प्रो. श्री राधाकृष्ण चौधरी- नील कमल ओ नील गगन


नीरवताक विशालतामे सूतल गहन रत्रि ! घनघोर अन्हरियाक निन्न जेना कौखन
बिजुरीक छटा भंग कऽ दैत छैक। गहन अन्हरियाक सौन्दर्यक कल्पनामात्र आनन्ददायक।
काजर-कलापक कमनीयताक कृपा जे अन्हरिया रातुक नीरवताकें एहन चिक्कण बनौलक
अछि। जँ अन्हरियाक वैशिष्टय नहि होइत तँ सर्प एवं साधु एकर माहात्म्यक प्रशस्ति गबितथि
किएक? मिझाएल बिजुलीक इजोत सँ जहिना एक बेर लोक भको-भंग भऽ जाइत अछि तहिना
अचानक अन्हरियाक अवसान सँ कतेको काज मे भाङठ पड़ि जाइत अछि। कमलक कोमलताक
कमनीयता अन्हरियाक कोरा मे क्रीड़ा करैत सूर्यक प्रकाशक प्रतीक्षा मे रहैत अछि।



घनीभूत विचारक स्थापनाक लेल अन्हरियाक नीरवताक आवश्यकता। गहन रात्रिक
नीरवताक मध्य बेसि कऽ प्राचीन ऋषिलोकनि शान्तिक कल्पना कयने छलाह। ओहि शान्तिक
कल्पना कोनो आध्यात्मिक रूप मे नहि, प्रत्युत् पार्थिव रूप मे ओ लोकनि कयने छलाह। 'अन्नम्
ब्राहृ'क उद्घोषणा यदि ताहि दिन मे नहि भेल रहैत तँ को अजुका तिनहत्था जवान थोड़े
भगवानक अस्तित्व पर सन्देह करैत? औंघी कें शान्त करबाक लेल गम्भीर निद्राक
आवश्यकता। शान्तावस्थाक लेल नीरव वातावरण अपेक्षित। बेला-माहात्म्यक पुजारी

कुसुमसायक बेलाक नीरव स्थितिक अध्ययनक हेतु रातिक राति जागि तपस्या कयने छलाह,
मुदा तैयो ओकर विशालताक पूर्ण ज्ञान हुनका नहि भेल छलनि।



राधाक लेल व्यग्र कृष्ण ! बतहबा कृष्णक लेल भेल छथि बताहि राधा। दुहू गोटे अपन
जीवनक शान्तिक खोज मे व्यग्र। नीलगगनक दिस दुहु गोटे टकटकी लगौने छथि, मुदा
नीलगगन अपन अहंकारमे एतेक मदान्ध भेल अछि जे ओ हिनका लोकनि दिस मटकीयो
मारिकऽ नहि देखैत अछि। नीलकमल, अपन सौन्दर्य पर मुग्ध आ'र 'राधा-कृष्ण' अपन 'कारी-
गोर' रंगक सम्मिश्रण पर, आ'र ई दुहू गोटे नीलगगन कें हीन बुझि ओकर उपेक्षा कऽ रहल


छथि। तथापि अपन-अपन विरहाग्नि कें शान्त करबाक हेतु ओ लोकनि नीलगगनसँ जलक
अपेक्षा रखैत छथि। नीलगगन हिनका लोकनिक रूप गर्वक उपेक्षा करैत हिनकालोकनिक
विरहाग्नि कें बढ़ेबा मे योगदान कऽ रहल छथिन। एक दोसराक उपहास और उपेक्षा ! स्निग्ध
प्रेमक अभाव आ'र उपेक्षित स्नेहक बिक्री !! यैह भेल संसारक दैनन्दिन नियम आ'र
वास्तविकता। मुदा मत्र्यलोकक तिनहत्था भगवानक उपेक्षा भने कऽ लियय मुदा एहि घृणित
वातावरण सँ अपनाकें मुक्त करबामे अद्यावधि असमर्थ रहल अछि। राधाकृष्णक नाम मात्र
प्रतिकात्मक ! व्यावहारिक जीवनक संकेत मात्र। मिथिलाक माँटि, जे कहियो पिण्ड बनौने छल,
ताहि आधार पर अवतरित भेल छलाह मर्यादा पुरुषोत्तम राम; तों अद्यावधि ई वि•ाास बनल
अछि जे पुनः-पृथ्वी पर एहि मिथिला अंचल मे मैथिलीक आविर्भाव होयत, जे संसार कें पुनः
पूर्ण शान्ति प्रदान करतीह आ'र अगत्ती तीनहत्था जवान कें आगा बढ़बाक बल देथिन। राधा-
कृष्ण, सीतारामक प्रतिमूर्त्ति मात्र युग प्रतिनिधि, आ'र किछु नहि। प्रकृति पुरुष कोनो अदृश्य
ई•ार नहि, प्रत्युत् युगक कम एवं क्रियाशील व्यक्ति ! आदर्श पर चलनिहार व्यक्तिये युग-पुरुष
वा प्रकृति-पुरुष। मानव संकल्प युग-पुरुषक महान गुण। संकल्प के दृढ़ कैनिहार वैह कुसुम,
जकर प्रस्फुटन आ'र विलयन प्रतिदिन मनुष्यक ह्मदय मे नवीन आशाक संचार करैत अछि।
कुसुमक कतेक रूप-धीर, स्थिर, शान्त, सुन्दर, आकर्षक, कमनीय, कोमल, सुगन्धित, सुभाषित,
सर्वगुणसम्पन्न, सौन्दर्यवध्र्धक आशा संचारक आ'र संगहि संग प्रेरक सेहो।



बहिर्जगतक सौन्दर्य--कुसुम ! अन्तर्जगतक आत्मा-कुसुम ! अमरआत्माक आधारशिला-
कुसुम ! कुसुमक कियारी मे कतोके वर्ग, मुदा कुसुमक प्रेमी सभ क्यो। जीवन आ'र संसारक
प्रेमी भेल कुसुमक प्रेमी। कुसुमावलीक नीलकमलक पाछाँ भगवानो बौआइत छथि। किएक ?
नीलकमल वीतराग। नीलकमल मे नीलगगनक दुर्गुण नहि। नीलकमलक कियारी चारूकात
मँह-मँह करैत अछि जेना नवविवाहित कनियाँक आँचर!



नीलकमल कें देखिते नीलगगनके डाह होइत छैक, किएक तँ नीलगगनक सौन्दर्य
नीलकमलक समक्ष निष्प्राण बुझना जाइत अछि।



ताराक सजल बरियाती चलल अछि नील कमलक बियाह करयबाक लेल। तिमिराच्छन्न
मेघ ताराक बरियातीक लेल मार्ग प्रशस्त कऽ रहल अछि। 'आषाढ़स्य प्थम दिवसे'क अभ्युत्थान
मे एखन अनेक बिलम्ब छैक। नीलगगनक आँखि नोर सँ डबडबायल अछि ! मेघो अपना पेट मे
ताराक अमार लगौने अछि। तारा बिनु शोभे कोन? नीलकमलक बियाहक श्रृंगारक हेतु समस्त
कुसुम समाज उठि कऽ आयल अछि। बरियाती मे ताराक झुण्ड; साक्षीक रूप मे नीलगगन
आ'र मंत्रक रूपमे ऋग्वेदक ऋचा उपस्थित छल। नीलकमलक हाथ-माथ लाल होमऽ बला
छैक। सभ किछु जेना पूर्व निर्धारित हो ! ज्येष्ठक महिम मास ! ग्रीष्म-वर्षाक संधिस्थल मे
नीलकमलक हाथ नोतल जायत, यैह प्रकृति कें मंजूर। मेघक भाँभट देखि कऽ कालिदास सेहो
कानऽ लगलाह जे सभटा मेघ बरसिये जायत तँ हमर दूत भऽ कऽ कोन मेघ जायत? मुदा एहि
मे ककरो दोष नहि। नीलकमल वैह मैथिलीक स्वरूप, जकरा पर कहियो आधारित भेल छल


रामक मर्यादा, कृष्णक प्रतिष्ठा

आ'र पुरुषक विराट् रूप। अधुना आवश्यकता छल केवल शा•ात आस्था कें नीलकमल कोमल
कर सँ कर्नठ बनायब--प्रकृतिक अदृश्य एवं अज्ञात प्रदेश पर जे तिनहत्था जवानक आक्रमण
शुरु भेल छल ताहि अभियान मे ओकरा आ'र कर्मठ बनायब। किएक तँ कर्मठ हाथे सँ
नीलकमलक जड़ि सँ मोथाक जंगल साफ कऽ कऽ ओकरा चतरबाक अवसर देल जयतैक।
प्रकृति पर विजय सँ नीलकमल, नीलगगन धरि पहुँचि ओकरा ओतऽ शान्ति संदेशक शंखनाद
कऽ सकत। नीलकमलक विजय नीलगगन मे मनुष्यक प्रगतिक संकेत मात्र।

1 टिप्पणियाँ

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  1. aap jesa senior journalist mere vichar par apni rai de mere liye yahi badi baat hai. main bhi journalist hoon. main UP AYODHYA ka rehne wala hoon. aasirwad banye rahiye
    namaskar

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