कविता-जननी-आशीष अनचिन्हार

जननी

एखन
लोकक आपकता बेसी घनहन भएगेलैक अछि
ओहू सँ बेसी
बेगरता
आब अहाँ जे बुझिऔ
जे कहिऔ
अहाँ कहि सकैत छिऐक
बेगरता अविष्कारक जननी थिक
मुदा हम नहि
हमर कहब अछि
अविष्कारक नहि
बेगरता
आपकताक जननी थिक.

4 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. जननी
    एखन
    लोकक आपकता बेसी घनहन भएगेलैक अछि
    ओहू सँ बेसी
    बेगरता
    आब अहाँ जे बुझिऔ
    जे कहिऔ
    अहाँ कहि सकैत छिऐक
    बेगरता अविष्कारक जननी थिक
    मुदा हम नहि
    हमर कहब अछि
    अविष्कारक नहि
    बेगरता
    आपकताक जननी थिक.

    bah aashish ji

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