मैथिली जुनि बिसरू मैथिल भाषी (कविता)

विनती करैय छी मिथिलावासी , 
मैथिली जुनि बिसरू मैथिल भाषी ।

गाम बिसरलौ, नाम बिसरलौ,
चौकी आ दलान बिसरलौ,
कन्सारक भुजल ओ भुजा, 
जुडिशीतलक थाल बिसरलौ।

पाग बिसरलौ, पान बिसरलौ, 
पोखरि, माछ, मखान बिसरलौ, 
सामा चकेबा, साँझ, पराति, 
विद्यापतिक ओ गान बिसरलौ।

करकर करैत ओ तिलकोर,
मिठका तिलबा गुडक बोर, 
गामक भोज अरू सरोकार, 
कतहु कि भेटत सगरो संसार।

कतहु कमाबु कतहु खटाबु,
ओतहि मिथिलाक नाम बढाबु, 
विद्यापति, माँ जानकीक गाथा, 
गाबु आ सभके गाबि सुनाबु।

मिठगर बोली अपन मैथिली, 
सब कियौ बाजु आउर बजाबु, 
घनश्यामक विनती जुनि ठुकराबु,
अपन मिथिला केर लाज बचाबु।

विनती करैय छी मिथिलावासी ,
मैथिली जुनि बिसरू मैथिल भाषी ।

__घनश्याम झा (दरभंगा)

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