
स्वार्थ और प्रेमार्थ एक माय - बाबु के दू शन्तान एगो स्वार्थ रूप में जे केवल अपने ही टा सब किछ बुझैत आ जानैत अछि - दोसर प्रेमार्थ रूप में जे प्रेम के अलाबा किछ और नै जानैत अछि , नही धन सम्पत्ति से मतलब राखैत अछि , ई शब्दक भावर्थ हर मनुष्य में पायल जायत अछि , जकर हम उदाहरन मैथिल आर मिथिला के जरिय पाठक गन के सामने लके हाजिर छि ---
स्वार्थ - हमरा में अनेक प्रकार से अनेक रूप समायल अछि ,
प्रेमार्थ - हमरा में शिर्फ़ एगो सत्य प्रेम रूप समायल अछि ,
स्वार्थ - हमरा लोग कलंक नाम से जानैत अछि,
प्रेमार्थ - हमरा लोग सत्य धर्म से जानैत अछि ,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप में एक दोसर से आगू -अगु कदम बढ़बैत अछि ,
प्रेमार्थ - हम प्रेम रूप से मिलके कदम बढ़बैत छि ,
स्वार्थ - हमरा घमंड ता में महंता प्राप्त अछि ,
प्रेमार्थ - ई घमंड रावण में देखलो जाह कारण ओकर सर्ब नास भागेल ,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप के कारण हिसा में सुई नोक के बराबर से मतलब राखैत छि ,
प्रेमार्थ - से महाभारत में दुर्योधन के देखलो जाही कारण कौरव बांस के अंत भगेल ,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप के कारण हम अलग रहब ख़ुशी से जियब हमर ई धरना अछि,
प्रेमार्थ - हम दुःख दर्द सहब मिलके रब हमर ई कामना अछि,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप में हिंसा आ धर्म के कुन् मोल नहीं ,
प्रेमार्थ - प्रेम में आस्था के कारण हर जीव् - जंतु से एक अलगे मोल रहित अछि,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप में के वल दिखाबती मात्र रहैत अछि ,
प्रेमार्थ - प्रेम में केवल एगो असली रूप जकरा बस्तिविकता कहैत अछि ,
स्वार्थ - एक दोसर से ठकनाय या गलत बतेनाय ,स्वार्थ के प्रथम रूप छि ,
प्रेमार्थ - एक दोसर से मिलेनाय आ आत्मा के शांति देनाय प्रेम के प्रथम रूप छि ,
स्वार्थ - स्वार्थी सदिखन अपन शारीरक सुख से \ में लिप्त रहैत अछि ,
प्रेमार्थ - प्रेमार्थी सदिखन जगत कल्याण सुख के लेल ब्याप्त रहैत अछि ,
स्वार्थ - स्वार्थ के अन्तो गत्व पराजय निहित अछि ,
प्रेमार्थ- प्रेम के सदा विजय लिखित अछि ,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप के कारण प्रेम तत्व से घिर्ना राखैत अछि ,
प्रेमार्थ - प्रेम रूप में घिर्ना या नफरत सब एक में समेटल रहैत अछि ,
स्वार्थ - अधिक बोली अधिक वचन , अधिक अभिमान , अधिक बैमान, अधिक शैतान, स्वार्थ के चरमशीमा अछी,
प्रेमार्थ - प्रेम में कुनू शीमा लिखित नाहिअछि,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप के कारण ज्ञान से परिपूर्ण रहितो शही उपयोग नै त् ज्ञान स्वार्थी भेल ,
प्रेमार्थ - ज्ञान प्रेम के अहम भूमिका निभाबैत अछि , जकरा लोग निस्वार्थी भाब कहैत अछि ,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप एगो विशुद्ध आत्मा अछि, जकरा अंत केनाय हर जीव् -जन्तु के हर रूप में सम्भब अछि , प्रेमार्थ - प्रेम एगो शुद्ध आत्मां में बिराज मन रहैत अछि ,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप में धन के लालच रखनाय ब्यर्थक निहित अछि ,
स्वार्थ - स्वार्थ रूप में धन के लालच रखनाय ब्यर्थक निहित अछि ,
प्रेमार्थ - खली हाथ एनाय खली हाथ जेनाय प्रेम भाब में लिखित अछि स्वार्थ - स्वार्थ भाब से \ में सेवा केनाय पाप के भागी होयत अछि ,
प्रेमार्थ - प्रेम भाब से \ में सेवा केनाय पुन्य के भागी होयत छैथ ,
स्वार्थ - स्वार्थ , कच्ची मैट के बर्तन जेका होयत अछि , जे बारिस के बाद पैन में बिलीन भ जैत अछि ,
प्रेमार्थ - प्रेम पाथर जेका कठोर आ मजबूत होयत अछि , स्वार्थ -स्वार्थ रूप - के फल करू होयत अछि ,
प्रेमार्थ - प्रेम रूप - के फल मीठ होयत छैक,
जय मैथिल जय मिथिला
मदन कुमार ठाकुर
पट्टीटोल , भैरब स्थान , झंझारपुर ,मधुबनी , बिहार ,भारत -८४७४०४
mo- 9312460150E -mail - madanjagdamba@yahoo.com
bahut sundar nit Apnek ee rachna me milala aa
जवाब देंहटाएंbahut ras seho shikh bhetal ,ahanke rachna hamr kul mila ke sabta bahut nika lgal Aa aasha achhi aur bahut ras rachna lake hamra lokain ke dev
nik pravachan
जवाब देंहटाएंnik
जवाब देंहटाएंbahut nik lagal ee rachana
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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