एक युग मे होइत छैक बारह बरख
आउर एक बरख मे होइत तीन सौ पैसंठ दिवस
एक दिवस मे होइत छैक चौबीस घंटा
एक घंटा मे होइत साठ मिनट
हम कोनो अहां के
गणित आ समयक
हिसाब-किताब नहि
बुझा रहल छी
हम जोइर रहल छी
कतेक समय सं
गाम नहि गेलहु
आधा युग बीत गेल गाम गेला
जहि दिवस स
बाहरि अलों
शहर के रंग-ढ़ंग मे
रंगहि गेलों
सोचैत छी
हम एतहि बदलि गेलों
तहि गाम
कतेक बदलल होइत
छोटका काकाक द्वार पर
आबो लागैत हेतै घूर
दलान पर बैठकी मे
होइत हेत सभ शामिल
सूर्य उगलाक स पहिल
केए सभ जाइत हेतै लोटा लकए
दतमैन स मुंह
आबो धोइत हैत कि नहि गामक लोक
पांच बरख मे
सरकार बदलि जाइत छैक
गामक लोकक मे
सेहो परिवर्तन भेल हेता
लकड़ी-काठी से चूहलि
जलैत हेतै कि नहि
बभनगमा वाली भौजी
चायपत्ती मांगइलै आबैत हेतै कि नहि
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि
ई सभ सोचैत काल
हम एक-एक गप पर तुलना करैत छी शहर से
गाम आउर शहर मे फ़र्क भ गेल छैक
जमीन आ आसमानक
मुदा,
सब कुछ गाम मे
बदैल गेल
नहि बदलल छैक त आत्मीयता.
आउर एक बरख मे होइत तीन सौ पैसंठ दिवस
एक दिवस मे होइत छैक चौबीस घंटा
एक घंटा मे होइत साठ मिनट
हम कोनो अहां के
गणित आ समयक
हिसाब-किताब नहि
बुझा रहल छी
हम जोइर रहल छी
कतेक समय सं
गाम नहि गेलहु
आधा युग बीत गेल गाम गेला
जहि दिवस स
बाहरि अलों
शहर के रंग-ढ़ंग मे
रंगहि गेलों
सोचैत छी
हम एतहि बदलि गेलों
तहि गाम
कतेक बदलल होइत
छोटका काकाक द्वार पर
आबो लागैत हेतै घूर
दलान पर बैठकी मे
होइत हेत सभ शामिल
सूर्य उगलाक स पहिल
केए सभ जाइत हेतै लोटा लकए
दतमैन स मुंह
आबो धोइत हैत कि नहि गामक लोक
पांच बरख मे
सरकार बदलि जाइत छैक
गामक लोकक मे
सेहो परिवर्तन भेल हेता
लकड़ी-काठी से चूहलि
जलैत हेतै कि नहि
बभनगमा वाली भौजी
चायपत्ती मांगइलै आबैत हेतै कि नहि
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि
ई सभ सोचैत काल
हम एक-एक गप पर तुलना करैत छी शहर से
गाम आउर शहर मे फ़र्क भ गेल छैक
जमीन आ आसमानक
मुदा,
सब कुछ गाम मे
बदैल गेल
नहि बदलल छैक त आत्मीयता.
उत्पल भैया अपनेक कविता पढ़ी कें सच मुच में गामक याद आइब गेल ....
जवाब देंहटाएंलकड़ी-काठी से चूहलि
जलैत हेतै कि नहि
बभनगमा वाली भौजी
चायपत्ती मांगइलै आबैत हेतै कि नहि
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि
बहुत निक प्रस्तुति अहिना धुरजार लिखैत रहू !!
विनीत उत्पल जी, मैथिल आर मिथिलामे अहाँक आगमन एहि ब्लॉगकेँ आर सुवासित बना देलक। अहाँसँ आर ढेर रास रचनाक भविष्यमे सेहो आशा रहत।
जवाब देंहटाएंएक युग मे होइत छैक बारह बरख
जवाब देंहटाएंआउर एक बरख मे होइत तीन सौ पैसंठ दिवस
एक दिवस मे होइत छैक चौबीस घंटा
एक घंटा मे होइत साठ मिनट
hamar hridayak halकतेक समय सं
गाम नहि गेलहु kona bujhi gelahu ahan vinit ji, ati sundar
ee blog te din par din chandrama jeka badhal ja rahal achi, kichu aan blog me chandramak ghatanti dekhal ja rahal achi, muda etay mithila aar maithil blog me poornima sada rahat se vishvas achhi,
जवाब देंहटाएंपांच बरख मे
जवाब देंहटाएंसरकार बदलि जाइत छैक
गामक लोकक मे
सेहो परिवर्तन भेल हेता
लकड़ी-काठी से चूहलि
जलैत हेतै कि नहि
बभनगमा वाली भौजी
चायपत्ती मांगइलै आबैत हेतै कि नहि
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि bad nik
utkriskt rachna sabhak bhadar achi ee site, parishramak parinam sarvada nik hoit achi, rang roop me seho utkrishta aayal acchi rachane jeka.
जवाब देंहटाएंgam gharak yadi aani delahu
जवाब देंहटाएंबहुत निक पृसतुति ---
जवाब देंहटाएं-एक युग मे होइत छैक बारह बरख
आउर एक बरख मे होइत तीन सौ पैसंठ दिवस
एक दिवस मे होइत छैक चौबीस घंटा
एक घंटा मे होइत साठ मिनट
गोबर स घर-द्वार
नीपैत हेतै कि नहि
दरवाजा पर माल-जालक
टुन-टुन बाजैत हेतै कि नहि
बहुत-बहुत धन्यवाद , मैथिल और मिथिला में------
बड्ड नीक कविता लागल
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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