गजल- आशीष अनचिन्हार

बेमार छी मुदा बेमार नहि लगैत छी
दवाइ खाइ से कहिओ ने चाहैत छी
हमरा अहाँ नीक लगलहुँ सभ दिन सँ
मुदा प्रेम अछि से कहि नहि पबैत छी
विसर्जनक पछाति बला मूर्ति छी हम
भसा देल गेलहुँ मुदा नहि डुबैत छी
सभ दिन हमरा लेल मधुश्रावनिए थिक
टेमी दगेलाक पछातिओ नहि कुहरैत छी

2 टिप्पणियाँ

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  1. हमरा अहाँ नीक लगलहुँ सभ दिन सँ



    मुदा प्रेम अछि से कहि नहि पबैत छी

    bad neek

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  2. @ टेमी दगेलाक पछातिओ नहि कुहरैत छी
    बड नीक प्रयोग लागल।
    पूरा ग़ज़ल सुंदर अछि।

    जवाब देंहटाएं

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