मिथिलाक बरसाईत ( वटसावित्री )

बरसाईत ( वटसावित्री ) 01 जून।पावैनक मिथिला में बड़ पैघ माहात्म्य अछि। सुहाग रक्षा सदासुहागनक कामना सँ मैथिल स्त्री ई पावैन बहुत निष्ठा पवित्रता सँ  करै छथि। एक दिन पूर्व अर्बा-अर्बाईन भोजन सायंकाल भगवती गीत गवैत हरैद दुबि से गौड़ीक निर्माण कय माटिक नाग-नागिन बना सातटा उरीदक बर पकवै छथि। प्रात भेने बेरसाईत दिन स्नान सोलहो श्रृंगार जे एकटा सुहागनक निशानी छी लाल पियर साड़ी पहिर खोईछ लय फूल अक्षत चानन दुबि बेलपात धूप दीप नैवेद्य में आम लिची केरा अंकुरी। विसहाराक लेल दूध लाबा माटिक दूटा नव सरबा केराऊ दालि अरबा चाऊर गोटा सुपारी जनेऊ द्रव्य आ सूत। माटि या कपड़ाक बनल बर कनियां भूसना सिनूर पूजा स्थल पर बियाह करावक लेल। अहिवात पुरहर जरैत दीप 14 या 7 गोट डाली, बियनि, आ पंखा लय छाता तानि अहिवाती सबहक संग गीत नाद गवैत बरक गाछ तर पहुंचि जतय गाय गोबर सौं पहिने निपने रहै छथि।  सिनूर पिठार सँ अरिपन दय बाम भाग गौड़ी बीच में नागनागिन तेसर अरीपन पर सावित्रीक पूजा केल जाई छनि। चारिम अरिपन पर सोमाधोविनक पूजा कयल जाई छनि। सूत सौं सात बेर बरक गाछ में पतिक मंगलकामना करैत लटपटबैत छथि, छाता ओढाउल जाई छैक बियनि सौ हावा कयल जाई छैक आ पाकल आम लय जल चढाय केरा पात पर पूजाक सामग्री नैवेद्य सजा कमल आसन पर बैसि पूजा अर्चना करै छथि आ मिथिला में प्रचलित सोमा धोविनक कथा जे नाग-नागिन पर आधारित छैक आर स्कन्धपुराण वर्णित सावित्री सत्यवानक कथा श्रवण करै छथि आ उपवास रखै छथि।

धन्य हमर मैथिल स्त्री जे हरदम अपन जीवन सुहागक रक्षाक लेल ढाल बना लै छथि। एको टा खरोंच पति आ परिवार पर सहन नहिं क सकै छथि, जौं परिवार पर कोनों आंच आयल त दुर्गा आ चण्डी बनितो देरी नै लगै छनि।
                             
धन्य हम मैथिलक जीवन जे अहि पवित्र मिथिला भूमि पर हमर सबहक जन्म भेल तें एहन पतिपरायण स्त्री जीवनसंगिनी भेलि।

सनातन धर्मक प्रमुख स्तम्भ अपन मिथिला

जय मिंथिला, जय मैथिल, जय मैथिली।

__उगन झा 

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