दयो करबाक बेर होइत छैक - कुलानन्द मिश्र
पोखरि बेश फुला गेल छैक दोसर बेर जाल फेकबा सँ पहिने
मोहना जाल केँ झाड़लक तऽ एकटा छोट-छिन पोठिया
छटपटाइत कूदि गेलै पोखरि मे
मोहनाक मोन मे खुशी भेलैक
ओकरा नीक लगलै जे ओ कूदि गेलै
पड़ा गेलै जाल सँ
ओकरा ठोर पर चाकर मुसकी पसरि गेलै
ओ फेर जाल केँ पोखरि मे पसारलक
आ एहिबेर पहिलुक खेपसँ
पैघ-पैघ आ पुष्ट-पुष्ट माछ
जाल सङ्गे खिचाकऽ बाहर आयल
मोहनाक आँखिक आगाँ
ओ पड़ाइत पोठिया फेर नाचि गेलैक
ओ फेर बिहुँसल
आ सोचलक
दयो करबाक बेर होइत छैक!
नीक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंsvargiya kulanand jik prastuti nik lagal
जवाब देंहटाएंओ फेर जाल केँ पोखरि मे पसारलक
जवाब देंहटाएंआ एहिबेर पहिलुक खेपसँ
पैघ-पैघ आ पुष्ट-पुष्ट माछ
जाल सङ्गे खिचाकऽ बाहर आयल
मोहनाक आँखिक आगाँ
ओ पड़ाइत पोठिया फेर नाचि गेलैक
ओ फेर बिहुँसल
आ सोचलक
दयो करबाक बेर होइत छै
thike
ओ फेर जाल केँ पोखरि मे पसारलक
जवाब देंहटाएंआ एहिबेर पहिलुक खेपसँ
पैघ-पैघ आ पुष्ट-पुष्ट माछ
जाल सङ्गे खिचाकऽ बाहर आयल
han pothi par matra daya
मोहना जाल केँ झाड़लक तऽ एकटा छोट-छिन पोठिया
छटपटाइत कूदि गेलै पोखरि मे
thike
bad nik lagal
जवाब देंहटाएंkulanand jik kavita padhebak lel dhanyavad
जवाब देंहटाएंnik prastuti
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