सटै जँ ठोर अनचिन्हारक अनचिन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक-गजल

गजल

सटै जँ ठोर अनचिन्हारक अनचिन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक
बाजए जँ केओ प्यार सँ त बुझिऔ होली छैक

बेसी टोइया-टापर देब नीक नहि भाइ सदिखन अनवरत
निकलि जाइ जँ अन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक

केहन- केहन गर्मी मगज मे रहै छैक बंधु
मनुख बचि जाए जँ गुमार सँ त बुझिऔ होली छैक

की दुख होइत छैक चतुर्थीक राति मे नहि बुझि सकबै
हँसी जँ आबए कहार सँ त बुझिऔ होली छैक

जहाँ कनही गाएक भिन्न बथान तहाँ सुन्न- मसान
होइ कोनो काज सभहँक विचार सँ त बुझिऔ होली छैक

11 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. रंग बिरंगक शब्द सजल ई रचना पढि-पढि झूमि रहल छी
    गजल तेहेन नशीला अछि भाई जे भांग पीने बिन घूमि रहल छी

    रचना अहिना रचैत रहू भाई आ जुरबैत रहू सभ मैथिल के, अछि एतबहि टा प्रार्थना
    अहाँ संग समस्त मैथिल आर मिथिला टीमक सदस्य के, फगुआ के शुभकामना

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  2. सटै जँ ठोर अनचिन्हारक अनचिन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक
    बाजए जँ केओ प्यार सँ त बुझिऔ होली छैक

    बेसी टोइया-टापर देब नीक नहि भाइ सदिखन अनवरत
    निकलि जाइ जँ अन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक

    केहन- केहन गर्मी मगज मे रहै छैक बंधु
    मनुख बचि जाए जँ गुमार सँ त बुझिऔ होली छैक

    की दुख होइत छैक चतुर्थीक राति मे नहि बुझि सकबै
    हँसी जँ आबए कहार सँ त बुझिऔ होली छैक

    जहाँ कनही गाएक भिन्न बथान तहाँ सुन्न- मसान
    होइ कोनो काज सभहँक विचार सँ त बुझिऔ होली छैक

    bah

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  3. केहन- केहन गर्मी मगज मे रहै छैक बंधु
    मनुख बचि जाए जँ गुमार सँ त बुझिऔ होली छैक

    ehina likhait rahu

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  4. जहाँ कनही गाएक भिन्न बथान तहाँ सुन्न- मसान
    होइ कोनो काज सभहँक विचार सँ त बुझिऔ होली छैक

    rajendra VIMAL KE DIVALI MON PARI DELAHU

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  5. बेसी टोइया-टापर देब नीक नहि भाइ सदिखन अनवरत
    निकलि जाइ जँ अन्हार सँ त बुझिऔ होली छैक

    nik anchinhar ji,
    aab chinhar bhay gelahu sabhta dekhar kay

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