बुधनी- सतीश चंद्र झा


घुरलै जीवन दीन - हीन कें
बनलै जहिया टोलक मुखिया।
नव- नव आशा मोन बान्हि क’
सगर राति छल नाचल दुखिया।

घास फूस कें चार आब नहि
बान्हब कर्जा नार आनि क’।
नहि नेन्ना सभ आब बितायत
बरखा मे भरि राति कानि क’।

माँगि लेब आवास इन्दिरा
काज गाम मे हमरो भेटत।
जाति - जाति कें बात कोना क’
ई ‘दीना’ मुखिया नहि मानत।

भेलै पूर्ण अभिलाषा मोनक
भेट गेलै आवास दान मे।
दुख मे अपने संग दैत छै
सोचि रहल छल ओ मकान मे।

की पौलक की अपन गमौलक
की बुझतै दुखिया भरि जीवन।
मुदा बिसरतै बुधनी कहिया
बीतल मोन पड़ै छै सदिखन।

पड़ल लोभ मे गेल सहटि क’
साँझ भोर मुखिया दलान मे।
होइत रहल भरि मास बलत्कृत
विवश देह निर्वस्त्रा दान मे।

जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
छै बंधन जीवन मे झूठक।
जकरा अवसर भेटल जहिया
पीबि लेत ओ शोणित सबहक।

सबल कोना निर्बल कें कहियो
देत आबि क’ मान द्वारि पर।
कोना बदलतै भाग्य गरीबक
दौड़त खेतक अपन आरि पर।

भाग्यहीन निर्धन जन जीवन
बात उठाओत की अधिकारक।
नोचि रहल छै बैसल सभटा
छै दलाल पोसल सरकारक।

6 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. नीक कविता...घसल अठन्नी के याद दिला रहल अछि। तमाम विकासक बादो बुधनी के हालत एखन तक ओहिना छैक।

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  2. माँगि लेब आवास इन्दिरा
    काज गाम मे हमरो भेटत।
    जाति - जाति कें बात कोना क’
    ई ‘दीना’ मुखिया नहि मानत।

    bad satish ji

    जवाब देंहटाएं
  3. जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
    छै बंधन जीवन मे झूठक।
    जकरा अवसर भेटल जहिया
    पीबि लेत ओ शोणित सबहक।

    ahank padya bad nik hoit achhi satish ji

    जवाब देंहटाएं
  4. घुरलै जीवन दीन - हीन कें
    बनलै जहिया टोलक मुखिया।
    नव- नव आशा मोन बान्हि क’
    सगर राति छल नाचल दुखिया।

    घास फूस कें चार आब नहि
    बान्हब कर्जा नार आनि क’।
    नहि नेन्ना सभ आब बितायत
    बरखा मे भरि राति कानि क’।

    माँगि लेब आवास इन्दिरा
    काज गाम मे हमरो भेटत।
    जाति - जाति कें बात कोना क’
    ई ‘दीना’ मुखिया नहि मानत।

    भेलै पूर्ण अभिलाषा मोनक
    भेट गेलै आवास दान मे।
    दुख मे अपने संग दैत छै
    सोचि रहल छल ओ मकान मे।

    की पौलक की अपन गमौलक
    की बुझतै दुखिया भरि जीवन।
    मुदा बिसरतै बुधनी कहिया
    बीतल मोन पड़ै छै सदिखन।

    पड़ल लोभ मे गेल सहटि क’
    साँझ भोर मुखिया दलान मे।
    होइत रहल भरि मास बलत्कृत
    विवश देह निर्वस्त्रा दान मे।

    जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
    छै बंधन जीवन मे झूठक।
    जकरा अवसर भेटल जहिया
    पीबि लेत ओ शोणित सबहक।

    सबल कोना निर्बल कें कहियो
    देत आबि क’ मान द्वारि पर।
    कोना बदलतै भाग्य गरीबक
    दौड़त खेतक अपन आरि पर।

    भाग्यहीन निर्धन जन जीवन
    बात उठाओत की अधिकारक।
    नोचि रहल छै बैसल सभटा
    छै दलाल पोसल सरकारक।
    theeke kahalani sushant ji
    muda nav pariprekshyame ahank katha bad nik lagal

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  5. satish jee ke kavita bahut nik lagal.
    sachchida nand jha
    pokhrauni
    madhubani

    जवाब देंहटाएं
  6. जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
    छै बंधन जीवन मे झूठक।
    जकरा अवसर भेटल जहिया
    पीबि लेत ओ शोणित सबहक।

    A nice kavita...True but bitter emotion...

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