गजल

गप्प हमरा संग अहाँ करैत रहू
एहिना मोन हमर जुरबैत रहू

मोन कहिओ नहि भरतैक केकरो
हम अहाँ के छूब अहाँ हमरा छूबैत रहू

बरसि जेतै सभतरि अमरित केर बरखा
कनी कनडेरिए अहाँ देखैत रहू

चलू दोस्त नहि दुश्मने बनि जाउ हमर
आ करेज सँ करेज भिरा लड़ैत रहू

अनचिन्हार लिखत प्रेमक पाँति
करेज पर हाथ राखि एकरा पढ़ैत रहू

2 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. चलू दोस्त नहि दुश्मने बनि जाउ हमर
    आ करेज सँ करेज भिरा लड़ैत रहू
    अनचिन्हार लिखत प्रेमक पाँति
    करेज पर हाथ राखि एकरा पढ़ैत रहू
    नीक

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