मुँहमे एखनहुँ पड़ल छै अधचिबाओल
हरित, कोमल आस्था केर शस्य,
कानमे एखनहुँ गुँजै छै तानसेनक गीत
किन्तु
दुष्यन्तक देखि भीषण रथ
धनुष आ तीर
भयाकुल अछि हरिन-दल
संत्रास्त
द’ रहल चकभाउर ठामहि ठाम।
एसगर
डुबैत जा रहल अछि हमर ‘आवाज’
एहि माथाहीन भीड़क असम्बद्ध कोलाहलमे
हमर ‘आवाज’ डूबल चल जा रहल अछि
असहाय
विवश
ओकर लहराइत हाथ एखनहुँ देखबामे आबि रहल अछि
सब ताकि रहल अछि
मूक, असमंजसमे।
कहियो जागत पौरुष(?)
ता कतेको डूबि गेल रहत।
neek prastuti
जवाब देंहटाएंnik lagal kavita
जवाब देंहटाएंmayanand jik kavitak lel dhanyavad
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।