हिमांशु चौधरी
विष-वृक्ष
धरतीमे आबि
आकाश दिश ताकऽ बला
स्थितिसँ
काँपि रहल छी
हसोन्मुख प्राप्तिकँ लऽ कऽ
दुःखक अन्तिम परीक्षा भऽ रहल अछि
देवता रहितौ
देवता मरि गेलाक कारणें
आस्था
मन्दिरमे सूतल अछि
सुषुप्त आस्थाकेँ
जगओनाइ कठिन भऽ रहल अछि
दिनानुदिन आ उपचारहीन
युगक अवैध घाओक
पीजमे पिछड़ि कऽ
हरेक अंगकेँ
क्यान्सर कहि
नियतिमे दिन बिताबऽ पड़ि रहल अछि
घाओक टनकनाइसँ बेसी
घाओक परिकल्पनासँ
अवरुद्ध अछि- कण्ठ आ छाती
आड़ि-आड़िमे
शरीरक अंग भेटऽ लागल अछि
हर जोतबाक
सहास नहि भऽ रहल अछि
मानचित्रसँ
हिमालक छाह भागल जा रहल अछि
पहाड़ आ मधेशमे
अन्हार बढ़ल जा रहल अछि
पीयर गजुरक नीचाँ
हवाक वेगसँ
बुर्जाक घण्टीमे
सेहो घृणा चिचिया रहल अछि
उड़ैत परबाक पाँखिमे
सेहो बारुद बान्हल अछि
फरिच्छेमे
मृत्युदण्डक क्रम बढ़ैत गेलासँ
मृत्युक खातामे
मूल्यवान छाती
छाउर भेल जा रहल अछि
भोर आ राति
गर्भाधान कएनाइ
छोड़ने जा रहल अछि
छीः छीः
एहनेमे विष वृक्ष रोपनाइ नहि
बन्द भऽ रहले अछि।
डा. रेवतीरमण लाल
मधुश्रावनी
मधुश्रावनी आएल
मन-मन हर्षए
चहुँदिस साओन
सुन्दर घन वर्षए
काँख फुलडालि
मुस्कथि कामिनी
मलय पवन
सुगन्धित शीतल
दमकए दामिनी
नभ मंडलमे घनघोर
मानू जल नहि वर्षए
ई विरही यक्षक नोर
झिंगुर बेंङ्ग गुञ्जए
जल थल अछि चहुँओर।
वृषेश चन्द्र लाल
नजरि अहाँक चितकेर जूड़ा दैत अछि।
घुराकए एक क्षण जिनगी देखा दैत अछि।
धँसल डीहपर लोकाकए फेर स्वप्न महल
पाङल ठाढ़िमे कनोजरि छोड़ा दैत अछि॥
बजाकए बेर-बेर सोझे घुराओल छी हम
हँसाकए सदिखन हँसीमे उड़ाओल छी हम
बैसाकए पाँतिमे पजियाकए लगमे अपन
लतारि ईखसँ उठाकए खेहारल छी हम
सङ्केत एखनो एक प्रेमक बजा लैत अछि
जरए लेले राही जड़िसँ खरा दैत अछि
उठाकए उपर नीच्चा खसाओल छी हम
जड़ाकए ज्योति अनेरे मिझाओल छी हम
लगाकए आगि सिनेहक हमर रग-रगमे
बिना कसूर निसोहर बनाओल छी हम
झोंक एक आशकेर फेरो नचा दैत अछि
उमंगक रंगसँ पलकेँ सजा दैत अछि
निमिष झा
हाइकू
चाँदनी राति
नीमक गाछ तर
जरैछ आगि।
गरम साँस
छिला गेलैक ठोर
प्रथम स्पर्श।
परिचित छी
जीवनक अन्तसँ
मुदा जीयब।
बहैछ पछबरिया
जरै उम्मिदक दीया
उदास मोन।
पीयाक पत्र
किलकिञ्चत् भेल
उद्दीप्त मोन
श्रम ठाढ़ छै
श्रमिक पड़ल छै
मसिनि युग।
मृत्युक नोत
जीबाक लेल सिखु
देब बधाइ।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि
चहकऽ लागल चिड़िया-चुनमुन
पसर खोललकै चरबाहासुन
नव उत्साहक सनेस परसैत
करै कोइलिया सोर
उठह जनकपुर भेलै भोर
दादीक सूनि परातीक तान
तोड़ल निन्न सुरुज भगवान
सूतलसभकेँ जगबऽ लए पुनि
गूँजि उठल महजिदमे अजान
कहैए घण्टी मन्दिरक
मनमे उठबैत हिलोर
उठह जनकपुर भेलै भोर
हम्मर-तोहर इएह धुकधुक्की
फैक्ट्रीक साइरन, ट्रेनक पुक्की
खालि कर्मक जतऽ भरोसा
दुख-सुख जिनगीक चोरानुक्की
घरसँ बहरैहऽ पाछाँ जा
ता मन करह इजोर
उठह जनकपुर भेलै भोर
अन्यायक संग लड़बालए तोँ
प्रगतिक पथपर बढ़बालए तोँ
मिथिलाकेर अम्बरपर बिहुँसैत
चानक मुरती गढ़बालए तोँ
गौरवगाथा सुमिरैत अप्पन
हिम्मत करह सङोर
उठह जनकपुर भेलै भोर
रूपा धीरू
अङ्गेजल काँट
नहि जानि बहिना किएक
आइ तोँ बड़ मोन पड़ि रहल छह
आ ताहूसँ बेसी तोहर ओ
छहोछित्त कऽ देबवला
मर्मभेदी वाण।
बहिना तोँ कहने रहऽ हमरा
ऐँ हइ बहिना!
एहन काँट भरल गुलाबकेँ
अपन आँचरमे एना जे सहेजने छह
तोरा गड़ैत नहि छह?
तोँ उत्तर पएबाक लेल उत्सुक छलह
मुदा हम मौन भऽ गेल रही
आ तोँ मोनेमोन गजिरहल छलह।
हँ बहिना, ठीके
हमरो तोरेजकाँ
अपन जिनगीमे फूलेफूल सहेजबाक
सपना रहए
आ अगरएबाक लालसा रहए तोरेजकाँ
अपन जिनगीपर
मुदा की करबहक...!
मोन पाड़ह ने
छोटमे जखन अपनासभ
ती-ती आ पँचगोटिया खेलाइ
बेसी काल हमहीँ जीतैत रही
मुदा जिनगी जीबाक खेलमे
हम हारि गेल छी बहिना।
काँट काँटे होइ छै बहिना
गड़ै कतहु नहि
मुदा हम काँटेकेँ अङेजि लेने छी
मालिन जँ काँटकेँ
नइ अङेजतै बहिना तँ फेर गुलाब महमहएतै कोना?
ehi prastutik kono javab nahi
जवाब देंहटाएंहिमांशु चौधरी
विष-वृक्ष
धरतीमे आबि
आकाश दिश ताकऽ बला
स्थितिसँ
काँपि रहल छी
हसोन्मुख प्राप्तिकँ लऽ कऽ
adbhut prastuti.
जवाब देंहटाएंoh etek nik prastuti rupa dhiru jik avajak sunlak bad kavita padhbak maukla bhetal, ati uttam.
जवाब देंहटाएंsabh kavita nik
जवाब देंहटाएंसभ कविता बड्ड नीक
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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