कतऽ गेलौं ये लऽग आबि जाउ ने (गजल) - बाबा बैद्यनाथ झा


कतऽ गेलौं ये लऽग  आबि जाउ ने 
एकबेर  आबि पुनि  भागि  जाउ ने 

प्रेमक मादे हमर फुटले  कपार  छै
सपनेमे   प्रेमगीत    गाबि जाउ  ने 

अहाँ बिना हम्मर करेजे  फाटल छै
स्नेहक  ताग लऽकऽ  तागि जाउ ने 

अहाँसन लोक एते निठुर तँ नहि हो 
एकबेर प्राण हमर   मांगि  जाउ  ने 

चिन्तासँ मुक्त किये एत्ते निसभेर छी 
किये एतेक सूतल छी जागि जाउ ने

गलती क्षमा करू माफी  मंगैत  छी 
सभकिछु बिसरि हृदय लागि जाउ ने

एखनहु पड़ैछ मन देल अहँक प्रेमरस 
एकबेर  चखा  पुनि   दागि जाउ  ने।

__ बाबा बैद्यनाथ झा, पूर्णिया

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