सियाराम झा ‘सरस’- छौंड़ा गहुमन सन सनसना उठै छै
छौंड़ा गहुमन सन सनसना उठै छै
छौंड़ी माचिस सन फनफना उठै छै
शांति लै बुद्ध ध्यानस्थ तैखन कान नारा सब गनगना उठै छै
संतुलन शीत-तापक ने सम्हरै आंखि तेँ खूब बनबना उठै छै
ब्याह एक्कर, पिता करथिन सौदा से सुनैए कि हनहना उठै छै
देखि खद्धर मे माधो-वीरप्पन तार नस-नस के झनझना उठै छै
अनटोटल सँ टोटल एलर्जी तेँ तँ भनभना आ रनरना उठै छै
महाप्रकाश- चान, अंतिम पहर मे
ई के अछि बुढ़िया नील ओछाओन पर सूतलि
पसारने अपन केशराशि चतुर्दिक
डूबलि अतीतक निन्न मे
-अखन धरि निसभेर
अस्फुट शब्देँ बाजि रहलि अछि
-कोन कथा बेर-बेर?
ई के अछि बुढ़िया नील ओछाओन पर सूतलि
पसारने अपन केशराशि चतुर्दिक
डूबलि अतीतक निन्न मे
-अखन धरि निसभेर
अस्फुट शब्देँ बाजि रहलि अछि
-कोन कथा बेर-बेर?
रमेश- ओइ पार अइ पार
तोरा कन जेल, हमरा कन फाँसी।
तूहें कहियो-काल जेल स’ निकलबो करबही,
हम्में कोसी-बान्ह टुटलै त’ फाँसी-रे-फाँसी।
तोरा पूस मास के दिन मे तरेगन लखा जाइ छै
मोरा बारहो महीना मे तेरहम महिनमा
कतिका मास लखा दै छै भैय्या मोरे!
मोरा बान्ह टूटै के आदंक फा मे देलकै सरकार
तोरा हमरा नामें ईर्खा फा मे देलकै सरकार।
तोंहे रिलीफ के ओस चाटहो विला गेलौ
मेहनति के संस्कार, हमरा बैंक लोन नै देलको,
जिनगी भेलै पहाड़।
हौ बाबा कारू खिड़हरि,
हौ बाबा सोखा! हौ बाबा लछमी गोसाँय!
लए जाहो कोसी, लए जाहो बान्ह के
हमरा ने जिनगी पड़ै छै पोसाय।
तूहें कहियो-काल जेल स’ निकलबो करबही,
हम्में कोसी-बान्ह टुटलै त’ फाँसी-रे-फाँसी।
तोरा पूस मास के दिन मे तरेगन लखा जाइ छै
मोरा बारहो महीना मे तेरहम महिनमा
कतिका मास लखा दै छै भैय्या मोरे!
मोरा बान्ह टूटै के आदंक फा मे देलकै सरकार
तोरा हमरा नामें ईर्खा फा मे देलकै सरकार।
तोंहे रिलीफ के ओस चाटहो विला गेलौ
मेहनति के संस्कार, हमरा बैंक लोन नै देलको,
जिनगी भेलै पहाड़।
हौ बाबा कारू खिड़हरि,
हौ बाबा सोखा! हौ बाबा लछमी गोसाँय!
लए जाहो कोसी, लए जाहो बान्ह के
हमरा ने जिनगी पड़ै छै पोसाय।
देवशंकर नवीन – मोहमुक्ति
पैघक संरक्षण जं किनकहु
भेटि रहल हो भाइ।
गगनसं खसल शीत सम बूझी
जुनि कनिओं इतराइ।
वटवृक्षक छहरि सन शीतल,
रखने जे प्रभुताइ।
मेटा लैछ अस्तित्व अपन,
ओहि तरमे सभ बनराइ।
सागर सन कायामे कखनहु,
जं उफनए आक्रोश।
निधि तट पर बैसल दम्पति केर,
प्रणयने बुझए अताइ।
फांकथि तण्डुल कण पोटरीसं,
मुदित होथि दुहू मीत।
तेहेन बचल नहि कृष्ण एकहुटा,
विवश सुदामा भाइ।
गगनसं खसल शीत सम बूझी
जुनि कनिओं इतराइ।
वटवृक्षक छहरि सन शीतल,
रखने जे प्रभुताइ।
मेटा लैछ अस्तित्व अपन,
ओहि तरमे सभ बनराइ।
सागर सन कायामे कखनहु,
जं उफनए आक्रोश।
निधि तट पर बैसल दम्पति केर,
प्रणयने बुझए अताइ।
फांकथि तण्डुल कण पोटरीसं,
मुदित होथि दुहू मीत।
तेहेन बचल नहि कृष्ण एकहुटा,
विवश सुदामा भाइ।
संजय कुंदन
हम आ राति
ओहि चौराहा पर”खुजल अछि चाहक दोकान
पेट्रोमैक्सक इजोत”छिड़िआयल अछि
नाइट शिफ्ट सं घुरैत”नमहर टिफिन बॉक्स नेने
किछु मजदूर प्रतीक्षा कऽ रहल अछि चाहक
धीरे-धीरे हमरा दोस्ती भऽ रहल अछि
ओहि चौराहा सं”जेना एहि महानगर सं
पहिल बेर ठीक-ठीक”चीन्हि रहल छी राति के
गर्म बिछाओन आ इंद्रधनुषी सपना”नहि अछि राति
सिरमा मे राखल पानि”खिड़की सं तकैत चान
आ कोनो उपन्यासक संग”निन्नक प्रतीक्षा नहि अछि राति
राति माने निन्न सं मुठभेड़
राति माने अन्हारक नदी”आ विराट मौन
ठमकैत पृथ्वी अपन अक्ष पर
राति माने खून मे बौआइत स्याह मेघ जकां थकान
छांह जकां पाछू लागल भय
चौराहा पर ठाढ़ लोक निश्चिंत अछि
मुदा हड़बड़ायल सड़क पार कऽ रहल अछि बिलाड़ि
घड़घड़ाइत अछि प्रेसक मशीन
अखबारक नगर संस्करण छपनाई
शुरू भऽ गेल अछि”विशाल कागत पर
उतरि रहल अछि कारी-कारी शब्द
कदमताल करैत”मशीनक छाती मे धुक-धुक
कऽ रहल अछि बहुत रास खबरि
के जानय ओहि मे सं”किछु खबरि
उत्पात मचा दियअ शहर मे
एखन जखन कि
निश्चंत सूतल अछि शहर
एकटा अखबार तैयार भऽ रहल अछि
लोकक निन्न तोड़बाक लेल
भऽ सकैये एकटा खबरि
सभ किछु उलटि-पुलटि कऽ राखि दियअ
एकटा आदमीक जीवन मे
किछु भऽ सकैये
किछु कऽ सकैये एकटा खबरि
"सियाराम झा 'सरस' : महाप्रकाश : रमेश : देवशंकर नवीन" bharatak mithil bhagak kavi loknik kavita sabh padhi mon prasann bhay gel
जवाब देंहटाएंbad nik lagal ee prastuti
जवाब देंहटाएंमहाप्रकाश- चान, अंतिम पहर मे
ई के अछि बुढ़िया नील ओछाओन पर सूतलि
पसारने अपन केशराशि चतुर्दिक
डूबलि अतीतक निन्न मे
-अखन धरि निसभेर
अस्फुट शब्देँ बाजि रहलि अछि
-कोन कथा बेर-बेर?
ehi prastutik jatek prashansa kayal jay se kam
जवाब देंहटाएंरमेश- ओइ पार अइ पार
जवाब देंहटाएंतोरा कन जेल, हमरा कन फाँसी।
तूहें कहियो-काल जेल स’ निकलबो करबही,
हम्में कोसी-बान्ह टुटलै त’ फाँसी-रे-फाँसी।
तोरा पूस मास के दिन मे तरेगन लखा जाइ छै
मोरा बारहो महीना मे तेरहम महिनमा
कतिका मास लखा दै छै भैय्या मोरे!
बहुत नीक प्रस्तुति
सभ कविता नीक आ विविधता लेने।
जवाब देंहटाएंatyttam prastuti
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।