पंखहीन कल्पना
सुखा गेल अछि मोसि कलम केँ
कोना आइ कविता हम लीखू।
रुग्ण भेल अछि मोन भावना
राति अन्हार चान की देखू।
दीन हीन व्याकुल अनाथ भ’
भटकि गेल अछि भाव मोन केँ।
पंखहीन विक्षिप्त कल्पना
बदलि गेल अछि अर्थ शब्द केँ।
कानि रहल अछि वर्णक मात्रा
छंद आब उन्मुक्त भेल अछि।
सुन्दर देह आगि सँ सगरो
अलंकार केर झरकि गेल अछि।
अछि आयल दुर्दिन साहित्यक
आँखि खोलि क’ की हम देखू।
सुखा ...............................लीखू।
अहित सुखी भ’ जीवि रहल अछि
हित दुर्लभ अछि वस्तु जगत केँ।
स्वार्थ धर्म ज्ञानक परिभाषा
भोग विलास अर्थ जीवन केँ।
झूठ पहिरने वस्त्रा रेशमी
सत्य ठाढ़ निर्वस्त्रा कात मे।
अछि निर्मल नहि जल गंगा केर
अध्र्य देब हम कोना प्रात मे।
दिशाहीन जा रहल दूर छी
केना ठहरि क’ किछु क्षण बैसू।
सुखा ...............................लीखू।
बिलटि गेल अछि अपन घ’र मे
संस्कार, शिक्षा, अनुशासन।
खंड - खंड मे बाँटि रहल अछि
जाति धर्म केँ अंध कुशासन।
ज्ञानी छथि बैसल अन्हार मे
भ्रष्ट लोक केर नित अभिनंदन।
सत्य आचरण लज्जित जग मे
अत्याचारक रूप विलक्षण।
चिंता छोरि करू हम चिंतन
अछि मृगतृष्णा की की देखू।
सुखा ...............................लीखू।
पहुँचि गेल अछि यान चान पर
अछि पसरल ओहिना निर्धनता।
वक्षस्थल केर वसन बेचि क’
दूध पियाबथि शिशु कँे माता।
लोक बनल अछि वस्तु बजारक
बिका रहल जीवन नेनमन मे।
भेल कतेक उन्नति एहि देशक
चमकि रहल अछि विज्ञापन मे।
बिलखि रहल अछि भूखल बच्चा
केना द्वारि पर जा क’ बैसू।
सुखा ...............................लीखू।
सुखा गेल अछि मोसि कलम केँ
कोना आइ कविता हम लीखू।
रुग्ण भेल अछि मोन भावना
राति अन्हार चान की देखू।
दीन हीन व्याकुल अनाथ भ’
भटकि गेल अछि भाव मोन केँ।
पंखहीन विक्षिप्त कल्पना
बदलि गेल अछि अर्थ शब्द केँ।
कानि रहल अछि वर्णक मात्रा
छंद आब उन्मुक्त भेल अछि।
सुन्दर देह आगि सँ सगरो
अलंकार केर झरकि गेल अछि।
अछि आयल दुर्दिन साहित्यक
आँखि खोलि क’ की हम देखू।
सुखा ...............................लीखू।
अहित सुखी भ’ जीवि रहल अछि
हित दुर्लभ अछि वस्तु जगत केँ।
स्वार्थ धर्म ज्ञानक परिभाषा
भोग विलास अर्थ जीवन केँ।
झूठ पहिरने वस्त्रा रेशमी
सत्य ठाढ़ निर्वस्त्रा कात मे।
अछि निर्मल नहि जल गंगा केर
अध्र्य देब हम कोना प्रात मे।
दिशाहीन जा रहल दूर छी
केना ठहरि क’ किछु क्षण बैसू।
सुखा ...............................लीखू।
बिलटि गेल अछि अपन घ’र मे
संस्कार, शिक्षा, अनुशासन।
खंड - खंड मे बाँटि रहल अछि
जाति धर्म केँ अंध कुशासन।
ज्ञानी छथि बैसल अन्हार मे
भ्रष्ट लोक केर नित अभिनंदन।
सत्य आचरण लज्जित जग मे
अत्याचारक रूप विलक्षण।
चिंता छोरि करू हम चिंतन
अछि मृगतृष्णा की की देखू।
सुखा ...............................लीखू।
पहुँचि गेल अछि यान चान पर
अछि पसरल ओहिना निर्धनता।
वक्षस्थल केर वसन बेचि क’
दूध पियाबथि शिशु कँे माता।
लोक बनल अछि वस्तु बजारक
बिका रहल जीवन नेनमन मे।
भेल कतेक उन्नति एहि देशक
चमकि रहल अछि विज्ञापन मे।
बिलखि रहल अछि भूखल बच्चा
केना द्वारि पर जा क’ बैसू।
सुखा ...............................लीखू।
prarambh
जवाब देंहटाएंसुखा गेल अछि मोसि कलम केँ
कोना आइ कविता हम लीखू।
रुग्ण भेल अछि मोन भावना
राति अन्हार चान की देखू।
aa anta
लोक बनल अछि वस्तु बजारक
बिका रहल जीवन नेनमन मे।
भेल कतेक उन्नति एहि देशक
चमकि रहल अछि विज्ञापन मे।
बिलखि रहल अछि भूखल बच्चा
केना द्वारि पर जा क’ बैसू।
सुखा ...............................लीखू।
bad nik lagal
बहुत नी, बहुत शसक्त, बहुत भावपूर्ण रचना....अहिना सुन्दर सुन्दर लिखैत रहु. आभार.
जवाब देंहटाएंNAMSKAAR ,
जवाब देंहटाएंSATISH CHANDRA JI,
''PANKH HIN KALPANA [AINAA]''KAVITA, KE MADHYAM SA,N AAJUK SAMAAJIK ASLI '' CHEHRA '' DEKHABAIT AA OHI PAR PRAHAAR KARAIT HAMRA SABH KE DHYAAN KHICHLAU TAHIK LEL APNEK HARDIK DIL SA,DHANYAWAD DAIT CHHI, SANGAHHI ASHA KARAIT CHHI JE AHAN AHINA SACHHAI SA,JURAL , MARMASPRASI KAVITA LIKHAIT RAHOO.
PRABANDHA KUMAR SINGH
KATMA,MANIGACHI,
DARBHANGA
NIK KAVITA LAGAL
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