झड़ैत पत्ता नवोदित पत्ता केर आगमनक प्रतीक थिक

मुम्बई। 08 मार्च। [राजकुमार झा] गाछक झड़ैत पत्तासँ निराश नञि हेबाक चाही। नव पत्ता केर आगमनक हेतु झड़ैत पत्ता रिक्तता प्रदान करैत अछि। सनातन कालसँ प्रकृतिक नियम नियमित रूपसँ सृष्टिक भव्य स्वरूपके व्यवस्थित करैत इएह संदेश निर्गत करैत अछि जे नवागन्तुकके स्वागत करू जाहिसँ परिवार व समाजमे मर्यादित संस्कार संरक्षित एवं प्रतिष्ठित भS सकय आ सर्वत्र आनन्दक वातावरण बनल रहय।

बुजुर्गक मार्गनिर्देशनसँ स्वस्थ समाजक संतुलन सर्वथा संतुलित रहैत अछि। बुजुर्ग झड़ैत पत्ता नञि बल्कि नवोदित पीढ़ीक नव-निर्माणक नियंता होइत छथि। बुजुर्ग बोझ नञि अपितु अनुभवरूपी ज्ञानक सागर होइत छथि। एहि प्राकृतिक तथा कटु सत्यकें सहजता व विनम्रतासँ स्वीकार कयल जेबाक चाही तथा सुन्दर, सम्यक, समीचीन आ सार्वभौमिक समाजक निर्माणक प्रति कर्तव्य पथकें प्रशस्त करबाक प्रयास कयल जेबाक चाही। परिणामस्वरूप परिवार व समाज सदैव स्वस्थ, सबल आओर सुन्दर बनल रहत। 

विशेष रूपें युवा वर्गसँ निहोरा करब जे अहाँक ऊर्जा एवं चिंतन समाजक ऊर्जा व चिंतन बनय। अहाँक सेवा परिवार एवं समाजक सेवा बनय। अहाँक श्रेष्ठ संस्कार परिवार व समाजकें सभ प्रकारक सामर्थ्यसँ सम्पन्न बनबय। निश्चित रूपसँ उपर्युक्त चिंतनधाराकें धारण कयलाक उपरांत सुव्यवस्थित समाजक निर्माण होयत आ सब कियो आपसी प्रेमक डोरीमे बँधि सामाजिक अनुशासन तथा व्यवस्थामे रहि सकब।

अनेकों प्रकारक परिवर्तनक बहैत बसातसँ समाजक रूप-स्वरूप बदलि रहल अछि। बदलाव विकासोन्मुख हेबाक चाही। सत्यनिष्ठ विकास समाजक सम्पूर्ण अवयवकें स्वस्थ आ सुदृढ़ बनबैत अछि। शरीरक सम्पूर्ण अवयवक समान विकाससँ सुन्दर, सुडौल व भव्य शरीरक निर्माण होइत छैक। एहि लेल संतुलित आहार एवं शुद्ध वातावरण हयब आवश्यक।

अस्तु, हमरालोकनिक कर्तव्य बनैत अछि जे प्राणी मात्र केर सर्वांगीण तथा समुचित विकासक लेल, समानता केर आधार पर योगदान निर्गत करैत मानवीय कर्तव्यक निर्वहन करैत यशस्वी बनबाक कोशीश करी। इत्यलम्। जय श्री हरि।

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