मोन छल उदास सन
ओ अयली आस सन
स्वर्णिम-प्रकाश सन
मोहक सुवास सन
मादक मृदु हास सन
सतरंगी अकास सन
नचैत छलहुँ हम दूनू
राधा केर रास सन
बनल छली ओ हमर
भूखल केर ग्रास सन
सभ किछु नीके छलए
ओस-तृप्त घास सन
बनल छलौं हम हुनक
सदिखन दास सन
लागि गेल आब बुझु
ग्रहण खग्रास सन
किये अहाँ दऽ गेलहुँ
जहरक गिलास सन
आब सभ देखि रहल
कुटिल उपहास सन
बना देलहुँ कियै हमर
जिनगी लहास सन।
-- बाबा बैद्यनाथ झा, पूर्णिया
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