पापा घुरि चलु ने गाम (मैथिली कविता) : नवल किशोर झा

व्याकुल मन अछि दिल तरपई यै,
एकहुपल नै मन लगई यै,
सुतल-जागल हम सपनाई छी,
सपना में बस गाम आबई यै ।
आब देह में नाहिं अछि जान,
पापा घुरि चलु ने गाम।।

                      ओ हमर सुन्दर सन गाम,
                   चाकर-चौरस अपन दलान,
            एहि सुकचल कोठा सँ नीक तs,
                   अपन गाय'क अछि बथान।
                     फेर सँ बैसब अपन दलान,
                         पापा घुरि चलु ने गाम।।

मन परई ओ पोखरि महार,
काली बाबु'क नारक टाल,
जाहि पर लुधकई लs संगी संग,
होईत छलहुँ हम खुब बेहाल।
याद आबई ओ खेतक धान,
पापा घुरि चलु ने गाम।।

                    भोरहिं उठिते बारी जायब,
              गेंदा, अरहुल फूल तोरि लायब,
                बुधना संगहि पोखरि जा कs,
           उछलि-उछलि कs खूब नहायब।
                 सोचि कटई यै हमर ईs प्राण,
                        पापा घुरि चलु ने गाम।।

माय'क हाथक भोजन पायब,
फेर सँ बसि संगहिं सब खायब,
'देसी बयना सब जन मिट्ठा' ,
तकर गुण हमसब मिल गायब।
रहैक छी एतs गाँव में प्राण,
पापा घुरि चलु ने गाम।।

             खाग की अछि अपन मिथिला में,
                किया रहब एहि व्यस्त शहर में,
            जौं लक्ष्मी स्वयं एलीह मिथिला में,
          तs धन कोना भेटत एहि कचरा में।
                 दियउ कने एहि बात पर ध्यान,
                          पापा घुरि चलु ने गाम।।
              चलु जल्दी अपन मिथिलाधाम।।

-नवल किशोर झा
शिवनगर घाट,दरभंगा।