माँ कात्यायनी के दरबार मे आबै बला सभ भक्त लोकनिक मनोकामना पूरा होयत छैन्ह। माँ दुर्गा के छठम स्वरूप केर रूप मे माँ कात्यायनी स्थान केर ख्याति दूर-दूर तक अछि। मान्यता अछि कि 51 शक्तिपीठ मे सँ एक एहि स्थान पर माँ कात्यायनी भगवती केर दहिना भूजा गिरल छैन्ह। लोग सभ दूध व दही ल' माता केर दरबार मे पहुँचैत छैथ।
स्कन्द पुराण मे माँ कात्यायनी मंदिर केर चर्चा कायल गेल अछि। पौराणिक कथा केर अनुसार कात्यायनी ऋषि कोसी नदी के तट पर रहैत छला। ओ हरेक दिन कोसी नदी मे स्नान करि माँ कात्यायनी केर आराधना करैत छला। हुनक आराधना से प्रसन्न भ' माँ भगवती हुनका दर्शन देलैन्ह। माँ कात्यायनी मंदिर मे देश के विभिन्न भागक अलावा विदेश सभसे सेहो श्रद्धालु आबैत अछि।
कहल जायत अछि कि कालांतर मे एहि इलाका मे राजा मंगल सिंह केर शासन छल। एहि काल मे बीड़ी गमैली निवासी श्रीपत महाराज अप्पन गाय ल'के एहि इलाका मे आयल छला। एहि क्रम मे चौथम राज के राजा मंगल सिंह से हुनक मित्रता भेलैन्ह। जाहिक बाद राजा मंगल सिंह ई इलाका श्रीपत महाराज क' गाय केर देखभाल लेल देना छलैन्ह। गाय सभक देखभालक क्रम मे महाराज देखलैन्ह कि हरेक दिन एक गाय एक निश्चित स्थान पर पहुँचैत छल की स्वत: गाय केर स्तन से दूध निकले लागैत छल। धीरे-धीरे ई बात राजा के कान तक पहुँचल। राजा स्वयं ई दृश्य देखलैंह ते दंग रही गेला। स्थल केर खुदाई भेल तेँ ओता माँ के दहिना भूजा भेटल। जाहिके स्थापित करि पूजा-अर्चना होमे लागल। ओहि इलाका मे बेसी काल बाढ़ि आबैत अछि, मुदा बाढ़िक पैन कहियो माता केर चौखट पार नहि करैत अछि। माँ कात्यायनी मंदिर न्यास समिति केर उपाध्यक्ष युवराज शंभू कहला कि 1987 मे आयल भीषण बाढ़ि मे सेहो एको बून्द बाढ़िक पैन माता केर मंदिर मे प्रवेश नहि केलैन्ह।
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