देखहक हौ गाँधी बाबा तोरो स्वराजमे
लाखो करै’ छह काँहि-काँहि हौ!
पेटमे न अन्न छै’ न देह पर कपड़ा,
घरमे न खर्ची ने चार पर खपरा,
जेठक चण्डाल दुपहरिया नचै’ छै
कागा डकै’ छै टाँहि-टाँहि हौ!
ढन-ढन पड़ल छै घरमे कोठी,
लोक बनल अछि फाँड़ल पोठी,
भात खएनिहारकें ने अल्हुआ जुड़ै छै
सब क्यो करै अछि फाँहि-फाँहि हौ!
दिनकर तपौने जाइ छथि धरती,
धरती से बाँझ पड़ल बनि परती,
करती बहुआसिन की चुलहा जरा क’
नेना करै’ छनि खाँहि-खाँहि हौ!
चेला ओ चाटी से बनल अपावन,
अएलै’ महा-पपिआहा सत्तावन
लाबन पर डिबिया से छुच्छे पड़ल छै
टेमी जरै’ छै’ छाँहि-छाँहि हौ!
जीर सन उपजलै’ गहुमक दाना,
आबि गेलै अगिलगुआ जमाना
छोटका-मझोलकाक बात की कहिअ’
बड़को खसै’ छै धाँहि-धाँहि हौ!
NIK PRASTUTI
जवाब देंहटाएंचन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’-देखहक हौ गाँधी बाबा
देखहक हौ गाँधी बाबा तोरो स्वराजमे
लाखो करै’ छह काँहि-काँहि हौ!
पेटमे न अन्न छै’ न देह पर कपड़ा,
घरमे न खर्ची ने चार पर खपरा,
जेठक चण्डाल दुपहरिया नचै’ छै
कागा डकै’ छै टाँहि-टाँहि हौ!
ढन-ढन पड़ल छै घरमे कोठी,
लोक बनल अछि फाँड़ल पोठी,
भात खएनिहारकें ने अल्हुआ जुड़ै छै
सब क्यो करै अछि फाँहि-फाँहि हौ!
दिनकर तपौने जाइ छथि धरती,
धरती से बाँझ पड़ल बनि परती,
करती बहुआसिन की चुलहा जरा क’
नेना करै’ छनि खाँहि-खाँहि हौ!
चेला ओ चाटी से बनल अपावन,
अएलै’ महा-पपिआहा सत्तावन
लाबन पर डिबिया से छुच्छे पड़ल छै
टेमी जरै’ छै’ छाँहि-छाँहि हौ!
जीर सन उपजलै’ गहुमक दाना,
आबि गेलै अगिलगुआ जमाना
छोटका-मझोलकाक बात की कहिअ’
बड़को खसै’ छै धाँहि-धाँहि हौ!
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