हमर दू टा कविता 1.नाव आ जीवन 2.मौनक शब्द -सतीश चन्द्र झा

1.नाव आ जीवन


नाव नदी मे चलल सोचि क’
दूर नदी के अंत जतय छै।
देखब आई ठहरि क’ किछु छण
नदी समुद्रक मिलन कतय छै।
छै संघर्ष क्षणिक चलतै जौ
जल धारा विपरीत दिशा मे।
चलब धैर्य सँ भेटत निश्चय
छै आनंद मधुर आशा मे।
कखनो अपने पवन थाकि क’
मंद भेल चुपचाप पलटतै।
फेक देब पतबार अपन ई
जल धारा के दिशा बदलतै।
छोट नाव के एतेक घृष्टता
सुनि क’ भेल नदी के विश्मय।
नाचि रहल अछि जल मे तृणवत
बुझा रहल छै जीवन अभिनय।
की बुझतै ई नाव नदी मे
जीवन पथ धारा अवरोधक।
केना चीर क’ निकलि जाइत अछि
नहि छै भय ओकरा हिलकोरक।
तेज धार छै प्राण नाव के
जीवन छै सागर अथाह जल।
नदी किनारक छाँह मृत्यु छै
जल विहीन जीवन के प्रतिपल।
नहि होइ छै किछु भय जीवन मे
मृत्यु देखि सोझा मे प्रतिक्षण।
अपने चलि क’ नाव मनुख के
सिखा रहल छै जीवन दर्शन।
क्रुद्ध नदी के जल प्रवाह मे
उतरि गेल जे ‘तकरे जीवन’।
भय संघर्ष,निराश,कष्ट सँ
ठहरि गेल ओ ‘जड़वत जीवन’।


2. मौनक शब्द


हेरा गेल अछि शब्द अपन किछु
तैं बैसल छी मौन ओढ़ि क’।
वाणी जड़वत, जिह्वा व्याकुल
के आनत ग’ ह्नदय कोरि क’।
के बूझत ई बात होइत छै
मौन शब्द,वाणी सँ घातक।
राति अमावश के बितला सँ
जेना इजोत विलक्षण प्रातक।
अछि सशक्त जीवन मे एखनो
ई अभिव्यक्तिक सुन्दर साध्न।
एकर चोट छै प्रखर-उचय अग्नि सन
शीतलता चंदन के चानन।
नहि छै आदि -उचयअंत मे समटल
अंतर मे विश्राम वास छै।
आनंदक अतिरेक ह्नदय मे
नव अनुभूतिक महाकाश छै।
अछि अव्यक्त मौन अक्षर सँ
ज्ञान दीप के प्रभा प्रकाशित
दृष्टिबोध् सँ दूर मौन अछि
शब्द अर्थ सँ अपरिभाषित।
वाणी अछि ठहराव झील के
मौन नदी के निश्छल धार।
उठा देत हिलकोर हृदय मे
जखने बान्हब धार किनार।
छै संगीत मधुर स्वर झंकृत
नै छै अर्थ मौन के जड़ता।
कोलाहल सँ दूर मौन के
वाणी सँ छै तिव्र मुखरता।
कतेक विवस अछि शब्द जगत के
वर्तमान के व्यथा देखि क’।
असमर्थ अछि सत् चित्राण मे
की लिखू हम शब्द जोड़ि क’।

10 टिप्पणियाँ

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  1. छै संघर्ष क्षणिक चलतै जौ
    जल धारा विपरीत दिशा मे।

    अपने चलि क’ नाव मनुख के
    सिखा रहल छै जीवन दर्शन।

    bad nik

    aa eeho
    आनंदक अतिरेक ह्नदय मे
    नव अनुभूतिक महाकाश छै।
    अछि अव्यक्त मौन अक्षर सँ
    ज्ञान दीप के प्रभा प्रकाशित
    दृष्टिबोध् सँ दूर मौन अछि
    शब्द अर्थ सँ अपरिभाषित।

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  2. 1.नाव आ जीवन


    नाव नदी मे चलल सोचि क’
    दूर नदी के अंत जतय छै।
    देखब आई ठहरि क’ किछु छण
    नदी समुद्रक मिलन कतय छै।
    छै संघर्ष क्षणिक चलतै जौ
    जल धारा विपरीत दिशा मे।
    चलब धैर्य सँ भेटत निश्चय
    छै आनंद मधुर आशा मे।
    कखनो अपने पवन थाकि क’
    मंद भेल चुपचाप पलटतै।
    फेक देब पतबार अपन ई
    जल धारा के दिशा बदलतै।
    छोट नाव के एतेक घृष्टता
    सुनि क’ भेल नदी के विश्मय।
    नाचि रहल अछि जल मे तृणवत
    बुझा रहल छै जीवन अभिनय।
    की बुझतै ई नाव नदी मे
    जीवन पथ धारा अवरोधक।
    केना चीर क’ निकलि जाइत अछि
    नहि छै भय ओकरा हिलकोरक।
    तेज धार छै प्राण नाव के
    जीवन छै सागर अथाह जल।
    नदी किनारक छाँह मृत्यु छै
    जल विहीन जीवन के प्रतिपल।
    नहि होइ छै किछु भय जीवन मे
    मृत्यु देखि सोझा मे प्रतिक्षण।
    अपने चलि क’ नाव मनुख के
    सिखा रहल छै जीवन दर्शन।
    क्रुद्ध नदी के जल प्रवाह मे
    उतरि गेल जे ‘तकरे जीवन’।
    भय संघर्ष,निराश,कष्ट सँ
    ठहरि गेल ओ ‘जड़वत जीवन’।


    2. मौनक शब्द

    हेरा गेल अछि शब्द अपन किछु
    तैं बैसल छी मौन ओढ़ि क’।
    वाणी जड़वत, जिह्वा व्याकुल
    के आनत ग’ ह्नदय कोरि क’।
    के बूझत ई बात होइत छै
    मौन शब्द,वाणी सँ घातक।
    राति अमावश के बितला सँ
    जेना इजोत विलक्षण प्रातक।
    अछि सशक्त जीवन मे एखनो
    ई अभिव्यक्तिक सुन्दर साध्न।
    एकर चोट छै प्रखर-ंउचय अग्नि सन
    शीतलता चंदन के चानन।
    नहि छै आदि -ंउचयअंत मे समटल
    अंतर मे विश्राम वास छै।
    आनंदक अतिरेक ह्नदय मे
    नव अनुभूतिक महाकाश छै।
    अछि अव्यक्त मौन अक्षर सँ
    ज्ञान दीप के प्रभा प्रकाशित
    दृष्टिबोध् सँ दूर मौन अछि
    शब्द अर्थ सँ अपरिभाषित।
    वाणी अछि ठहराव झील के
    मौन नदी के निश्छल धरा।
    उठा देत हिलकोर हृदय मे
    जखने बान्हब धर किनारा।
    छै संगीत मध्ुर स्वर झंकृत
    नै छै अर्थ मौन के जड़ता।
    कोलाहल सँ दूर मौन के
    वाणी सँ छै तिव्र मुखरता।
    कतेक विवस अछि शब्द जगत के
    वर्तमान के व्यथा देखि क’।
    असमर्थ अछि सत् चित्राण मे
    की लिखू हम शब्द जोड़ि क’।

    bah satish ji

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  3. हेरा गेल अछि शब्द अपन किछु
    तैं बैसल छी मौन ओढ़ि क’।
    वाणी जड़वत, जिह्वा व्याकुल
    के आनत ग’ ह्नदय कोरि क’।

    hridaya se niklal dunu kavita

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  4. नाव आ जीवन आ मौनक शब्द दुनू कविता बड्ड नीक लागल। नाचि रहल अछि जल मे तृणवत
    बुझा रहल छै जीवन अभिनय। एतय ठीके कहल गेल, समुद्र जे दूरसँ नीक लगैत छैक नाविककेँ पुछियौक जे ओकरामे पैसि कय कतेक संघर्षसँ माँछ मारि कए अनैत अछि।सिखा रहल छै जीवन दर्शन।

    वाणी जड़वत, जिह्वा व्याकुल। मौनक शब्द तँ आर अछि अद्भुत।

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  5. बहुत नीक कविता। TOO GOOD बहुत गही॑र सोच।

    और की लिखू हम

    असमर्थ अछि सत् चित्राण मे
    की लिखू हम शब्द जोड़ि क’।

    ई॑तजार रहत आॅ॑हाॅ॑ के अगला कविता के।

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  6. bahut sundar.......bahut nik
    harinarayan jha
    madhubani

    जवाब देंहटाएं
  7. वाणी अछि ठहराव झील के
    मौन नदी के निश्छल धार।
    उठा देत हिलकोर हृदय मे
    जखने बान्हब धार किनार।

    Bahut nik lagal, Dunu kavita hum kateko log ke suna chukalaun.
    Vibhuji

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