सुगना फटल -पुरान वस्त्र पहिरने,धुल सँ लतपथ शरीर मे रोडक किनार रात्रिक आठ बजे बैसल छल , भुख सँ छडपटा रहल छल , माथा सँ पसीना टप टप चुबैत छेलैय । घुमैत घुमैत ओकरा चक्कर आइब गेल रहैय ,माथ पर हाथ दय सोचैय लागल जे आइयो भुखले रऽह पडत ।
सामने ड्योही जाका भुकभुक इजोत नजैर पडलैय , सोचलक चलि क देखियै कोनो भोज भातक इंतजाम छय कि ? दुरैह सँ देखलक लोक सभ ठार भ क हाथ मे थारी ल क खा रहल अछि । सोचलक हमहु जाईत छी किछु मांगि आबि आ अपन छुद्धा के शांत क लिऽ । आगु बढल पता चललैय इन्जीनियर महेश बाबुक बेटी पिंकी केर आठम जन्म दिवस छीयैन । सैंकडो गाडिक धरिया धसान अछि । सऽब अपन अपन काज मे मस्त अछि । कियौ उपहार भेंट कऽ रहल छथि त कियौ भोजन क रहल छथि , किछु गोटे नृत्य करऽ मे व्यस्त छथि । आगु बढल सबसँ नजैर चोरबैत थारिक समीप पहुंचल , एतबा मे महेश बाबुक नजैर ओकरा पर पडल , जोर सँ बजला रे अनुराग देखहि त के आबि गेलउ । वैइला ऐकरा , जकरा मऽन होईत छव आइब जाइत छौव ।गेटक चौकिदारक नजैर अहि पर नञ छौव कि । सुगना डर सँ कपैइत तिरपालक ओहार भऽ गेल ।अनुराग के भेलनि जे ओ चलि गेल , ओ इम्हर ओम्हर देखि नृत्य मे मस्त भऽ गेलथि ।
किछु कालक बाद सुगना फेर हिम्मत कैयलक ।आगु बढितैय महेश बाबु जे एकटा साहेब के विदा कऽ रहल छला हुनकर नजैर फेर सँ सुगना पर पडलैन । तामस सँ लहलहाईत महेश बाबु ओकल गट्टा पकरि, घिसियाबऽ लगला , सुगना कनैत कंपैत बाजल "मालिक छोइर दिऽय भुख लागल अछि थोडबे दऽ दिऽय , हम जतैक खायब ओहि सँ बेसि तऽ आहाँ फेंक देबैय ।" महेश बाबु गरजैत बजला " हम कतबौ फेंक देबैय तकर हिसाब तु के रखनाहर छै रे बेहुदा , कतौ पैर उठा कऽ चलि आबैत छै , धर्मशाला छैयैय कि ? " सुगना के बाहर निकालैइत , चौकीदार चे फटकारैत फेर सँ मेहमानवाजी मे जुटि गैलैथि ।
पिंकी एकटा थारी मे व्यंजन लैइत छलि , "अंकल और थोडा देना" भेन्डर सँ मुस्कुराइत पिंकी कहलक । सऽब सामाग्री लऽ कऽ पिंकी ओहि गेट सँ बाहर निकलल जाहि पर चौकिदार नञ छल । शायद सुगना आ महेश बाबुक सऽब क्रियाकलाप पर पिंकी केर नजैर छलैय । पिंकी देखलक जे सुगना एकटा पाथर पर पेट पकरि कानि रहल अछि ।नोर सँ ओकर मैल वस्त्र बोदैइर भऽ गेल छल ।
पिंकी केर ह्रदय कांपि उठल , पिंकी ओकर नोर पोछैइत भोजनक थारी बढबैत , मुस्कुराइत भोजनक लेल आग्रह केलक ,। सुगना अहि स्नेह के देखि कँ अश्रुधारा बहबऽ लागल , ओकरा सत्तर सालक उम्र मे पहिलबेर सच्ची मानवताक साक्षत् दर्शन भेल ।
दु चारि कौड खेलाक बाद सुगना के हिचकी आईब गेलैय ,पिंकी झट जल लाबैइ लेल पाछु घुमल कि दृश्य देखि क चौंकि गेल , डर सँ ओकर देह पानि पानि भऽ गेलैय । महेश बाबु पाछु मे ठारह भेल आंखि लाल पियर कयनै छला ।
मुदा इ कि ? अचानक महेश बाबुक आंखि सँ बऽह लागल , पानिक बोतल सुगना दिस बढबैत पिंकी सँ लिपटि कानऽ लगला । हुनक घमंड चुर-चुर भऽ गेल छल । पिंकी हुनकर नोर पोछैत बाजल ।
"बाबुजी सभके भोजन करबैय सँ बेसि जरूरी अछि जे भुखल छथि तिनका भोजन कराबि "
महेश बाबु बिना किछु बजनै सर नीचा कऽ हामी भरला आ पिंकी के गला सँ लगबैत सुगना सँ माफी मांगैत चलि देला ।
__घनश्याम झा (दरभंगा
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