कालीकांत झा "बूच"- 1934-2009 दू टा गजल

1
अहॅक लेल रंजन, हमर भेल गंजन
केहेन खेल ई, रक्त सॅ हस्त मंजन

तरल नेह पर मात्र दुःखक सियाही,
जड़ल देह हम्मर अहॅक आॅखि अंजन

रचल गेल छल जे, सुखक लोक सुन्दर
चलल अछि प्रलय लऽ तकर सुधिप्रभंजन

मृतक हम, अहाॅ छी सुधा स्वर्ग लोकक
अहॅक लेल यौवन हमर गेल जीवन


2
सध्यः अहाॅ, मुदा छी सपना एहि जीवन मे
सहजो सुख भऽ गेल कल्पना एहि जीवन मे

विहुॅसल ठोर विवश भऽ विजुकल,
मादक नैन नोर केर नपना एहि जीवन मे


अछि केॅ कतऽ श्रृंगार सजाओत्,
आश लाश पर कफनक झपना एहि जीवन मे


दुनियाॅ हमर एकातक गहवर,
भेल जिअत मुरूतक स्थपना एहि जीवन मे

दीप वारि अहाॅ द्वारि जड़यलहुॅ,
घऽर हम लोकक अगितपना एहि जीवन मे

2 टिप्पणियाँ

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