द्विभाषिक लेखन

साहित्यिक लेखन मे प्राय: द्विभाषिकता क स्थिति आ कतहु कतहु बहुभाषिकता क स्थिति व्‍याप्‍त अछि ।कालिदास देवभाषा मे लिखतहु किछ पात्रक लेल प्राकत क प्रयोग करैत छथिन्‍ह ।विद्यापति मैथिली,अपभ्रंश,अवहत्‍थ आ देवभाषा मे एक साथ निष्‍णात छलाह ।आधुनिक लेखन मे बाबा नागार्जुन अर्थात यात्री जी (हिंदी ,मैथिली ,बांग्‍ला ,आदि)सुमन जी(मैथिली आ देवभाषा)आरसी बाबू(हिंदी ,मैथिली)राजकमल चौधरी(हिंदी ,मैथिली)आदि एक साथ दू टा या बेशी भाषा मे सक्रिय रहलाह ।ई कोनो तरहें लेखकगणक कमजोरी नहि रहल ।बहुभाषिक विनिमयक स्थिति के कारणें दूनू दिश फायदा रहल ।शब्‍द भंडार,क्रिया रूप वा अभिव्‍यक्ति क विभिन्‍न धरातल पर ई उपयोगी स्थिति छल ।एकरा कोनो तरहें वर्णसंकरता नइ कहल जा सकैत छैक ।हमर मित्र आ एकटा छोट भाइ ऐ स्थिति पर चिंता व्‍यक्‍त करैत एकरा वर्णसंकरता कहैत छथिन्‍ह आ रचना क शुद्धता पर बल दैत छथिन्‍ह ।शुद्धता आ मौलिकता अलग चीज छैक आ द्विभाषिकता के वर्णसंकरता क अभिधान दैत अपन बात रखनए अलग बात छैक ।ओहि आलेख मे यात्रीजी के वर्णसंकरताक जनक मानल गेल अछि ।यदि विद्यापति,यात्री,आरसी,फिराक,खुसरो क बहुभाषिकता वर्णसंकरता छैक तखन वर्णसंकरता साहित्‍य क लेल कते बडका वरदान छैक ई विचारनीय ।
द्विभाषिकता क ई स्थिति ओहि ठाम वाकइ असमंजस उत्‍पन्‍न करैत अछि जखन एके टा रचना दू भाषा मे फराक फराक मौलिक बताओल जाइत छैक ।ई स्थिति प्राय: हिंदी मैथिली मे लेखन करए वला कविगण करैत छथि ,मुदा ई साहित्‍य क लेल कोनो बडका संकटक बात नइ छैक ।प्रेमचंद पहिले उर्दू मे लिखिके हिंदी मे अनुवाद करैत छलाह ।बाद मे हिंदी मे लिखिके उर्दू मे अनुवाद करए लागलाह ।हमखुर्मा व हमसवाब क अनुवाद ओ 1907 ईसवी मे प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह क नाम से केलथि ।हुनकर उर्दू उपन्‍यास जलवा ए ईसार 1921 ईसवी मे वरदान नाम सं प्रकाशित भेल ।वास्‍तव मे हिंदी क हुनकर पहिल उपन्‍यास सेवासदन(1918)पहिले उर्दू मे बाजारे हुश्‍न नाम सं लिखल गेल ।इए‍ह स्थिति प्रेमचंदक कहानी क अछि ।मुदा हिंदी आ उर्दू दूनू हुनका श्रेष्‍ठ साहित्‍यकार क रूप मे सम्‍मान दैत अछि ।हुनका नकारवा क लेल ने हिंदी ने उर्दू प्रस्‍‍तुत अछि ।
हिंदी मैथिली मे इएह स्थिति नागार्जुनक अछि ।नागार्जुन मने अप्‍पन ठक्‍कन मिश्र ।बलचनमा क स्थिति पर जे विवाद हो हुनकर कविता हिंदी आ मैथिली दूनू जगह मॉडल जंका अछि ।कोनो साधारण मॉडल नइ अभिव्‍यक्ति क परम प्रतीक क रूप मे ,जकरा दिश संशोधन क आंखिए देखनए संभव नइ ।
ऐ संक्षिप्‍त आलेख मे हमर निवेदन ई जे मौलिकता क मार्ग सुन्‍दर अछि मुदा ई एकाकी आ निस्‍संग नइ होइबाक चाही ।जेना वैदिक मुनि ज्ञान क सभ श्रोत के अपना दिश अएबा क आवाहन करैत छथि ,तहिना मैथिली साहित्‍य सेहो सभ के साथ चलए आ सबसं आगां बढए ।

5 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. NEEK VIVECHAN MUDA YATRI/ NAGARJUN BALA MODEL JE SABH APANABAY LAGATAH TE MAITHILI TE KHATAME BHAY JAYAT..ONA MADHUPJIK GHASAL ATHANNI YATRIK SAMAST MAILITHILI KAVITAK SARVAHARA SAMVEDNA SE BADHI KAY ACHHI.

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  2. पाठकजी, अहाँक लेखसँ हमसहमत छी मुदा अहाँक ई पाँती जे "हमर मित्र आ एकटा छोट भाइ ऐ स्थिति पर चिंता व्‍यक्‍त करैत एकरा वर्णसंकरता कहैत छथिन्‍ह आ रचना क शुद्धता पर बल दैत छथिन्‍ह ।" ऐ सँ सहमत नै छी। कारण अहाँक छोट भाइ आशीष अनचिन्हार हिन्दी आ मैथिली दुनूमे रचनाकेँ मौलिक कहबापर आपत्ति व्यक्त करै छथि। जहाँ धरि प्रेमचन्द वा (पंजाबीक अमृता प्रीतम सेहो)आन लेखकक गप छन्हि ओइ मे एत' कने अंतर छै। आन लेखक एकसँ बेशी भाषामे लिखै छथि से हुनकर सामर्थ्य छन्हि;मुदा प्रेमचन्द अनुवाद नै लिप्यंतरण करै छथि कारण उर्दू-हिन्दीक वाक्य संरचना संज्ञा, क्रिया सभ एक्के छै, ई कनेक पंजाबी पर सेहो लागू होइ छै, मुदा ओतए हिन्दी-उर्दूसँ स्थितिमे ओतेक समानता नै छै, मुदा क्रिया आदिक समानता छै; मुदा मैथिलीक स्थिति लिप्यंतरण धरि सीमित नै वरन साहित्यिक व्यभिचार धरि गेल अछि; ऐ मे लेखकक नैतिकता सोझाँ अबै छै जे मात्र आ मात्र पुरस्कार धरि सीमित छै। बलचनमाक विषयमे यात्री जी कहै छथि जे "ये मैंने मैथिली में लिखा और फिर इसका हिन्दीमें अनुवाद किया" तखन फेर ओ कोना संस्करण दर संस्करण "बलचनमा"क आवरण पर एकरा "हिन्दी का पहला आंचलिक उपन्यास" लिखल दै जएबाक अनुमति दैत रहलाह। यात्री अंतर्द्वन्द्वसँ ग्रसित नै छलाह की? पहिने बौद्ध भेलाह आ फेर जखन ब्राह्मणवाद दिस घुरलाह तँ गौँवा सभ बारि देलकन्हि तँ फेरसँ गाममे बुढारीमे यज्ञोपवीत करेबा लेल तैयार भ' गेलाह!!

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  3. रवि भूषणजी, हमरा सोझाँ मे "गेब्रियल गार्सिया मार्क्विस
    " क "वन हण्ड्रेड ईयर्स ऑफ सोलीट्यूड" राखल अछि; आवरणपर यएह टा लिखल छै, मुदा भीतरमे छै "ट्रान्सलेटेड फ्रॉम द स्पेनिश बाइ ग्रेगोरी रब्बासा" आ ई लिख देलासँ मार्क्विसक महत्व कम नै होइ छै। जे कोनो गल्ती हिन्दी वा आन भाषा मे भेल छल ओइ आधारपर ओ मैथिलीमे सेहो हुअए, से नै हेबाक चाही। प्रश्न "मौलिकता"क नै छै, प्रश्न छै अनूदित रचनाकेँ मौलिक कहबाक; अनुवाद केर सीमा होइ छै, आ ओ सीमा तखनो रहिते छै जखन ओ स्वयं द्वारा अनूदित रहै छै। हिन्दी-उर्दूक झमेला लिपिक आ साम्प्रदायिकताक झमेला छिऐ जकर परिणामस्वरूप देश बँटि गेल (कएक कारण्मे एकटा ईहो कारण अछि), नागरी प्रचारिणी सभा उर्दू (फारसी लिपि)मे लिखि कऽ हिन्दी (देवनागरी लिपि)क प्रचार केलक। मुदा २१म शताब्दीक दोसर दशकमे ई सभ उदाहरण मैथिलीक सन्दर्भमे लागू नै होइत अछि। यात्री वा किनको रचना "मैथिलीसँ अनूदित" लिख देलासँ न्यून कोटिक नै भऽ जाएत।

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  4. dvibhasik lekhan khas kay maithili aa hindi me khatam hebak chahi.

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  5. sir maithili new geet sab rakal karu na tab ne mitla ke sab lok sunsakai ya.

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