बनल मनु केर हम संतान।
सभकिछु हुनके लेश नहि अप्पन,
किया करब मिथ्याभिमान।।
विधना जे घसि देल कपार मे,
मिटा सकै नहि कियो बलवान।
हुनके आँगुरक कठपुतली हम ,
किया करब मिथ्याभिमान।।
जनिका कोईख'क आश पाबि केर ,
बनल जगत मे अप्पन पहचान।
तनिकर सदिखन ऋणी रहब हम ,
किया करब मिथ्याभिमान।।
पलभरि केर ईs जिनगी'क मेला,
भेटब नहि बितला पर एकठाम ।
मिसिया भरि धन-वैभव खातिर ,
किया करब मिथ्याभिमान ।।
ईs धन-वैभव संग नहि जाएत,
जाए परत एकसरि सुरधाम।
कियो भेटत नहि मददगार से,
किया करब मिथ्याभिमान।।
कखनहुँ अहंवश कोनो सज्जन केर ,
दुर्जन बनि नहि करी अपमान।
चरण तs राखब एहि धरा पर ,
किया करब मिथ्याभिमान।।
यौ,स्वर्ग-नरक सभटा एत्तहि अछि,
जेहन बनाएब ,बनत से धाम।
सभकिछु जानईत प्रियबंधुगण,
किया करब मिथ्याभिमान।।
- नवल किशोर झा
शिवनगर घाट, दरभंगा
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