हमर कनियाँ (कविता) - सन्तोष मिश्र

हमर करम तहिए फुटल
जे कनियाँ भेल कारी
एशनो पाउडर सेन्ट लगाकs
बने हेमा मालिनी

करियोकें निक नहि कहबै त
ई नइ होएत समझदारी
काम धाम के नाम पर हुनका
भsजाइ छनि बिमारी

गाम - गामकें नोतपुरीमें
संगे जाएत हमर कनियाँ
पाहून - परक जौ आएत त
नहि उठाएत ओ बड़का हँड़िया

देह दुखाइए, माथ दुखाइए
करत नहि आइ भन्सा
साढ़े आठ बाजिगेल त
देखs चलिगेल चन्द्रकान्ता

निक - बेजाए सुन बियौ नइ
नइ त पढ़ती ओ हमरा गाइर
चुपचाप भानस बनाबs परैए
नहि त खाहु पड़त माइर

तलब छुटल त देलियनि हुनका
ख़ुशी भsकहली हमरा निक लड़का
साड़ी आ मिठाई लाबिदेली तखन
हटोली ओ नजदीकसँ सटका

फिल्म बदलल त देखाबsजाउ
कोक - नास्तामें सय-दु सय गुमाउ
रिक्सा चैढीकs आउ आ जाउ
घरमें अपनेसँ भानस बनाउ

कारी अक्षर भैंस बराबर
सुनती समाचार अंग्रेजीमें
कनियाँ नहि म्याडम कहु
त इज्जत रहत हिप्पीकें

औठा छाप भइयोकs
कलम चाही स्टेनडर
बज्जर खसुवा - मसोरुवा
सुनिकs बाहरैछी घर

दहेजक लोभमें बाबुजी
कनियाँ कsदेलैथ कारी
अखन त हम राम बनलछी
बादमें बनब महाराजी
 
 
 
सन्तोष कुमार मिश्र
जनकपुर - ७, धनुषा/हाल: सानेपा - ३, ललितपुर, काठमाण्डू, नेपाल ईमेल: santosh.mishra101@gmail.com

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