किछु ओहिना : राजकुमार झा

मुम्बई। 15 मार्च। सहनशीलता आओर परोपकारिता चेतनकें विनम्र व शालीन बनबैत अछि। परन्तु किछु एहनो मनोवृति रखनिहार व्यक्ति बहुधा देखबामे अबैत छथि जिनक मानसिकता शालीनताकें धारण केनिहारक प्रति दुःखदायी होइत अछि।

आमक वृक्षकें उदाहरणक रूपमे देखल जा सकैत अछि। मीठगर, सुस्वादिष्ट आमसँ लदल डाढ़ि स्वतः विनम्र बनि झुकि जाईत अछि। जाहिसँ ओहि सुन्दर, सुस्वादिष्ट आमक रसपान सहजतापूर्वक सभ कियो कS सकैथ। ई आमक फलक विनम्रता थिक। परन्तु देखल जाईत अछि जे किछु व्यक्ति ढ़ेला आ झटहासँ आम तोड़बाक लेल व्यग्र रहैत छथि। आम तोड़बाक व्यग्रतामे वृक्षक ढ़ारि-पातकें क्षत्-विक्षत् कय वृक्षक आत्माकें निर्दयतापूर्वक चोटिल करैत छथि।

जाहि वृक्षसँ सुन्दर फल प्राप्त कय जिह्वा आओर स्वयंकें आत्मसंतुष्टि केर आनंद प्राप्त करैत छी, ताहि वृक्षक आत्माकें चोट पहुँचायब कहाँ धरि उचित अछि ? जय श्री हरि।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ