पूर्व कर्मक आधार पर व्यक्ति द्वारा सम्पादित व प्रतिपादित काजक लेखा-जोखा करैत गुण-दोष, मान-सम्मान आदि विषय पर चर्चा-परिचर्चा होइत रहैत अछि। तत्पश्चात निष्कर्षक आधार पर व्यक्तिक सामाजिक स्वीकृति वा अस्वीकृति प्रतिपादित सेहो कयल जाइत अछि।
ग्राम्य-जीवनक बचपन, जाहिमे राग-द्वेष रहित उन्मुक्त बाल्यलीलाक प्रचुर आनंद, निष्कपट अनुरागसँ ओतप्रोत संगी-सखाक संग बिताओल गेल समयकें जखन मोन पाड़ैत छी, रोम-रोम रोमांचित भs उठैत अछि आ ईश्वरसँ प्रार्थना करs लगैत छी जे जँ संभव हो तs पुनः हमर बचपन वापस कs देल जाऊ । हम बच्चा होमय चाहैत छी । सांसारमे पसरल मदान्ध सुख-सुविधा, भोग-विलासिताक पाछां अपस्यात बनल जीवनक नष्ट होइत बहुमूल्य समयक जंजालसँ मुक्तिक मार्गक याचना इएह आंतरिक आनंद प्राप्तिक कामना निवेदित करैत छी ।
हम-सभ बचपनमे खेलल गेल टायल-गुल्लीक खेल, चै-चिक्का खेलबाक समयक दांव-पेंच, अगहन महिनामे अपना खेतमे धनकटनीक समय लोरहल गेल धानसँ दुकानमे खरीदल गेल गोली आ गोली खेलबाक अद्भूत आनंद मोन पड़ैत अछि। पाबनि-तिहारक अवसर पर उत्साह व उमंगसँ उत्तेजित बाल्यकालमे बिताओल गेल समय सद्यः मानस-पटलकें उद्वेलित करैत अछि। फगुआमे एक-दोसरके रंग-अबीर लगेबाक होड़, जुड़-शीतलमे थाल-कादोसँ सानल शरीरक अवस्थाक नैसर्गिक आनंदके, की बिसरल जा सकैत अछि ? दीया-बातीसँ (दीवाली) दस-पन्द्रह दिन पूर्वहिं गामक बसबिटाइरमे सुप्ती बनेबाक आकुलताकें कदमपि नञि बिसरल जा सकैत अछि। कटहरक गाछसँ मोची तोड़ब, बूटक (चना) ओरहा, खेतमे रोपल मुरैयके उखाड़बाक चेष्टा, जामुन गाछ पर चढ़ि जामुनक डाढ़िकें जोर-जोरसँ हिलाय नीचां ठाढ़ भेल प्रतिक्षारत् बाल-सखाकें जामुन बीछि खेबाक अनुपम आत्मसंतुष्टिक भाव, कुसियारक खेतमे घुसि चुप्पेचाप कुसियार खेबाक आनंद आदि अनेकों घटित घटनाक सजीवता, आंखिक समक्ष नाचय लगैत अछि आ पुनः ओहि अवस्थामे लौटबाक आकुलता मस्तिष्कमे तिरोहित होमय लगैत अछि। स्मृतिक आनंदकें वर्तमान व्यस्ततम् जीवनक औषधि बनाओल जेबाक चाही जाहिसँ व्यक्तिक मनःस्थिति सतत् प्रमुदित व प्रफुल्लित बनल रहय।
अचानक एहिना किछु पुरनका स्मृति मोन पड़ि गेल। जय श्री हरि।
जीवक गति, प्रकृतिक प्रत्येक दृष्टिगत् पदार्थ क्षण-प्रतिक्षण निर्धारित समयकें परिधिमे चलायमान अछि। जन्मक उपरांत पालन-पोषण होइत क्रमशः जीव जीवन यात्रा रूपी पथ पर पथिक बनि निरंतर आगू बढ़ैत पुनः मृत्युके प्राप्त करैत अछि। एहिलौकिक यात्राकें समापनसँ पूर्व कर्मक आधार पर व्यक्ति द्वारा सम्पादित व प्रतिपादित काजक लेखा-जोखा करैत गुण-दोष, मान-सम्मान आदि विषय पर चर्चा-परिचर्चा होइत रहैत अछि। तत्पश्चात निष्कर्षक आधार पर व्यक्तिक सामाजिक स्वीकृति वा अस्वीकृति प्रतिपादित सेहो कयल जाइत अछि।
ग्राम्य-जीवनक बचपन, जाहिमे राग-द्वेष रहित उन्मुक्त बाल्यलीलाक प्रचुर आनंद, निष्कपट अनुरागसँ ओतप्रोत संगी-सखाक संग बिताओल गेल समयकें जखन मोन पाड़ैत छी, रोम-रोम रोमांचित भs उठैत अछि आ ईश्वरसँ प्रार्थना करs लगैत छी जे जँ संभव हो तs पुनः हमर बचपन वापस कs देल जाऊ । हम बच्चा होमय चाहैत छी । सांसारमे पसरल मदान्ध सुख-सुविधा, भोग-विलासिताक पाछां अपस्यात बनल जीवनक नष्ट होइत बहुमूल्य समयक जंजालसँ मुक्तिक मार्गक याचना इएह आंतरिक आनंद प्राप्तिक कामना निवेदित करैत छी ।
हम-सभ बचपनमे खेलल गेल टायल-गुल्लीक खेल, चै-चिक्का खेलबाक समयक दांव-पेंच, अगहन महिनामे अपना खेतमे धनकटनीक समय लोरहल गेल धानसँ दुकानमे खरीदल गेल गोली आ गोली खेलबाक अद्भूत आनंद मोन पड़ैत अछि। पाबनि-तिहारक अवसर पर उत्साह व उमंगसँ उत्तेजित बाल्यकालमे बिताओल गेल समय सद्यः मानस-पटलकें उद्वेलित करैत अछि। फगुआमे एक-दोसरके रंग-अबीर लगेबाक होड़, जुड़-शीतलमे थाल-कादोसँ सानल शरीरक अवस्थाक नैसर्गिक आनंदके, की बिसरल जा सकैत अछि ? दीया-बातीसँ (दीवाली) दस-पन्द्रह दिन पूर्वहिं गामक बसबिटाइरमे सुप्ती बनेबाक आकुलताकें कदमपि नञि बिसरल जा सकैत अछि। कटहरक गाछसँ मोची तोड़ब, बूटक (चना) ओरहा, खेतमे रोपल मुरैयके उखाड़बाक चेष्टा, जामुन गाछ पर चढ़ि जामुनक डाढ़िकें जोर-जोरसँ हिलाय नीचां ठाढ़ भेल प्रतिक्षारत् बाल-सखाकें जामुन बीछि खेबाक अनुपम आत्मसंतुष्टिक भाव, कुसियारक खेतमे घुसि चुप्पेचाप कुसियार खेबाक आनंद आदि अनेकों घटित घटनाक सजीवता, आंखिक समक्ष नाचय लगैत अछि आ पुनः ओहि अवस्थामे लौटबाक आकुलता मस्तिष्कमे तिरोहित होमय लगैत अछि। स्मृतिक आनंदकें वर्तमान व्यस्ततम् जीवनक औषधि बनाओल जेबाक चाही जाहिसँ व्यक्तिक मनःस्थिति सतत् प्रमुदित व प्रफुल्लित बनल रहय।
अचानक एहिना किछु पुरनका स्मृति मोन पड़ि गेल। जय श्री हरि।
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