मैथिली गजलशास्त्र- भाग-३
आब मैथिली गजलक किछु कठिनाह विषएपर आबी।
कठिनाह विषए किछु विविधता आनत आ मैथिलीक परिप्रेक्ष्यमे नूतनता सेहो, मुदा ततेक कठिनाह सेहो नहि।
वैदिक आ मैथिली छन्दक गणना अक्षरसँ होइत अछि से तँ कहिये गेल छी, गुरु-लघुक विचार ओतए नहि भेटत। मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ लौकिक संस्कृत आ हिन्दीसँ प्रभावित छथि मुदा गएर मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक शब्दावलीमे ढेर रास शब्द भेटत जे वैदिक संस्कृतमे अछि मुदा लौकिक संस्कृतमे नहि, तेँ कम दूषित आ खाँटी मैथिली भाषा हुनके लोकनिक अछि आ तेँ छन्दक गणना अक्षरसँ करबाक आर बेशी आवश्यकता।
गायत्री-२४ अक्षर
उष्णिक्- २८ अक्षर
अनुष्टुप् – ३२ अक्षर
बृहती- ३६ अक्षर
पङ्क्ति- ४० अक्षर
त्रिष्टुप्- ४४ अक्षर
जगती- ४८ अक्षर
शूद्र कवि ऐलुष आ आन गोटे द्वारा रचित ऋक् वेद मे गायत्री, त्रिष्टुप् आ जगतीक छन्द सर्वाधिक परिमाणमे भेटैत अछि से एहि तीनूपर विचारी।
गायत्री: ई चारि प्रकारक होइत अछि- द्विपदी, त्रिपदी, चारि पदी आ पाँचपदी। चारि पदी मे ८-८ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक गायत्री शेर तैयार। ओना एहिठाम हम स्पष्ट करी जे गायत्री मंत्र नहि छंद छैक। लोक जकरा गायत्री मंत्र कहैत छैक ओ सविता मंत्र छैक जे गायत्री छंद मे कहल गेल छैक।
त्रिष्टुप्: चारि पद, ११-११ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक त्रिष्टुप् शेर तैयार।
जगती: चारि पद १२-१२ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक जगती शेर तैयार।
आब जेना पहिने कहल गेल अछि जे गायत्रीमे एक-दू अक्षर कम वा बेशी सेहो भए सकैत अछि माने २२ सँ २६ अक्षर धरि गायत्रीक प्रकार भेल- विराड् गायत्री भेल- २२ निचृद् गायत्री भेल- २३ भुरिग् गायत्री भेल- २५ आ स्वराड् गायत्री भेल २६ अक्षरक। तँ निअमक अन्तर्गत भेटि गेल ने छूट आ स्वतंत्र भऽ गेल ने मैथिली गजल।
पूर्ण विराम छोड़ियो सकै छी।
आउ आब गजल कही:
गायत्री गजल
त्रिष्टुप् गजल
जगती गजल
(क्रमशः भाग-४ मे)
मैथिली गजलशास्त्र- भाग-४
आउ आब गजल कही:
आब मैथिली गजलक किछु कठिनाह विषएपर आबी।
कठिनाह विषए किछु विविधता आनत आ मैथिलीक परिप्रेक्ष्यमे नूतनता सेहो, मुदा ततेक कठिनाह सेहो नहि।
वैदिक आ मैथिली छन्दक गणना अक्षरसँ होइत अछि से तँ कहिये गेल छी, गुरु-लघुक विचार ओतए नहि भेटत। मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ लौकिक संस्कृत आ हिन्दीसँ प्रभावित छथि मुदा गएर मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक शब्दावलीमे ढेर रास शब्द भेटत जे वैदिक संस्कृतमे अछि मुदा लौकिक संस्कृतमे नहि, तेँ कम दूषित आ खाँटी मैथिली भाषा हुनके लोकनिक अछि आ तेँ छन्दक गणना अक्षरसँ करबाक आर बेशी आवश्यकता।
गायत्री-२४ अक्षर
उष्णिक्- २८ अक्षर
अनुष्टुप् – ३२ अक्षर
बृहती- ३६ अक्षर
पङ्क्ति- ४० अक्षर
त्रिष्टुप्- ४४ अक्षर
जगती- ४८ अक्षर
शूद्र कवि ऐलुष आ आन गोटे द्वारा रचित ऋक् वेद मे गायत्री, त्रिष्टुप् आ जगतीक छन्द सर्वाधिक परिमाणमे भेटैत अछि से एहि तीनूपर विचारी।
गायत्री: ई चारि प्रकारक होइत अछि- द्विपदी, त्रिपदी, चारि पदी आ पाँचपदी। चारि पदी मे ८-८ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक गायत्री शेर तैयार। ओना एहिठाम हम स्पष्ट करी जे गायत्री मंत्र नहि छंद छैक। लोक जकरा गायत्री मंत्र कहैत छैक ओ सविता मंत्र छैक जे गायत्री छंद मे कहल गेल छैक।
त्रिष्टुप्: चारि पद, ११-११ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक त्रिष्टुप् शेर तैयार।
जगती: चारि पद १२-१२ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक जगती शेर तैयार।
आब जेना पहिने कहल गेल अछि जे गायत्रीमे एक-दू अक्षर कम वा बेशी सेहो भए सकैत अछि माने २२ सँ २६ अक्षर धरि गायत्रीक प्रकार भेल- विराड् गायत्री भेल- २२ निचृद् गायत्री भेल- २३ भुरिग् गायत्री भेल- २५ आ स्वराड् गायत्री भेल २६ अक्षरक। तँ निअमक अन्तर्गत भेटि गेल ने छूट आ स्वतंत्र भऽ गेल ने मैथिली गजल।
पूर्ण विराम छोड़ियो सकै छी।
आउ आब गजल कही:
गायत्री गजल
त्रिष्टुप् गजल
जगती गजल
(क्रमशः भाग-४ मे)
मैथिली गजलशास्त्र- भाग-४
आउ आब गजल कही:
गायत्री गजल
छै सुनि देखि रहल , छै ककरासँ ककर
कोन गपक सहल, छै ककरासँ ककर
हे अछि देखि सहल, अछि की टीस उठल
रे चिन्हलकेँ चीन्हल, छै ककरासँ ककर
ई सभ सत्यक संगी , सभ छै भेष बदलि
के अछि मुँह फेरल, छै ककरासँ ककर
हे बिजुलौका देखियौ, छै उकापतङ्ग जेकाँ
की माथ सुन्न कएल, छै ककरासँ ककर
अगिनवान मैथिली, की सुखि जाएत धार
कहै किदनि कहल, छै ककरासँ ककर
करू कोन समझौता, करू कोन निपटारा
के ललकारि रहल, छै ककरासँ ककर
के अछि उठा रहल, अछि के झुका रहल
के अछि बाजि रहल, छै ककरासँ ककर
ऐरावत छै चकित, अछि की सोचि रहल
ई कर्णधार बँचल, छै ककरासँ ककर
त्रिष्टुप् गजल
अछि चोरबा संग देखू ठाढ़, देखैत रहलि डकलिलामी
नहि होएत आब बरदाश्त, डाक- डकौअलि डकलिलामी
ई सुरकि रहल छल आब, नै भेटत आब फेर की खाद्य
अछि कोना भेल ई असम्हार, डघरब चलि डकलिलामी
कोना तड़फड़िया सभ अछि, डगहर थस लेने की बात
नञि निचेन भेल अछि बाप, ओ मुहानी आनि डकलिलामी
औ बुझारति होएत फेरसँ, भेल की ई ढिंढमदरा आब
ई ढाबुस बेंगक अछि ठाढ़, ई ककर चालि डकलिलामी
पुक्की पाड़ि के रहल पुकारि, बहीर बनि भने अछि ठाढ़
नहि ककरो सुनब पुकार, ई हथौड़ा मारि डकलिलामी
कहू यौ किएक छी हूस ठाढ़, ऐरावतक फोंफक अबाज
नहि किए बनल बौक ठाढ़ , चिपैले सुआदि डकलिलामी
जगती गजल
भगवानक बनाओल ई गाम, जखन अछि हो भोर बकटेंट
नहि तँ भेटत की कोनो विराम, अछि भेल कोना भेर बकटेंट
औ की नहि भेटत आबहु त्राण, छी सुनल सएह सरनरिया
कोना मिरदङिया देलक थाप, ई मिरहन्नी शेर बकटेंट
जाए रहल पछताए रहल, नहि बाट कोनो सुझाए रहल
अछि गोलहत्थी खाइत ई छौड़ा, पँचागि ई बिहटार बकटेंट
मोचण्ड बूड़ि रौदमुँहा होइत, साँझक लकधक बैसि रहल
धमधूसर सभ बेर लगौरी, आनि रहल गनौर बकटेंट
गदा रे गुइँ गुइँ मार गदा रे, गदा रे पुइँ पुइँ, मुक्का मारल
गताखोरक छै ई हेँज चलल, गतात संग पथार बकटेंट
बेराम पड़ब नै आउ सकल, बेपर्द करब बेदरंग भेल
ऐरावत चीन्हि बेपारी सभकेँ, करू भाषाक व्यापार बकटेंट
(क्रमशः भाग-५ मे)
पोस्ट स्क्रिप्ट:एखन धरिक गजलशास्त्रक प्रस्तुतिपर किछु टिप्पणी एतए प्रस्तुत अछि:
१
गंगेश गुंजन
ग़ज़ल पर संपादकीय मे स्थान देब एकटा गंभीर संपादन-बोधक व्यवहार बुझायल। तें एकर स्वागत आ बधाइ ।
ग़ज़लक बुनियादी अर्थ-शृंखला मे स्त्री, सुन्दर स्त्री एक खूब प्रशस्त अर्थ भेलैक। स्त्री अर्थात सौन्दर्य, शक्ति, प्रेम, आनन्द, सृष्टिक सब सं मधुर गीत।
ग़ज़ल तें कविता-विधाक सर्वोत्तम 'विधा' सेहो ( यद्यपि ई विवादहीन मान्यता नहिं तथापि...)
एक समय हिन्दी मे (प्रायः) शाइर इक़बालक कहल छनि-.....शाइरी इल्म से नहीं आती ' (पहिल पांती बिसरै छी)
अपन ग़ज़ल-कोटिक रचना कें, मैथिली हो बा हिन्दी, हम "ग़ज़ल नुमा" कहैत रहलियैक। तकरो आशय यैह। मैथिलीक अत्यल्पे ग़ज़ल हएत जे ग़ज़लक एहि बुनियादी लक्षणक ल'ग मे देखाय। ओना हमर पाठकीयताक सीमा अछि। तें अप्रिय मुदा यथार्थ थिक जे मैथिलीक एहि २०१० ई. मे लिखल जा रहल ग़ज़ल-अधिकांश ग़ज़ल हिन्दी-कविताक ' गुप्तकालीन कविता मात्र बुझाइछ। तुकबन्दी । प्रिय साकेतानन्दक शब्द मे- अहा ! ग्राम जीवन भी क्या है...कहीं लौकियां लटक रही हैं ..।( आदरणीय मैथिली शरण गुप्तजीक कविताक ई अनविकल उद्धरण थिक)। हिन्दीक दुष्यन्त कुमारक ग़ज़ल मात्र अपन आधुनिकताक कारणें बा छुच्छ प्रगतिशीलताक कारणें नहि, युग-जीवनक जन-युग-जीवनक ईमानदार अभिव्यक्ति सहज तासीरक कारण सेहो एतेक प्रख्यात-प्रशस्त भेलनि। भरिसके कोइ कहि सकैछ जे कोनो ने कोनो रूपें दुष्यन्तजी कें नहि पढ़ने होथि। नहियों होति तं पढ़ि लेब उपकारके हेतनि। हृदय चाही, आत्मदान । '
शुद्ध सौंदर्ये बनैत अछि आनन्द । मनुष्यक महान आनन्द दुःखेक चरम निरानन्दताक चिर वांछित दुर्लभ चित्तावस्था होइछ। जकरा कविता मे "ब्रह्मानन्द सहोदर" सेहो कहल गेल। से सौन्दर्य ब्रह्मान्ड मे "कविते"टा रचि सकैये ।
हमर उक्ति के रूढ़,निंघेस तथाकथित धर्ममार्गी अध्यात्मक रंगे मे नहि देखल-मानल जाय, से विनती ।
इल्म सेहो तखने पाठककें स्पन्दित करैत छैक।
" कहिये कुछ आसान ग़ज़ल
हर एक दिल की जान ग़ज़ल
जन-मन को दिखलाये राह
भटके मत सुनसान ग़ज़ल
एहि प्रकरण मे अपन "ग़ज़लनुमा"क किछु शेर मोन पड़ि जयबाक कवि-भावुकता कें माफी भेटओ।
गंगेश गुंजन
२
तारानन्द वियोगी
बहुत सुन्दर आ सम्पन्न विवेचन।गायनक सम्बन्ध मे बेस मेंही विवेचन अछि।दोसर भागक प्रतीक्षा रहत।
फेर:
वेद मे सब किछु छै।ओहि मे रसायन विज्ञान छै। कम्प्यूटर आ इन्टरनेट छै।ओहि मे एड्स के इलाज छै।ओहि मे परमाणु विज्ञानो छै।वेद जिन्दाबाद छै। गजल के बापक दिन छियै जे ओ वेद मे नहि रहतै?लेकिन बन्धु, हमर विचार जे फारसीक काव्यशास्त्र के हिन्दुत्वीकरण के बदला मौलिक गजल-रचना मे हिन्दुत्व आनल जाय तं से बेसी श्रेयस्कर।की करबै? दिल पर पाथर राखि लिय" जे ओहि विधर्मी सभक लग मे सेहो काव्य छलै, काव्यशास्त्र छलै।
उत्तर:१.गजलक बापक दिन छिऐ वा नै से तँ नञि बुझल अछि, मुदा वेदमे आन चीज जे होइ मुदा गजल नञि छै आ ओ काव्यशास्त्र फारसक फेर अरबक अछि से जगतख्यात अछि, आ एहिमे हमरा वा ककरो कोनो संदेह नञि होएबाक चाही।
२. फारसीक काव्यशास्त्रक हिन्दुत्वीकरणक संबंधमे हमरा नञि बुझल अछि आ मौलिक गजल रचनामे कोना हिन्दुत्व आनल जाए सेहो हमरा नञि बुझल अछि। काव्यकेँ "हिन्दु" आ "विधर्मी" शब्दावलीसँ दूर राखल जाए सएह नीक, हँ "मैथिली गजल" शब्दक प्रयोगमे हमरा कोनो आपत्ति नञि, आ तकरा हिन्दुत्वीकरण मानल जाए तँ हमर कोनो दोख नहि।
३.ओहि "विधर्मी"(अहाँक शब्दमे) लग सेहो काव्यशास्त्र रहै- ई विश्वास करबामे ककरो करेजपर पाथर नञि राखए पड़तै कारण जतेक सौँसे विश्वमे मिला कऽ कवि/ काव्यशास्त्री भेल होएताह ओहिसँ बेशी कवि/ काव्यशास्त्री अरबी-फारसीमे भेल छथि।
४.प्रायः मैथिली भाषामे गजल जे हम लिखी तँ छन्दशास्त्रक अनुसार लिखी, आ से छन्दशास्त्र हम अरबी-फारसीक प्रयुक्त करी, प्रायः अहाँक मंतव्य से अछि। मुदा ओ ट्राइ कऽ कए हम नञि आनो भाषाबला सभ (जेना अंग्रेजी गजलक शास्त्रकार लोकनि)थाकि गेल छथि, ओहिमे ने लय बनि पबै छै आ ने सरलता आबि पबै छै। ऋगवैदिक छन्दशास्त्र टगण-मगण सँ बेशी वैज्ञानिक आ सरल छै आ मैथिली गजल लिखबा-पढ़बा-गुनगुनएबामे लोककेँ सुविधा होएतैक से हमर विश्वास अछि- वेदक समएमे हिन्दू शब्दक जन्मो नहि भेल रहै से वैदिक छन्दशास्त्रक प्रयोग मात्र मैथिली गजलकेँ हिन्दू बना देतै से हमरा नञि लगैए।
५.तहिना जखन हम "मैथिली हाइकूशास्त्र" लिखने रही तहिया सेहो हमरा लग "वार्णिक" आ "मात्रिक"मे एकटा चयन करबाक छल, आ तहियो हम "वार्णिक"क अक्षर गणना पद्धतिक चयन कएलहुँ। "शिन्टो" धर्मावलम्बी जापानी (किछु बौद्ध सेहो) सभक लिपि आ तकर छन्दशास्त्र जे प्रयोग करी तँ मैथिलीमे हाइकू कहियो नञि लिखल जा सकत; कारण ओकर काव्यशास्त्र जापानी भाषा आ ओकर कएक तरहक लिपिक सापेक्ष छै आ ओहिमे धर्म अबितो छलै (टनका/ वाका- ईश्वरक आह्वाण)। अरबी-फारसी गजल मुदा धर्म निरपेक्ष छै, मुदा ओकर काव्यशास्त्र ओकर अपन भाषा-लिपि लेल छै। से भाषा-निरपेक्ष ने जापानी काव्यशास्त्र भऽ सकै छै आ ने अरबी-फारसी काव्यशास्त्र।
सादर
गजेन्द्र
३
गौतम राजरिशी
पिछला तीन-चार दिन स पढि रहल छि इ आलेख....हिंदी आ उर्दू के ग़ज़ल-शास्त्र स त भलि भांति परिचित रहि, मैथिली के लेल जानकारी बड निक लागल। बहुत मेहनत आ लगन स लिखल आलेख- सेव कs लेलौं घोटै खातिर। मुदा आलेख के आखिर पंक्ति "मैथिली गजलकेँ सेहो ई छूट भेटबाक चाही" स सहमत नै छि। कविता के अ-कविता होय लs दियो, मुदा ग़ज़ल के सर्वदा ग़ज़ल ही रहैक चाहि...अ-ग़ज़ल नै। हमर उस्ताद कहित छथिन कि रचना करि काल सुविधा नै खोजबाक चाहि।
अपनेक फोन नंबर चाहि गजेन्द्र जी...मैथिली शब्द के उच्चारन हेतु किछु शंका निदान करबाक अछि। ग़ज़ल त सब टा खेल अछि उच्चारणक...
उत्तर:राजर्षिजी
मैथिलीमे उच्चारण निर्देश, मैथिली गजल-शास्त्र- भाग-२ मे देल गेल अछि।
हमर मो.नं. ९९११३८२०७८ अछि।
सादर
४
आशीष अनचिन्हार
काफिया केखनो शब्दक नहि , वर्ण आ मात्राक होइत छैक। जेना हमरापर आ ओकरापर दूनू शब्द मे र काफिया छैक। तेनाहिते आरे आ माँड़े(हमर गजलक) मे ए मात्रा कफिया छैक।
एकै भाव बला गजल दूषित मानल जाइत अछि।
उत्तर:मैथिली आ संस्कृतमे मात्र तुकान्त (अन्तक तुक) लयक निर्माण नहि करै छै, मुदा करितो छै।
से ई गप जे-
जे तुक मिलानीक दृष्टिएँ ओहूमे शब्दक आरम्भ-मध्य-आखिरीक किछु अक्षर नहि बदलै छै।
सायास लिखल गेल अछि।
पोस्ट स्क्रिप्ट:एखन धरिक गजलशास्त्रक प्रस्तुतिपर किछु टिप्पणी एतए प्रस्तुत अछि:
१
गंगेश गुंजन
ग़ज़ल पर संपादकीय मे स्थान देब एकटा गंभीर संपादन-बोधक व्यवहार बुझायल। तें एकर स्वागत आ बधाइ ।
ग़ज़लक बुनियादी अर्थ-शृंखला मे स्त्री, सुन्दर स्त्री एक खूब प्रशस्त अर्थ भेलैक। स्त्री अर्थात सौन्दर्य, शक्ति, प्रेम, आनन्द, सृष्टिक सब सं मधुर गीत।
ग़ज़ल तें कविता-विधाक सर्वोत्तम 'विधा' सेहो ( यद्यपि ई विवादहीन मान्यता नहिं तथापि...)
एक समय हिन्दी मे (प्रायः) शाइर इक़बालक कहल छनि-.....शाइरी इल्म से नहीं आती ' (पहिल पांती बिसरै छी)
अपन ग़ज़ल-कोटिक रचना कें, मैथिली हो बा हिन्दी, हम "ग़ज़ल नुमा" कहैत रहलियैक। तकरो आशय यैह। मैथिलीक अत्यल्पे ग़ज़ल हएत जे ग़ज़लक एहि बुनियादी लक्षणक ल'ग मे देखाय। ओना हमर पाठकीयताक सीमा अछि। तें अप्रिय मुदा यथार्थ थिक जे मैथिलीक एहि २०१० ई. मे लिखल जा रहल ग़ज़ल-अधिकांश ग़ज़ल हिन्दी-कविताक ' गुप्तकालीन कविता मात्र बुझाइछ। तुकबन्दी । प्रिय साकेतानन्दक शब्द मे- अहा ! ग्राम जीवन भी क्या है...कहीं लौकियां लटक रही हैं ..।( आदरणीय मैथिली शरण गुप्तजीक कविताक ई अनविकल उद्धरण थिक)। हिन्दीक दुष्यन्त कुमारक ग़ज़ल मात्र अपन आधुनिकताक कारणें बा छुच्छ प्रगतिशीलताक कारणें नहि, युग-जीवनक जन-युग-जीवनक ईमानदार अभिव्यक्ति सहज तासीरक कारण सेहो एतेक प्रख्यात-प्रशस्त भेलनि। भरिसके कोइ कहि सकैछ जे कोनो ने कोनो रूपें दुष्यन्तजी कें नहि पढ़ने होथि। नहियों होति तं पढ़ि लेब उपकारके हेतनि। हृदय चाही, आत्मदान । '
शुद्ध सौंदर्ये बनैत अछि आनन्द । मनुष्यक महान आनन्द दुःखेक चरम निरानन्दताक चिर वांछित दुर्लभ चित्तावस्था होइछ। जकरा कविता मे "ब्रह्मानन्द सहोदर" सेहो कहल गेल। से सौन्दर्य ब्रह्मान्ड मे "कविते"टा रचि सकैये ।
हमर उक्ति के रूढ़,निंघेस तथाकथित धर्ममार्गी अध्यात्मक रंगे मे नहि देखल-मानल जाय, से विनती ।
इल्म सेहो तखने पाठककें स्पन्दित करैत छैक।
" कहिये कुछ आसान ग़ज़ल
हर एक दिल की जान ग़ज़ल
जन-मन को दिखलाये राह
भटके मत सुनसान ग़ज़ल
एहि प्रकरण मे अपन "ग़ज़लनुमा"क किछु शेर मोन पड़ि जयबाक कवि-भावुकता कें माफी भेटओ।
गंगेश गुंजन
२
तारानन्द वियोगी
बहुत सुन्दर आ सम्पन्न विवेचन।गायनक सम्बन्ध मे बेस मेंही विवेचन अछि।दोसर भागक प्रतीक्षा रहत।
फेर:
वेद मे सब किछु छै।ओहि मे रसायन विज्ञान छै। कम्प्यूटर आ इन्टरनेट छै।ओहि मे एड्स के इलाज छै।ओहि मे परमाणु विज्ञानो छै।वेद जिन्दाबाद छै। गजल के बापक दिन छियै जे ओ वेद मे नहि रहतै?लेकिन बन्धु, हमर विचार जे फारसीक काव्यशास्त्र के हिन्दुत्वीकरण के बदला मौलिक गजल-रचना मे हिन्दुत्व आनल जाय तं से बेसी श्रेयस्कर।की करबै? दिल पर पाथर राखि लिय" जे ओहि विधर्मी सभक लग मे सेहो काव्य छलै, काव्यशास्त्र छलै।
उत्तर:१.गजलक बापक दिन छिऐ वा नै से तँ नञि बुझल अछि, मुदा वेदमे आन चीज जे होइ मुदा गजल नञि छै आ ओ काव्यशास्त्र फारसक फेर अरबक अछि से जगतख्यात अछि, आ एहिमे हमरा वा ककरो कोनो संदेह नञि होएबाक चाही।
२. फारसीक काव्यशास्त्रक हिन्दुत्वीकरणक संबंधमे हमरा नञि बुझल अछि आ मौलिक गजल रचनामे कोना हिन्दुत्व आनल जाए सेहो हमरा नञि बुझल अछि। काव्यकेँ "हिन्दु" आ "विधर्मी" शब्दावलीसँ दूर राखल जाए सएह नीक, हँ "मैथिली गजल" शब्दक प्रयोगमे हमरा कोनो आपत्ति नञि, आ तकरा हिन्दुत्वीकरण मानल जाए तँ हमर कोनो दोख नहि।
३.ओहि "विधर्मी"(अहाँक शब्दमे) लग सेहो काव्यशास्त्र रहै- ई विश्वास करबामे ककरो करेजपर पाथर नञि राखए पड़तै कारण जतेक सौँसे विश्वमे मिला कऽ कवि/ काव्यशास्त्री भेल होएताह ओहिसँ बेशी कवि/ काव्यशास्त्री अरबी-फारसीमे भेल छथि।
४.प्रायः मैथिली भाषामे गजल जे हम लिखी तँ छन्दशास्त्रक अनुसार लिखी, आ से छन्दशास्त्र हम अरबी-फारसीक प्रयुक्त करी, प्रायः अहाँक मंतव्य से अछि। मुदा ओ ट्राइ कऽ कए हम नञि आनो भाषाबला सभ (जेना अंग्रेजी गजलक शास्त्रकार लोकनि)थाकि गेल छथि, ओहिमे ने लय बनि पबै छै आ ने सरलता आबि पबै छै। ऋगवैदिक छन्दशास्त्र टगण-मगण सँ बेशी वैज्ञानिक आ सरल छै आ मैथिली गजल लिखबा-पढ़बा-गुनगुनएबामे लोककेँ सुविधा होएतैक से हमर विश्वास अछि- वेदक समएमे हिन्दू शब्दक जन्मो नहि भेल रहै से वैदिक छन्दशास्त्रक प्रयोग मात्र मैथिली गजलकेँ हिन्दू बना देतै से हमरा नञि लगैए।
५.तहिना जखन हम "मैथिली हाइकूशास्त्र" लिखने रही तहिया सेहो हमरा लग "वार्णिक" आ "मात्रिक"मे एकटा चयन करबाक छल, आ तहियो हम "वार्णिक"क अक्षर गणना पद्धतिक चयन कएलहुँ। "शिन्टो" धर्मावलम्बी जापानी (किछु बौद्ध सेहो) सभक लिपि आ तकर छन्दशास्त्र जे प्रयोग करी तँ मैथिलीमे हाइकू कहियो नञि लिखल जा सकत; कारण ओकर काव्यशास्त्र जापानी भाषा आ ओकर कएक तरहक लिपिक सापेक्ष छै आ ओहिमे धर्म अबितो छलै (टनका/ वाका- ईश्वरक आह्वाण)। अरबी-फारसी गजल मुदा धर्म निरपेक्ष छै, मुदा ओकर काव्यशास्त्र ओकर अपन भाषा-लिपि लेल छै। से भाषा-निरपेक्ष ने जापानी काव्यशास्त्र भऽ सकै छै आ ने अरबी-फारसी काव्यशास्त्र।
सादर
गजेन्द्र
३
गौतम राजरिशी
पिछला तीन-चार दिन स पढि रहल छि इ आलेख....हिंदी आ उर्दू के ग़ज़ल-शास्त्र स त भलि भांति परिचित रहि, मैथिली के लेल जानकारी बड निक लागल। बहुत मेहनत आ लगन स लिखल आलेख- सेव कs लेलौं घोटै खातिर। मुदा आलेख के आखिर पंक्ति "मैथिली गजलकेँ सेहो ई छूट भेटबाक चाही" स सहमत नै छि। कविता के अ-कविता होय लs दियो, मुदा ग़ज़ल के सर्वदा ग़ज़ल ही रहैक चाहि...अ-ग़ज़ल नै। हमर उस्ताद कहित छथिन कि रचना करि काल सुविधा नै खोजबाक चाहि।
अपनेक फोन नंबर चाहि गजेन्द्र जी...मैथिली शब्द के उच्चारन हेतु किछु शंका निदान करबाक अछि। ग़ज़ल त सब टा खेल अछि उच्चारणक...
उत्तर:राजर्षिजी
मैथिलीमे उच्चारण निर्देश, मैथिली गजल-शास्त्र- भाग-२ मे देल गेल अछि।
हमर मो.नं. ९९११३८२०७८ अछि।
सादर
४
आशीष अनचिन्हार
काफिया केखनो शब्दक नहि , वर्ण आ मात्राक होइत छैक। जेना हमरापर आ ओकरापर दूनू शब्द मे र काफिया छैक। तेनाहिते आरे आ माँड़े(हमर गजलक) मे ए मात्रा कफिया छैक।
एकै भाव बला गजल दूषित मानल जाइत अछि।
उत्तर:मैथिली आ संस्कृतमे मात्र तुकान्त (अन्तक तुक) लयक निर्माण नहि करै छै, मुदा करितो छै।
से ई गप जे-
जे तुक मिलानीक दृष्टिएँ ओहूमे शब्दक आरम्भ-मध्य-आखिरीक किछु अक्षर नहि बदलै छै।
सायास लिखल गेल अछि।
vistrit vivechan, agila bhagak pratiksha rahat
जवाब देंहटाएंneek vivechan maithili gazal shastra par
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