झूमि रहल अछि केयो शराब पी...
हम पानी लेल तरशै छी,
जेम्हरे भरल नदी नाला सब,
हे मेघ! अहूँ ओम्हरे बरसै छी,
दुनिया बढ़ि गेल मंगल ग्रह तक,
हम धरती के धयने छी,
ककरो खा के पेट फुलल छै
हम दस दिन सं बिन खयने छी,
खा के जिनकर मोन अघा गेल
हुनके दिस परशै छी,
जेम्हरे भरल नदी नाला सब,
हे मेघ! अहूँ ओम्हरे बरसै छी,
तन झाँपि सकब हम से उपाय नहिं
केकरो बहुत-बहुत कपड़ा छै,
केकरो आलिशान महल छै,
नहिं हमरा घर पर खपड़ा छै,
हमरा घर के हाल देखि के,
मोनहि मोन हरशै छी,
जेम्हरे भरल नदी नाला सब,
हे मेघ! अहूँ ओम्हरे बरसै छी,
ककरो पुत्र पढय लन्दन में
हमर पुत्र गोबर चुनै ए.
ककरो पत्नी परल सेज पर.
हम्मर पत्नी माथ धुनै ए,
फेर अहाँ ग़ुम किये भेल छी
इ हाल हमर दरशै छी,
जेम्हरे भरल नदी नाला सब,
हे मेघ! अहूँ ओम्हरे बरसै छी,
केयो कानै अछि बिलखि-बिलखि के,
केयो गीत खुशी के गावै ए,
दिन-राति इएह सब सोचि-सोचि के
नींद न हमरा आबई ए,
ग्रह ग्रसित त भेले छी फेर
अहाँ किये गरसै छी,
जेम्हरे भरल नदी नाला सब,
हे मेघ! अहूँ ओम्हरे बरसै छी,
लेखक : मनोज कुमार झा (प्रलयंकर), कल्यानपुर (समस्तीपुर)
भैया मैथिल आर मिथिला (मैथिली ब्लॉग) पर अपनेक स्वागत अछि|
जवाब देंहटाएंसंगे हम उम्मीद करे छी जे अपनेक कलमसँ आर बहुत किछ हमर ब्लॉग प्रेमी बंधू गन के पढबाक लेल मिलतैन.. आ अपनेक नव - नव रचना ई ब्लॉग पर प्रकाशित होइत रहत....
धन्यवाद श्री जीत्तू जी, मैं और भी हिन्दी और मैथिली रचनाएं भेजता रहूंगा. अभी तक ये www.openbooksonline.com पर आती थी, आप चाहें तो वहां से भी ले सकते हैं. आपका शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबड नीक लागल अहाण्क प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका अपना ब्लॉग एग्रीगेटर apnivani.com
जवाब देंहटाएंआपका अपना ब्लॉग एग्रीगेटर apnivani.com बस थोडा सा इंतज़ार करिए और कुछ ही दिनों में हमारे बीच आने वाला है ब्लॉग जगत का नया अवतार apnivani.com...
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emial:apnivani@gmail.com
bahut sunder likhne chiyaye.
जवाब देंहटाएंAdbhut lekh, manav jivan k purn prati rupan kahab haraj nay je e kavita, Kavi san purn parichay kara delaith.
जवाब देंहटाएंNamaskar Bhaiya
aasha je sahitya purn lekh aur ahan san padbak hetu milat.
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